संदर्भ:
हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने महिला सुरक्षा पर राष्ट्रीय वार्षिक रिपोर्ट और सूचकांक (एनएआरआई) 2025 जारी किया है। यह रिपोर्ट पी-वैल्यू एनालिटिक्स द्वारा तैयार की गई तथा ग्रुप ऑफ इंटेलेक्चुअल्स एंड अकैडेमिशियन्स (GIA) द्वारा प्रकाशित की गई है। इसमें देशभर के सभी राज्यों को शामिल करते हुए 31 शहरों की 12,770 महिलाओं के अनुभवों और धारणाओं के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत किए गए हैं।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं:
- सबसे सुरक्षित शहर: कोहिमा, विशाखापट्टनम, भुवनेश्वर, आइजोल, गंगटोक, ईटानगर, मुंबई
- सबसे असुरक्षित शहर: पटना, जयपुर, फरीदाबाद, दिल्ली, कोलकाता, श्रीनगर, रांची
- राष्ट्रीय सुरक्षा स्कोर: 65 प्रतिशत
- महिलाओं की धारणा: 60% महिलाओं ने स्वयं को सुरक्षित महसूस किया, जबकि 40% ने “कम सुरक्षित” या असुरक्षित बताया।
- 2024 में उत्पीड़न की घटनाएँ: कुल 7% महिलाओं ने उत्पीड़न का सामना किया; 24 वर्ष से कम आयु की महिलाओं में यह प्रतिशत 14% रहा।
- उत्पीड़न के प्रमुख स्थल: आवासीय इलाक़े/मोहल्ले (38%) और सार्वजनिक परिवहन (29%) सबसे अधिक असुरक्षित पाए गए।
- संस्थाओं पर विश्वास: केवल 25% महिलाओं को विश्वास है कि शिकायत दर्ज होने पर प्रभावी समाधान मिलेगा।
- शिकायत दर्ज करने की स्थिति: हर 3 में से 1 महिला ने उत्पीड़न की शिकायत की, लेकिन दर्ज मामलों में केवल 16% पर ही ठोस कार्रवाई हुई।
- कार्यस्थल पर सुरक्षा: 91% महिलाओं ने दफ़्तर को सुरक्षित माना, लेकिन लगभग आधी महिलाएँ यौन उत्पीड़न की रोकथाम (POSH) कानून के बारे में अनजान थीं।
अन्य प्रमुख निष्कर्ष:
- समय आधारित सुरक्षा: दिन के समय शैक्षणिक संस्थानों (86%) और कार्यस्थलों (91%) को महिलाएँ सुरक्षित मानती हैं। लेकिन रात होते ही खराब सड़क लाइटिंग और अविश्वसनीय परिवहन के कारण सुरक्षा की भावना में भारी गिरावट आती है।
- कार्यस्थल पर विरोधाभास: दफ़्तरों को सामान्यतः सुरक्षित माना गया, फिर भी यौन उत्पीड़न की रोकथाम (POSH) कानून के बारे में जागरूकता बहुत सीमित रही। लगभग आधी महिलाएँ इसके बारे में अनभिज्ञ थीं, जो कानून और उसकी जानकारी के बीच गंभीर अंतर को दर्शाता है।
- आयु-आधारित जोखिम: युवा महिलाएँ (24 वर्ष से कम आयु) राष्ट्रीय औसत की तुलना में दोगुने उत्पीड़न का शिकार हुईं। उनके लिए कैंपस, हॉस्टल और मनोरंजन स्थल विशेष रूप से अधिक असुरक्षित पाए गए।
- स्थान आधारित असुरक्षा: सबसे अधिक असुरक्षित स्थल आवासीय मोहल्ले और आसपास के इलाके (38%) रहे, इसके बाद सार्वजनिक परिवहन (29%)। यह स्थिति शहरी ढाँचे, सड़क नियोजन और निगरानी व्यवस्था को मजबूत करने की आवश्यकता को उजागर करती है।
- विरोध न दर्ज कराने का दुष्चक्र: तीन में से दो उत्पीड़न की घटनाएँ कभी रिपोर्ट ही नहीं की गईं। जिन मामलों में शिकायत की गई, उनमें केवल 22% औपचारिक रूप से दर्ज हुईं और महज़ 16% मामलों में कार्रवाई हुई। इस कारण महिलाओं का व्यवस्था पर भरोसा लगातार घट रहा है।
संस्थागत और ढाँचागत पहलू:
रिपोर्ट इस बात पर ज़ोर देती है कि महिला सुरक्षा केवल कानून-व्यवस्था का विषय नहीं है, बल्कि यह एक विकास से जुड़ा मुद्दा है, जो शिक्षा, रोज़गार, आवाजाही और डिजिटल भागीदारी को प्रभावित करता है।
- जिन शहरों में सुरक्षा का स्तर बेहतर रहा, वहाँ पाया गया कि:
- पुलिसिंग प्रभावी थी,
- शहरी ढाँचा महिलाओं के अनुकूल था
- नागरिक सहभागिता अधिक थी
- संस्थाएँ संवेदनशील और जवाबदेह थीं।
- वहीं, जिन शहरों का स्कोर कमजोर रहा, वहाँ कारण थे:
- पितृसत्तात्मक सोच
- खराब शहरी योजना
- शिकायत निवारण तंत्र पर अविश्वास।
निष्कर्ष:
महिलाओं की सुरक्षा सतत विकास लक्ष्य (SDG) 5: लैंगिक समानता को प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है। असुरक्षित वातावरण न केवल महिलाओं की स्वतंत्र आवाजाही को बाधित करता है, बल्कि उनकी आर्थिक भागीदारी और अवसरों तक पहुँच को भी सीमित कर देता है। यह रिपोर्ट इस बात पर बल देती है कि नीति-निर्माण में केवल अपराध संबंधी आँकड़ों (NCRB) पर निर्भर रहने के बजाय महिलाओं के अनुभवों और धारणाओं को भी समान रूप से शामिल किया जाए, ताकि महिला सुरक्षा की एक व्यापक, यथार्थपरक और समग्र तस्वीर सामने आ सके।