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Blog / 28 Nov 2025

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)

संदर्भ:

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने की सहमति दी है। इस याचिका में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को चुनौती दी गई है और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को पुनः लागू करने की गई है।

पृष्ठभूमि:

      • 2014 में संसद ने उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम सिस्टम की जगह लेने हेतु 99वें संवैधानिक संशोधन और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम पारित किया था।
      • हालांकि, अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने NJAC को असंवैधानिक और शून्य घोषित कर दिया, जिससे कॉलेजियम प्रणाली पुनः बहाल हो गई।
      • तब से, न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ कॉलेजियम प्रणाली के तहत ही हो रही हैं, जिसमें वरिष्ठ न्यायाधीश नए न्यायाधीशों की सिफारिश और चयन करते हैं, जिससे न्यायपालिका को प्राथमिकता मिलती है और कार्यपालिका के हस्तक्षेप से अपेक्षित स्वतंत्रता बनी रहती है।

CJI on Reviving NJAC and Ending the Collegium System

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के बारे में:

NJAC न्यायिक नियुक्तियों के लिए एक प्रस्तावित संवैधानिक संस्था थी, जिसे 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2014 द्वारा कॉलेजियम सिस्टम की जगह लेने के लिए स्थापित किया जाना था।

      • उद्देश्य: सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी प्रणाली बनाना।
      • संरचना: यह छह सदस्यों वाली संस्था थी, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और CJI, प्रधानमंत्री तथा विपक्ष के नेता की समिति द्वारा नामांकित दो प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल थे।
      • मुख्य विशेषता: इसमें वीटो पावर भी थी, जिसके तहत किसी भी दो सदस्यों द्वारा किसी सिफारिश को अस्वीकार किया जा सकता था।

इस कदम का महत्व:

      • न्यायपालिका और कार्यपालिका के संतुलन पर बहस: अगर कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करता है, तो यह बहस फिर से शुरू हो सकती है कि क्या न्यायाधीशों के चयन में न्यायपालिका के साथ-साथ कार्यपालिका और/या विधायिका की औपचारिक भूमिका होनी चाहिए या नहीं, जिससे कॉलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता की लंबे समय से चली आ रही चिंताओं का समाधान हो सके।
      • पारदर्शिता, जवाबदेही और जनता का विश्वास: NJAC या किसी सुधारित नियुक्ति प्रणाली को पुनः लागू करने से नियुक्ति प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बन सकती है। इससे न्यायाधीशों के चयन का दायरा व्यापक होगा और पक्षपात की धारणाओं को कम करने में मदद मिलेगी, जिससे न्यायपालिका की वैधता और जनता का विश्वास बढ़ेगा।
      • शक्ति पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता पर प्रभाव: नियुक्तियों में गैर-न्यायिक पक्षों को शामिल करने से संवैधानिक सवाल उठेंगे। 2015 के निर्णय में NJAC को इसी आधार पर खारिज किया गया था। इस विषय पर पुनर्विचार करने से संविधान की मूल संरचनाकी व्याख्या पर नए विचार उत्पन्न हो सकते हैं।

निष्कर्ष:

एक नई प्रणाली न्यायाधीशों के चयन को प्रभावित कर सकती है, जिससे न्यायालय की संरचना, विविधता और कार्यप्रणाली पर असर पड़ेगा। यह लंबी अवधि के मुद्दों जैसे मामलों की लंबित संख्या, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और सामाजिक न्याय से जुड़े निर्णयों को भी प्रभावित कर सकती है।