संदर्भ:
10 अक्टूबर से 14 नवंबर 2025 के बीच मनरेगा (MGNREGS) के डेटाबेस से लगभग 27 लाख मजदूरों के नाम हटा दिए गए है। असामान्य रूप से बड़ी संख्या में नाम हटाया जाना सरकार द्वारा लागू किए गए अनिवार्य ई-केवाईसी (e-KYC) प्रक्रिया की शुरुआत के साथ हुई है।
ई-केवाईसी लागू करने के कारण:
सरकार ने ई-केवाईसी को अनिवार्य इसलिए किया ताकि मनरेगा कार्यस्थलों पर पारदर्शिता बढ़ाई जा सके और नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम (NMMS) में हो रहे दुरुपयोग को रोका जा सके। NMMS एक डिजिटल उपस्थिति प्रणाली है, जिसे मनरेगा के सभी कार्यस्थलों पर अनिवार्य किया गया है।
NMMS के तहत:
• कार्य पर्यवेक्षक (Mates) को प्रतिदिन दो बार मजदूरों की जियो-टैग्ड तस्वीरें अपलोड करनी होती हैं।
• इन तस्वीरों का मिलान ई-केवाईसी प्रक्रिया के दौरान आधार से जुड़े रिकॉर्ड से किया जाता है।
8 जुलाई की मंत्रालय की रिपोर्ट में दर्ज प्रमुख अनियमितताएँ:
• ग़लत, अस्पष्ट या असंबंधित तस्वीरों का अपलोड किया जाना
• लाइव फोटो की जगह पहले से मौजूद फोटो का उपयोग (फोटो-टू-फोटो कैप्चर)
• वास्तविक मजदूरों और ऑनलाइन दर्ज नामों के बीच असंगति
• एक ही फोटो का कई मस्टर रोल्स में दोहराया जाना
• दोपहर की तस्वीरों का अभाव तथा पुरुष–महिला अनुपात में स्पष्ट गड़बड़ी
इन निरंतर सामने आ रही अनियमितताओं को देखते हुए सरकार ने मनरेगा मजदूरों के लिए ई-केवाईसी प्रक्रिया को अनिवार्य कर दिया।
मनरेगा के बारे में:
मनरेगा को 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत लागू किया गया, जो विश्व के सबसे बड़े अधिकार-आधारित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में से एक है। यह योजना प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों के मज़दूरी-आधारित रोजगार की कानूनी गारंटी प्रदान करती है, बशर्ते परिवार के वयस्क सदस्य बिना कौशल वाले श्रम कार्य के लिए स्वयं इच्छुक हों।
उद्देश्य:
• ग्रामीण परिवारों की आजीविका सुरक्षा को मजबूत करना।
• जल संरक्षण, भूमि विकास और आधारभूत संरचना जैसी टिकाऊ परिसंपत्तियों का निर्माण करना।
• प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन को अधिक प्रभावी बनाना।
• समावेशी विकास को बढ़ावा देते हुए ग्रामीण-शहरी पलायन को कम करना।
• SC, ST, महिलाओं, छोटे और सीमांत किसानों सहित वंचित समूहों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना।
मनरेगा की प्रमुख विशेषताएँ:
1. अधिकार-आधारित ढांचा: यह योजना कानूनी रूप से मज़दूरी रोजगार की गारंटी देती है, जो इसे अन्य योजनाओं से अलग बनाती है।
2. मांग-आधारित प्रणाली: रोजगार मजदूर की मांग के आधार पर उपलब्ध कराया जाता है। यदि 15 दिनों के भीतर काम नहीं दिया जाता, तो मजदूर को बेरोज़गारी भत्ता दिया जाना आवश्यक है।
3. सार्वभौमिक कवरेज: यह योजना सभी ग्रामीण परिवारों के लिए उपलब्ध है; इसमें किसी प्रकार की आय सीमा या पात्रता प्रतिबंध नहीं है।
4. न्यूनतम 100 दिनों का रोजगार: प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त राज्य अपनी ओर से अतिरिक्त दिनों की भी अनुमति दे सकते हैं।
5. सामाजिक लेखा-परीक्षा (सोशल ऑडिट): ग्राम सभा द्वारा नियमित सामाजिक ऑडिट के माध्यम से पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।
6. समयबद्ध भुगतान: मजदूरी का भुगतान 15 दिनों के भीतर अनिवार्य है; देरी की स्थिति में मुआवज़ा देना आवश्यक है।
7. महिलाओं की भागीदारी: लाभार्थियों में कम से कम एक-तिहाई महिलाएँ होना अनिवार्य है; कई राज्यों में महिलाओं की भागीदारी 50% से भी अधिक है।
8. विकेंद्रीकृत योजना: योजना का निर्माण, योजना-चयन और क्रियान्वयन ग्राम सभा और ग्राम पंचायत स्तर पर किया जाता है, जिससे स्थानीय जरूरतों के अनुसार कार्य तय किए जाते हैं।
निष्कर्ष:
मनरेगा डेटाबेस से बड़ी संख्या में मजदूरों के नाम हटाए जाने से यह चिंता बढ़ी है कि कहीं वास्तविक और पात्र मजदूर योजना से बाहर न हो जाएँ, विशेषकर उन ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ तकनीकी सुविधा सीमित है। सरकार का उद्देश्य अवैध या फर्जी लाभार्थियों को हटाना है, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि पात्र मजदूरों को किसी तकनीकी समस्या के कारण बाहर न कर दिया जाए। इसलिए सरकार को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करते हुए ग्रामीण मजदूरों के अधिकारों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
