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Blog / 18 Dec 2025

रोजगार पर एनसीएईआर की रिपोर्ट

संदर्भ:

हाल ही में नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) ने एक अध्ययन इंडियाज एम्प्लॉयमेंट प्रॉस्पेक्ट्स: पाथवेज टू जॉब्स जारी किया। इस अध्ययन में बताया गया है कि भारत की रोजगार समस्या को हल करने के लिए कौशल विकास और छोटे उद्यमों की उत्पादकता बढ़ाना सबसे महत्वपूर्ण है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

1. भारत में रोजगार वृद्धि की प्रकृति:

         हाल के वर्षों में रोजगार बढ़ोतरी मुख्य रूप से स्वरोजगार के कारण हुई है, न कि वेतन वाली नौकरियों के विस्तार से।

         भारत में अधिकांश स्वरोजगार आर्थिक मजबूरी के कारण हैं, न कि नए व्यवसाय या नवाचार के कारण।

         अधिकांश गैर-निगमित घरेलू उद्यम केवल जीविका चलाने के स्तर पर काम कर रहे हैं। इनकी मुख्य विशेषताएँ हैं:

o   कम पूंजी निवेश

o   कम उत्पादकता

o   तकनीक का सीमित उपयोग

2. कौशल और कार्यबल की गुणवत्ता की भूमिका:

         भारत की जनसांख्यिकीय बढ़त के बावजूद कुशल कार्यबल की ओर बदलाव की गति धीमी रही है।

         रोजगार वृद्धि में मध्यम-कौशल वाले कार्यों का योगदान अधिक है, विशेषकर सेवा क्षेत्र में, जबकि विनिर्माण क्षेत्र अब भी मुख्यतः कम-कौशल आधारित है।

         रिपोर्ट के अनुसार:

o   यदि कुशल श्रमिकों की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत बढ़ाई जाए, तो 2030 तक श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोजगार 13% से अधिक बढ़ सकता है।

o   यदि कुशल श्रमिकों की हिस्सेदारी में 9 प्रतिशत की वृद्धि हो, तो 2030 तक लगभग 93 लाख नई नौकरियाँ सृजित हो सकती हैं।

3. छोटे उद्यम, ऋण और तकनीक:

         छोटे उद्यमों की उत्पादकता भारत के रोजगार भविष्य का मुख्य निर्धारक है।

         डिजिटल तकनीक अपनाने से रोजगार सृजन की क्षमता में बड़ा सुधार होता है।

o   डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने वाले उद्यम, गैर-डिजिटल उद्यमों की तुलना में 78% अधिक कर्मचारियों को काम पर रखते हैं।

         ऋण तक बेहतर पहुँच रोजगार पर मजबूत प्रभाव डालती है।

o   ऋण तक पहुँच में मात्र 1% की वृद्धि, नियोजित कर्मचारियों की संख्या में 45% तक बढ़ोतरी कर सकती है।

4. क्षेत्रवार रोजगार संभावनाएँ:

         श्रम-प्रधान विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार को मजबूत करने से लगभग 8% जीडीपी वृद्धि को बनाए रखा जा सकता है।

         रोजगार सृजन की अधिक संभावना वाले प्रमुख क्षेत्र हैं:

o   विनिर्माण: वस्त्र, परिधान, जूते, खाद्य प्रसंस्करण

o   सेवाएँ: व्यापार, होटल, पर्यटन, शिक्षा और स्वास्थ्य

5. अंतर-क्षेत्रीय गुणक प्रभाव:

         श्रम-प्रधान उप-क्षेत्रों के उत्पादन में मध्यम वृद्धि से 2030 तक कई गुना रोजगार सृजित हो सकता है। उदाहरण के तौर पर:

o   वस्त्र, परिधान और संबद्ध विनिर्माण में रोजगार में 53% वृद्धि

o   व्यापार, होटल और संबंधित सेवाओं में रोजगार में 79% वृद्धि

नीतिगत सिफारिशें:

         उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजनाओं का फोकस श्रम-प्रधान उद्योगों पर किया जाना चाहिए।

         उभरती तकनीकों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित औपचारिक कौशल विकास और पुनः-कौशल प्रशिक्षण का विस्तार किया जाना चाहिए।

         सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए संस्थागत ऋण तक पहुँच को आसान और सुलभ बनाया जाना चाहिए।

         छोटे उद्यमों में डिजिटल तकनीकों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

         पर्यटन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में अधिक रोजगार पैदा करने के लिए नीतिगत सहयोग और समर्थन को मजबूत किया जाना चाहिए।

भारत के लिए महत्व:

         भारत के दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की प्रबल संभावना है, लेकिन प्रति व्यक्ति जीडीपी में इसकी 128वीं रैंक यह स्पष्ट करती है कि रोजगार-आधारित विकास की तत्काल आवश्यकता है।

         यह रिपोर्ट भारत को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में रखते हुए संरचनात्मक सुधारों और उत्पादकता बढ़ाने वाले प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करती है।

निष्कर्ष:

भारत की रोजगार चुनौती का मूल कारण कम उत्पादकता है। यदि कौशल विकास को मजबूत किया जाए, ऋण तक पहुँच को आसान बनाया जाए और छोटे उद्यमों की उत्पादकता बढ़ाई जाए, विशेष रूप से श्रम-प्रधान विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में, तो भारत बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन करते हुए उच्च और सतत आर्थिक वृद्धि को बनाए रख सकता है।