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Blog / 18 Aug 2025

पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में खनन परियोजनाएँ

संदर्भ:

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वन सलाहकार समिति (FAC) ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर ज़िले में हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड की प्रस्तावित बॉक्साइट खनन परियोजना को चरण-द्वितीय वन स्वीकृति प्रदान करने से इनकार कर दिया है।

·    इस परियोजना को वर्ष 2009 में सैद्धांतिक वन स्वीकृति तथा 2014 में पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त हुई थी। हालांकि, वर्तमान में यह परियोजना पश्चिमी घाट के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESA) में स्थित होने के कारण रुकी हुई है।

पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों के बारे में:

पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत अधिसूचित ऐसे बफर ज़ोन होते हैं जो राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास स्थित होते हैं। ये क्षेत्र "आघात अवशोषक" (shock absorbers) के रूप में कार्य करते हैं और पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों को मानवीय हस्तक्षेप के दुष्प्रभावों से सुरक्षित रखने में सहायक होते हैं।

·        2024 की मसौदा अधिसूचना के अनुसार, पश्चिमी घाट के छह राज्यों में 56,800 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को ESA के रूप में नामित किया गया है।

·        इन क्षेत्रों में कुछ उच्च प्रभाव वाली गतिविधियाँजैसे खनन, उत्खनन और बड़े निर्माण कार्यपूर्णतः प्रतिबंधित हैं, जबकि अन्य गतिविधियों को सतत विकास के सिद्धांतों के अनुसार विनियमित किया जाता है।

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अस्वीकृति के कारण:

ईएसए में स्थित:

·        प्रस्तावित खनन स्थल पश्चिमी घाट की सीमा में आता है, जिसे पारिस्थितिक रूप से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र (Environmentally Sensitive Area - ESA) घोषित किया गया है। केंद्र सरकार द्वारा जारी 2024 की मसौदा अधिसूचना के अनुसार, ऐसे क्षेत्रों में खनन और उत्खनन जैसी उच्च-प्रभाव गतिविधियाँ पूर्णतः प्रतिबंधित हैं।

पट्टा अवधि समाप्त:

·        मूल खनन पट्टा वर्ष 1968 में 30 वर्षों के लिए स्वीकृत किया गया था, जो 1998 में समाप्त हो गया। खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2015 के अनुसार पट्टे की अधिकतम अवधि 50 वर्ष निर्धारित है, जो मई 2018 में पूर्ण हो चुकी है। इसके बाद से अब तक कोई नवीनीकरण नहीं किया गया है।

आरक्षित क्षेत्र:

·        यह स्थल मार्च 2021 से एक अधिसूचित संरक्षण आरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जिससे इसे खनन मंजूरी से अयोग्य घोषित कर दिया गया है।

वन अधिकारों की कानूनी प्रक्रिया अधूरी:

o   हिंडाल्को ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया है, जोकि वन भूमि हस्तांतरण के लिए एक अनिवार्य शर्त है।

पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:

o   इस क्षेत्र में हाथी, तेंदुए, बाघ, सांभर, भारतीय गौर और अन्य प्रजातियों सहित समृद्ध जैव विविधता पाई जाती है। एफएसी ने चेतावनी दी है कि खनन गतिविधि वन पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा सकती है, वन्यजीव गलियारों को बाधित कर सकती है और आवास स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।

मंज़ूरी न देने के निहितार्थ:

  • वन सलाहकार समिति का यह निर्णय पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र संबंधी अधिसूचनाओं और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की कानूनी वैधता को पुष्ट करता है।
  • यह एक स्पष्ट संदेश देता है कि कोई भी परियोजनाचाहे उसे पूर्व में मंज़ूरी प्राप्त हो या उसका औद्योगिक महत्व कुछ भी होपारिस्थितिक सुरक्षा मानकों की अनदेखी नहीं कर सकती।
  • यह निर्णय ईएसए और संरक्षण भंडारों के भीतर या उनके निकट भविष्य में खनन और बुनियादी ढाँचे के प्रस्तावों के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है।
  • परियोजना प्रस्तावकों को अब योजनाओं की पूर्व तैयारी में ईएसए मानदंडों, वन स्वीकृति की शर्तों और वन अधिकार अधिनियम (2006) के प्रावधानों का कठोर पालन करना अनिवार्य होगा।
  • यह निर्णय एक समृद्ध जैव विविधता हॉटस्पॉट की रक्षा करता है, जो कई संकटग्रस्त और संवेदनशील प्रजातियों का घर है।
  • वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अनुपालन पर बल देकर यह निर्णय भूमि हस्तांतरण से पहले आदिवासी और वनवासी समुदायों के अधिकारों की मान्यता के महत्व को रेखांकित करता है।

निष्कर्ष:

हिंडाल्को की बॉक्साइट खनन परियोजना के लिए चरण-II वन स्वीकृति से इनकार यह दर्शाता है कि विकास परियोजनाओं में पर्यावरणीय चिंताओं पर गंभीरता से विचार किया जाना आवश्यक है। बढ़ती खनिज मांग के बीच, आर्थिक विकास और पारिस्थितिक संतुलन के बीच समन्वय आवश्यक है। सतत खनन प्रथाएँ अपनाकर ही दीर्घकालिक पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है।