संदर्भ:
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के पूर्णिया में राष्ट्रीय मखाना बोर्ड का उद्घाटन किया। इस बोर्ड की घोषणा सबसे पहले केंद्रीय बजट 2025 में की गई थी। इसका उद्देश्य मखाना (जिसे फॉक्स नट भी कहा जाता है) के उत्पादन, प्रसंस्करण और निर्यात को बढ़ावा देना है।
राष्ट्रीय मखाना बोर्ड की भूमिका और उद्देश्य:
नवगठित राष्ट्रीय मखाना बोर्ड इस क्षेत्र के व्यापक विकास पर केंद्रित रहेगा। इसका मुख्य लक्ष्य उत्पादन मानकों को उन्नत करना, फसल कटाई के बाद प्रबंधन को सुदृढ़ बनाना, आधुनिक तकनीकों का उपयोग बढ़ाना, मूल्य संवर्धन (Value Addition) को प्रोत्साहित करना और विपणन व निर्यात नेटवर्क को मजबूत करना है।
· यह बोर्ड किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को सहयोग प्रदान करेगा और मखाना किसानों को केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं से जोड़ने में मदद करेगा। इससे इस पारंपरिक फसल को संस्थागत समर्थन और दीर्घकालिक स्थिरता मिलेगी।
मखाने के बारे में:
मखाना या फॉक्स नट एक जलीय पुष्पीय पौधा है, जिसका वैज्ञानिक नाम यूरियाल फेरोक्स (Euryale ferox) है। यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में रहता है और तालाबों तथा स्थिर जलाशयों में उगता है, जिनकी गहराई लगभग 4-6 फीट होती है। मखाना को अक्सर “ब्लैक डायमंड” कहा जाता है, क्योंकि इसका बाहरी खोल गहरा काला होता है, लेकिन भुनने पर इसके बीज सफेद हो जाते हैं।
· भारत में मखाना उत्पादन का लगभग 90% हिस्सा बिहार से आता है। अन्य राज्य जैसे पश्चिम बंगाल, असम और मणिपुर भी मखाने की व्यावसायिक खेती करते हैं। भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश और चीन में भी मखाना उगाया जाता है।
· इस फसल के लिए विशेष मौसम की जरूरत होती है, तापमान 20°C से 35°C के बीच, आर्द्रता 50% से 90% के बीच और चिकनी दोमट मिट्टी (loamy soil) इसकी अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
· बिहार का GI टैग प्राप्त "मिथिला मखाना" पहले से ही संयुक्त अरब अमीरात (UAE), अमेरिका, कनाडा और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में निर्यात किया जा रहा है। सरकार की नई पहल से गुणवत्ता मानकों और विपणन में सुधार होगा और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक बेहतर पहुँच मिलेगी।
पोषण संबंधी लाभ और पारंपरिक उत्पादन प्रक्रिया:
भुना हुआ मखाना कम कैलोरी और कम वसा वाला होता है, लेकिन इसमें पादप आधारित प्रोटीन, आहार रेशा (dietary fiber), और मैग्नीशियम, पोटैशियम व फॉस्फोरस जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
· इसमें एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं, साथ ही यह ग्लूटेन-फ्री और शाकाहारी है। यही वजह है कि स्वास्थ्य के प्रति सजग उपभोक्ताओं के बीच दुनिया भर में इसकी मांग बढ़ रही है।
· मखाने की खेती और कटाई काफी परिश्रमी होती है। किसान पानी से भरे खेतों में काँटेदार फलियों को तोड़ते हैं, फिर बीजों को सुखाते हैं। इसके बाद बीजों को तेज़ आँच पर भूनकर फोड़ते हैं, जिससे सफेद दाने मिलते हैं।
· यह पारंपरिक प्रक्रिया बिहार के मिथिलांचल और सीमांचल क्षेत्र के लाखों लोगों की आजीविका का अहम हिस्सा है।
कृषि सुधार:
मखाने का विकास, ग्रामीण कृषि को बढ़ावा देने वाली सरकार की व्यापक रणनीति का हिस्सा है। हाल ही में शुरू की गई प्रमुख योजनाएँ इस प्रकार हैं:
· प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना, जो 100 जिलों में फसल विविधीकरण और सिंचाई सुधार पर केंद्रित है।
· मिशन आत्मनिर्भरता दालों में, जिसका मकसद दाल उत्पादन बढ़ाना और खरीद में सहायता देना है।
· किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) की सीमा, जिसे ₹3 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख कर दिया गया है।
निष्कर्ष:
राष्ट्रीय मखाना बोर्ड के गठन से बिहार का मखाना क्षेत्र एक बड़े बदलाव की ओर अग्रसर है। यह क्षेत्रीय विशेषता अब एक वैश्विक सुपरफूड के रूप में पहचान बना सकती है और ग्रामीण समृद्धि को नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकती है।