सन्दर्भ:
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में शिक्षा व्यवस्था में बढ़ते छात्र आत्महत्या मामलों और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। 25 जुलाई 2025 को, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने देश भर के स्कूलों, कॉलेजों और कोचिंग संस्थानों के लिए 15 अनिवार्य दिशानिर्देश जारी किए हैं, ताकि छात्रों के लिए एक सुरक्षित और संवेदनशील माहौल सुनिश्चित किया जा सके।
पृष्ठभूमि:
- यह निर्देश विशाखापत्तनम में एक 17 वर्षीय नीट (NEET) छात्रा की कथित आत्महत्या की याचिका पर दिए गए हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच CBI को सौंपने का भी आदेश दिया है।
- कोर्ट ने कहा कि छात्र आत्महत्याएं एक राष्ट्रीय आपात स्थिति बन गई हैं और तत्काल सुधारों की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में भारत में 13,000 से अधिक छात्र आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जो देश में कुल आत्महत्याओं का 7.6% हैं।
- पिछले 20 वर्षों में छात्र आत्महत्याएं 4% वार्षिक दर से बढ़ रही हैं, जो जनसंख्या वृद्धि और अन्य आत्महत्या दरों से भी अधिक है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के मुख्य बिंदु:
1. एक समान मानसिक स्वास्थ्य नीति
• सभी शैक्षणिक संस्थानों को एक समान मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनानी होगी।
• नीति का आधार होना चाहिए:
- उम्मींद दिशानिर्देश (2023)
- मनोदर्पण पहल (शिक्षा मंत्रालय)
- राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति
• इसे हर साल अपडेट करना और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा।
2. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की नियुक्ति
• जिन संस्थानों में 100 से अधिक छात्र हैं, उन्हें कम से कम एक प्रशिक्षित काउंसलर, मनोवैज्ञानिक या सामाजिक कार्यकर्ता रखना होगा।
• छोटे संस्थानों को बाहरी विशेषज्ञों से साझेदारी करनी होगी।
3. भेदभाव और दबाव से सुरक्षा
• छात्रों को अकादमिक प्रदर्शन के आधार पर अलग न किया जाए।
• सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करना, अत्यधिक परीक्षा दबाव या असंभव लक्ष्य देना निषिद्ध होगा।
• जाति, लिंग, धर्म, विकलांगता आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।
• रैगिंग, बुलिंग, यौन उत्पीड़न और भेदभाव के मामलों के लिए गोपनीय और सुलभ शिकायत तंत्र होना जरूरी है।
4. कानूनी जवाबदेही
• यदि संस्थान की लापरवाही से आत्महत्या होती है या किसी शिकायत पर कार्यवाही नहीं होती, तो वह दोषपूर्ण हत्या (culpable homicide) माना जाएगा और उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
5. कोचिंग संस्थानों पर कड़ी निगरानी
• कोटा, जयपुर, चेन्नई, हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में स्थित कोचिंग सेंटरों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सख्त उपाय अपनाने होंगे।
• राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 2 महीने में नियम बनाकर लागू करने होंगे, जिनमें शामिल हैं:
- कोचिंग संस्थानों का पंजीकरण
- छात्रों की सुरक्षा के मानक
- शिकायत निवारण तंत्र
6. राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन
- उच्च शिक्षा में मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या की रोकथाम के लिए दीर्घकालीन रणनीति बनाने हेतु एक राष्ट्रीय कार्यबल (National Task Force) गठित की गई है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप मानसिक स्वास्थ्य को शिक्षा व्यवस्था का एक मूलभूत मुद्दा मानने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। इन दिशा-निर्देशों से संस्थानों को यह समझने की आवश्यकता है कि छात्र कल्याण केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि नैतिक, कानूनी और संवैधानिक जिम्मेदारी है। हालांकि, दीर्घकालिक समाधान के लिए जरूरी है कि संसद में कानून बने, संस्थागत सुधार हों, और समाज में अकादमिक सफलता के साथ मानसिक लचीलापन को भी महत्व दिया जाए।