संदर्भ:
एक नई क्लिनिकल ट्रायल में माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन तकनीक का सफल उपयोग किया गया है, जिससे माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों के आनुवंशिक विरासत को रोका जा सका। इस तकनीक की मदद से पहली बार आठ ऐसे बच्चों का जन्म हुआ है जिन्हें अपनी मां से दोषपूर्ण माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए मिलने का खतरा था, लेकिन वे पूरी तरह स्वस्थ पैदा हुए हैं।
मुख्य बातें:
· इस हाल ही में प्रकाशित ट्रायल में 22 महिलाओं ने हिस्सा लिया, जिनके माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए में गंभीर दोष थे।
· इसमें "प्रोन्यूक्लियर ट्रांसफर" नामक तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जिसमें निषेचित अंडाणु के नाभिक (nucleus) को एक स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया वाले डोनर अंडाणु में स्थानांतरित किया गया।
· अब तक इस तकनीक से 8 स्वस्थ बच्चों का जन्म हो चुका है।
· सभी बच्चे सामान्य रूप से बढ़ रहे हैं और एक और गर्भावस्था जारी है।
· इसी ट्रायल में "प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग" (PGT) से तुलना भी की गई, जो केवल उन महिलाओं के लिए काम करता है जिनके पास कुछ स्वस्थ अंडाणु शेष हैं। इस समूह में 18 बच्चों का जन्म हुआ। लेकिन जिन महिलाओं में 100% दोषपूर्ण माइटोकॉन्ड्रिया थे, उनके लिए माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन एकमात्र विकल्प था।
माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन क्या है?
· माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाओं के भीतर ऊर्जा उत्पन्न करने वाले अंग होते हैं, जिनका अपना डीएनए होता है और यह केवल मां से ही बच्चे में आता है।
· अगर यह डीएनए दोषपूर्ण हो, तो यह मस्तिष्क, मांसपेशियों, हृदय आदि को प्रभावित करने वाली गंभीर बीमारियाँ पैदा कर सकता है।
· हर 5,000 बच्चों में से लगभग 1 बच्चा इससे प्रभावित होता है और इसका कोई निश्चित इलाज नहीं है।
· माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन में मां के दोषपूर्ण माइटोकॉन्ड्रिया को डोनर महिला के स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया से बदल दिया जाता है।
· इससे बनने वाले भ्रूण में दो प्रकार का डीएनए होता है:
o न्यूक्लियर डीएनए – मां और पिता से (जो बच्चे के लक्षण व पहचान तय करता है)
o माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए – डोनर महिला से (जो ऊर्जा उत्पादन से संबंधित होता है)
· यह प्रक्रिया बच्चे की पहचान या जेनेटिक लक्षण नहीं बदलती, केवल ऊर्जा प्रणाली को ठीक करती है।
यह क्यों महत्वपूर्ण है?
· अब तक जिन महिलाओं में 100% दोषपूर्ण माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए था, उनके पास स्वस्थ संतान का कोई सुरक्षित विकल्प नहीं था।
· इस तकनीक ने उन्हें स्वस्थ बच्चे पैदा करने का अवसर दिया है।
· यह पारंपरिक IVF या गोद लेने के अलावा एक और वैज्ञानिक विकल्प प्रदान करता है।
· हालांकि यह तकनीक मां के सभी माइटोकॉन्ड्रिया को नहीं हटा पाती, लेकिन जो थोड़े बहुत रह भी जाते हैं, उनकी मात्रा इतनी कम होती है कि बीमारी नहीं होती। फिर भी सभी बच्चों पर लंबे समय तक नजर रखी जाएगी।
चुनौतियाँ और आगे की राह:
· यह तकनीक फिलहाल केवल UK और ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देशों में ही कानूनी रूप से उपलब्ध है।
· अमेरिका जैसे देशों में भ्रूण में बदलाव पर कानूनी रोक और फंडिंग की कमी के कारण यह तकनीक लागू नहीं हो सकी है।
· विशेषज्ञों का मानना है कि इसे लेकर वैश्विक नीतिगत समर्थन और दीर्घकालिक अध्ययन आवश्यक हैं।
निष्कर्ष:
माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन तकनीक का इंसानों पर सफल उपयोग एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जिससे आनुवंशिक बीमारियों की विरासत को रोका जा सकता है। अभी यह सीमित रूप से उपलब्ध है, लेकिन आने वाले वर्षों में यह तकनीक परिवारों के लिए एक आशा की किरण बन सकती है। उचित कानून, शोध और जागरूकता के साथ यह प्रजनन चिकित्सा का एक मुख्य हिस्सा बन सकती है, जिससे अगली पीढ़ियाँ गंभीर बीमारियों से बच सकेंगी।