सन्दर्भ:
हाल ही में 7 अगस्त 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एवं खाद्य सुरक्षा के अग्रदूत प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन की जन्मशती के उपलक्ष्य में आयोजित एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया।
सम्मेलन के मुख्य बिंदु:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों की रक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया। यह वक्तव्य ऐसे समय पर दिया गया है, जब प्रमुख कृषि मुद्दों पर भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता ठप पड़ी हुई है।
हितधारकों की चिंताएँ:
1. किसानों की चिंताएं:
अमेरिका की माँग:
· अमेरिका ने भारत में जी.एम. (जेनेटिकली मॉडिफाइड) सोयाबीन और मक्का के लिए बाजार पहुंच की मांग की है। यह कदम भारत की कृषि नीतियों, किसानों की आय और प्रतिस्पर्धा के ढांचे पर सीधा असर डाल सकता है।
उपज अंतर :
· मक्का: भारत में औसत उपज 3.5 टन/हेक्टेयर है, जबकि अमेरिका में यह 11 टन/हेक्टेयर है।
· सोयाबीन: भारत में औसत उपज 0.9 टन/हेक्टेयर है, जबकि अमेरिका में यह 3.5 टन/हेक्टेयर है।
जोखिम:
· सस्ते जी.एम. आयात से घरेलू कीमतों में गिरावट।
· भारत में जी.एम. फसलों (कपास को छोड़कर) पर प्रतिबंध के कारण अनुचित प्रतिस्पर्धा होगी।
· इथेनॉल निर्यात के लिए अमेरिकी दबाव से 5 करोड़ गन्ना किसानों को संभावित नुकसान।
2. पशुपालकों की चिंता:
अमेरिका की मांग:
· डेयरी उत्पादों के आयात पर टैरिफ में कमी। (वर्तमान टैरिफ – दूध पाउडर: 60%, मक्खन: 40%, पनीर: 30%)
जोखिम:
· 8 करोड़ लघु डेयरी किसानों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव।
· मांसाहारी चारा खाने वाले पशुओं से प्राप्त डेयरी उत्पादों के प्रति सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरोध।
· अमेरिका, भारत की गैर-टैरिफ बाधाओं (Non-Tariff Barriers) में ढील की मांग कर रहा है।
3. मछुआरों का संकट:
● अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा समुद्री खाद्य बाजार है; झींगा (Shrimp) इसका सबसे बड़ा निर्यात उत्पाद है।
● 2024 निर्यात मूल्य: 2.48 बिलियन अमेरिकी डॉलर।
● 2025 अमेरिकी टैरिफ: 50% (वियतनाम और इक्वाडोर के लिए केवल 10–20%)।
जोखिम: ऊँचे टैरिफ से ओडिशा और तमिलनाडु के जलीय किसानों को आर्थिक नुकसान।
एमएस स्वामीनाथन के विषय में:
प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन को कृषि विज्ञान में उनके असाधारण योगदान के लिए वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त थी।
प्रमुख योगदान:
● उच्च उपज वाली फसल किस्में :
o 1950 का दशक: पाला-प्रतिरोधी आलू की नई किस्में विकसित कीं तथा नाजुक इंडिका चावल का कठोर जैपोनिका किस्मों के साथ सफल संकरण किया, जिससे मजबूत और उच्च उपज वाली चावल की किस्में तैयार हुईं।
o 1963 - नॉर्मन बोरलॉग के साथ मिलकर उन्होंने गेहूं में बौनेपन के जीन को शामिल किया, जिससे छोटे, मजबूत पौधे पैदा हुए और उपज भी अधिक हुई।
● भारत में हरित क्रांति के जनक : 1960 के दशक में उन्नत प्रजनन और आधुनिक कृषि तकनीकों के माध्यम से खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रयासों का नेतृत्व किया।
● नवाचार :
▪ फसल कैफेटेरिया: बेहतर पोषण के लिए विभिन्न फसलों की एक साथ खेती की प्रणाली।
▪ फसल वितरण कृषि विज्ञान: उपज और गुणवत्ता में सुधार हेतु फसल चयन में मध्य-मौसम के दौरान वैज्ञानिक समायोजन की पद्धति।
● नीति नेतृत्व : राष्ट्रीय किसान आयोग की अध्यक्षता की और खेती में उत्पादकता, लाभप्रदता और स्थिरता बढ़ाने पर स्वामीनाथन रिपोर्ट प्रस्तुत की।
● पुरस्कार : रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1971), प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार (1987), यूएनईपी सासाकावा पर्यावरण पुरस्कार (1994), यूनेस्को गांधी स्वर्ण पदक (1999)।
● सम्मान : 2024 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा।
● पदभार : योजना आयोग के सदस्य (1980-82), विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर संयुक्त राष्ट्र आयोग के अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (फिलीपींस) के महानिदेशक, एमएस स्वामीनाथन अनुसंधान फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) के संस्थापक ।
सदाबहार क्रांति:
पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना, कृषि उत्पादकता में निरंतर वृद्धि। यह अवधारणा एम.एस. स्वामीनाथन द्वारा दी गई।
मुख्य घटक:
● एकीकृत कीट, पोषक तत्व एवं संसाधन प्रबंधन द्वारा जैविक और हरित कृषि को बढ़ावा।
● ग्राम ज्ञान केन्द्र: स्थान-विशिष्ट कृषि एवं पशुपालन संबंधी जानकारी।
● जैवग्राम: कृषि व गैर-कृषि आजीविका हेतु सतत संसाधन प्रबंधन।
● सामाजिक, आर्थिक और लैंगिक समानता पर बल।
निष्कर्ष:
भारत की आधी से ज़्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है। अनियंत्रित व्यापार उदारीकरण से कीमतों में भारी गिरावट, ग्रामीण संकट और खाद्य असुरक्षा पैदा हो सकती है। व्यापार वार्ताओं में भारत का रुख आजीविका की रक्षा, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और नीतिगत संप्रभुता को बनाए रखने के साथ-साथ अमेरिका के साथ निष्पक्ष व्यापार संबंधों को मज़बूत करने पर केंद्रित है।