संदर्भ:
हाल ही में नीति आयोग ने “मध्यम उद्यमों के लिए नीति निर्माण” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट मध्यम उद्यमों की अब तक अनदेखी रही संभावनाओं को सामने लाती है और उनके लिए एक ठोस नीति खाका प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत को आत्मनिर्भर और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए मध्यम उद्यमों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। इन्हें ‘विकसित भारत @2047’ के लक्ष्य की प्राप्ति में एक प्रमुख सहायक शक्ति के रूप में देखा गया है।
एमएसएमई क्षेत्र में संरचनात्मक असंतुलन:
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं:
· यह क्षेत्र भारत के GDP में 29% का योगदान करता है,
· देश के 40% निर्यात के लिए योगदान देता है
· 60% से अधिक कार्यबल को रोजगार देता है।
फिर भी, यह क्षेत्र गंभीर संरचनात्मक असंतुलन से जूझ रहा है:
· पंजीकृत MSMEs में 97% सूक्ष्म उद्यम हैं,
· 2.7% लघु उद्यम हैं, और
· केवल 0.3% मध्यम उद्यम हैं।
संख्या में कम होने के बावजूद, मध्यम उद्यम MSME निर्यात का लगभग 40% योगदान देते हैं। यह उनके प्रभाव और छिपी हुई संभावनाओं को दर्शाता है।
प्रमुख चुनौतियाँ:
रिपोर्ट में कुछ बड़े कारण बताए गए हैं जो मध्यम उद्यमों के विकास में बाधा बनते हैं:
· उपयुक्त वित्तीय उत्पादों और औपचारिक ऋण तक सीमित पहुंच।
- बुनियादी ढांचे और जागरूकता की कमी के कारण उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों को अपनाने में देरी ।
· अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास (R&D) और नवाचार के लिए मंचों की कमी।
· उद्योग-विशिष्ट परीक्षण और प्रमाणन सुविधा का अभाव।
· प्रशिक्षण कार्यक्रमों और उद्योग की वास्तविक ज़रूरतों के बीच तालमेल की कमी।
· सूचनाओं, नियमों और सरकारी योजनाओं तक पहुंच की कमी।
सशक्तिकरण के लिए छह-स्तंभीय नीति ढांचा:
रिपोर्ट में मध्यम उद्यमों के सामने मौजूद प्रमुख चुनौतियों के समाधान के लिए छह प्राथमिक क्षेत्रों पर आधारित एक व्यापक नीति ढांचा प्रस्तावित किया गया है:
1. उद्यम-विशेष वित्तीय समाधान: टर्नओवर के आधार पर कार्यशील पूंजी के लिए ऋण सुविधा, साथ ही ₹5 करोड़ तक का क्रेडिट कार्ड, जो बाजार दरों पर उपलब्ध कराया जाएगा।
2. प्रौद्योगिकी एकीकरण और उद्योग 4.0 को बढ़ावा: मौजूदा तकनीकी केंद्रों को उन्नत कर, उन्हें क्षेत्रीय और उद्योग-विशेष 'भारत SME 4.0 कॉम्पिटेंस सेंटर्स' के रूप में विकसित किया जाएगा।
3. अनुसंधान एवं विकास (R&D) का सशक्तिकरण: MSME मंत्रालय के अंतर्गत एक समर्पित अनुसंधान प्रकोष्ठ की स्थापना की जाएगी, जो मध्यम उद्यमों में नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देगा।
4. क्लस्टर-आधारित परीक्षण एवं प्रमाणन अवसंरचना: गुणवत्ता सुधार और नियामकीय अनुपालन को आसान बनाने के लिए सेक्टर-विशेष परीक्षण और प्रमाणन सुविधाएं विकसित की जाएंगी।
5. उद्योग-उन्मुख कौशल विकास: प्रशिक्षण कार्यक्रमों को क्षेत्र और उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित किया जाएगा, ताकि उद्यमों को उपयुक्त और दक्ष मानव संसाधन मिल सके।
6. एकीकृत डिजिटल पोर्टल: 'उद्यम' पोर्टल पर एक विशेष उप-पोर्टल बनाया जाएगा, जिसमें योजनाओं की खोज, अनुपालन मार्गदर्शन और AI आधारित सहायता जैसी सुविधाएं उपलब्ध होंगी।
निष्कर्ष:
रिपोर्ट इस बात पर विशेष जोर देती है कि मध्यम उद्यमों की पूर्ण क्षमता को उजागर करने के लिए समावेशी नीतियों और सहयोगात्मक शासन मॉडल को अपनाना अनिवार्य है। यदि वित्त, प्रौद्योगिकी, अवसंरचना, कौशल विकास और जानकारी की सुलभता जैसे क्षेत्रों में सुविचारित और लक्षित सहयोग प्रदान किया जाए, तो मध्यम उद्यम नवाचार, रोजगार सृजन और निर्यात वृद्धि के सशक्त प्रेरक बन सकते हैं। यह परिवर्तन भारत को 'विकसित भारत @2047' के विजन की ओर तेजी से अग्रसर करने में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है।