संदर्भ:
भारतीय विज्ञान संवर्धन संघ (IASST) (जो कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अधीन एक स्वायत्त संस्थान है) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने पेप्टिडोमिमेटिक्स (Peptidomimetics) पर व्यापक शोध किया है। ये कृत्रिम रूप से तैयार किए गए यौगिक होते हैं, जो प्राकृतिक न्यूरोट्रॉफिन्स की संरचना और कार्य को प्रभावी ढंग से अनुकरण करते हैं। वैज्ञानिक इन्हें उन सीमाओं के संभावित समाधान के रूप में देख रहे हैं, जो प्राकृतिक न्यूरोट्रॉफिन्स के अस्थिर स्वभाव और सीमित चिकित्सकीय उपयोग के कारण उत्पन्न होती हैं।
शोध के बारे में:
भारतीय विज्ञान संवर्धन संघ (IASST) के प्रोफेसर आशीष के. मुखर्जी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने न्यूरोट्रॉफिन पेप्टाइडोमिमेटिक्स पर गहराई से अध्ययन किया। यह शोध Drug Discovery Today नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें यह समझने की कोशिश की गई कि ये यौगिक किस प्रकार से न्यूरॉन्स (तंत्रिका कोशिकाओं) की वृद्धि और जीवित रहने में मदद करते हैं, इनके संभावित औषधीय लक्ष्य क्या हैं और न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों (NDs) में इनका कैसे उपयोग किया जा सकता है।
न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के बारे में:
ये ऐसी बीमारियाँ होती हैं जिनमें मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की कोशिकाएं धीरे-धीरे खराब हो जाती हैं। इनके कुछ सामान्य उदाहरण हैं:
• अल्ज़ाइमर रोग
• पार्किंसन रोग
• हंटिंगटन रोग
• एएलएस (Amyotrophic Lateral Sclerosis)
न्यूरोट्रॉफिन्स के बारे में :
न्यूरोट्रोफिन्स प्रोटीन का एक परिवार है जो निम्नलिखित के लिए आवश्यक है:
- न्यूरोनल विकास को बढ़ावा देना
- न्यूरॉनल अस्तित्व का समर्थन
- सिनैप्टिक प्लास्टिसिटी को सुगम बनाना (स्मृति और सीखने के लिए महत्वपूर्ण)
अपनी चिकित्सीय क्षमता के बावजूद, प्राकृतिक न्यूरोट्रॉफिन्स अस्थिर होते हैं, शरीर में जल्दी से नष्ट हो जाते हैं तथा मस्तिष्क में उनकी पैठ कम होती है, जिससे उनका नैदानिक उपयोग सीमित हो जाता है।
पेप्टाइडोमिमेटिक्स के बारे में:
पेप्टाइडोमिमेटिक्स ऐसे कृत्रिम यौगिक होते हैं जो प्राकृतिक पेप्टाइड्स या प्रोटीन, जैसे कि न्यूरोट्रॉफिन्स की संरचना और जैविक कार्य को प्रभावी रूप से अनुकरण करते हैं। इनका उद्देश्य प्राकृतिक पेप्टाइड्स की प्रमुख सीमाओं को दूर करना होता है, जैसेः
• मुँह से सेवन करने पर शरीर में उचित मात्रा में न पहुँच पाना
• शरीर में तेजी से टूट जाना
• एंजाइमों द्वारा शीघ्रता से नष्ट हो जाना
ये यौगिक निम्नलिखित कार्य करते हैं:
• न्यूरोट्रॉफिन रिसेप्टर्स से जुड़कर सक्रिय होते हैं।
• तंत्रिका कोशिकाओं के जीवन, वृद्धि और मरम्मत से संबंधित सिग्नलिंग मार्गों को सक्रिय करते हैं।
• प्राकृतिक न्यूरोट्रॉफिन्स के समान कार्य करते हैं, परंतु उनकी अस्थिरता और प्रतिरक्षा-प्रतिक्रिया जैसी समस्याओं के बिना।
न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों (NDs) के उपचार में इनकी विशेषताएँ:
• रक्त में अधिक स्थिर रहते हैं।
• मस्तिष्क में बेहतर प्रवेश क्षमता रखते हैं।
• लंबी अवधि तक प्रभावी रहते हैं।
• प्रतिरक्षा प्रणाली को कम उत्तेजित करते हैं, जिससे एलर्जिक प्रतिक्रियाएँ कम होती हैं।
• विशेष जैविक लक्ष्यों पर केंद्रित होकर कार्य करते हैं, जिससे अनचाहे दुष्प्रभावों की संभावना घटती है।
शोध में क्या पाया गया है?
• पेप्टाइडोमिमेटिक्स का तंत्रिका कोशिकाओं की सुरक्षा और पुनःनिर्माण पर सकारात्मक प्रभाव देखा गया है।
• शोधकर्ताओं ने उन सिग्नलिंग मार्गों और औषधीय लक्ष्यों की पहचान की है, जिन पर ये यौगिक प्रभावी रूप से कार्य करते हैं।
• इन दवाओं की संभावनाएँ केवल न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों तक सीमित नहीं हैं; इन्हें कैंसर जैसी अन्य जटिल बीमारियों के उपचार में भी प्रयुक्त किया जा सकता है।
भविष्य की संभावनाएं:
यदि ये दवाएं सफल सिद्ध होती हैं, तो—
• ये न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के उपचार में एक प्रभावी और प्रमुख रणनीति के रूप में अपनाई जा सकती हैं।
• इन्हें विशिष्ट रोगों या व्यक्तिगत रोगियों की ज़रूरतों के अनुसार अनुकूलित रूप में विकसित किया जा सकता है।
• यह रोग की प्रगति को धीमा करने या पूरी तरह रोकने की दिशा में एक नई आशा प्रदान कर सकती हैं।