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Blog / 16 Jun 2025

बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए स्कूलों में डिजिटल साक्षरता जरूरी- अध्ययन

संदर्भ:

चाइल्डफंड इंडिया और कर्नाटक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (KSCPCR) द्वारा कराए गए एक हालिया अध्ययन में सिफारिश की गई है कि बच्चों को ऑनलाइन खतरों से बचाने के लिए डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा को प्राथमिक कक्षा से ही स्कूल पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए। अध्ययन में यह भी उजागर हुआ है कि बच्चों के प्रति ऑनलाइन यौन शोषण और उत्पीड़न के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिसे रोकने के लिए तुरंत प्रभावी और ठोस कदम उठाना बेहद आवश्यक है।

ऑनलाइन बाल यौन शोषण के बारे में:

ऑनलाइन बाल यौन शोषण और उत्पीड़न में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का इस्तेमाल बच्चों के साथ यौन रूप से अनुचित व्यवहार करने या उनका शोषण करने के लिए किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र की एशिया और प्रशांत के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग (UN ESCAP) के अनुसार, बाल यौन शोषण वह स्थिति होती है जब कोई वयस्क या बड़ा/अधिक जानकार बच्चा (चाहे वह अजनबी हो, रिश्तेदार हो, या माता-पिता जैसे देखभालकर्ता) किसी बच्चे के साथ ऐसा संपर्क करता है जिसमें उस बच्चे को अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए एक वस्तु की तरह इस्तेमाल किया जाता है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:

         ऑनलाइन खतरों में बढ़ोतरी: कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चों की ऑनलाइन उपस्थिति काफी बढ़ गई, जिससे वे ग्रूमिंग, साइबरबुलिंग और यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर खतरों के प्रति और अधिक असुरक्षित हो गए हैं।

         डिजिटल जागरूकता की कमी: बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों और शिक्षकों में भी डिजिटल सुरक्षा को लेकर जागरूकता की भारी कमी देखी गई, जिससे बच्चे आसानी से ऑनलाइन शोषण का शिकार बन सकते हैं।

         रिपोर्टिंग में कमी और सामाजिक कलंक: ऑनलाइन शोषण की घटनाएं अक्सर सामने नहीं आ पातीं, क्योंकि पीड़ित बच्चे और उनके परिवार डर, शर्म और समाज में बदनामी के डर से शिकायत दर्ज कराने से कतराते हैं।

प्रमुख सिफारिशें:

         डिजिटल साक्षरता को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए: स्कूलों में प्राथमिक स्तर से ही डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाए, ताकि बच्चे शुरुआती उम्र से ही सुरक्षित इंटरनेट उपयोग सीख सकें।

         शिक्षकों का विशेष प्रशिक्षण: शिक्षकों को इस योग्य बनाया जाए कि वे ऑनलाइन शोषण के संकेत पहचान सकें और बच्चों को सुरक्षित, जिम्मेदार और सतर्क डिजिटल व्यवहार के बारे में प्रभावी ढंग से शिक्षित कर सकें।

         अभिभावकों की भूमिका और निगरानी: माता-पिता को डिजिटल जागरूकता से जोड़ते हुए बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर सतर्क निगरानी रखने के लिए प्रेरित किया जाए।

         सामुदायिक जागरूकता अभियान: ऑनलाइन यौन शोषण की घटनाओं की रिपोर्टिंग में बाधा बनने वाले सामाजिक कलंक को खत्म करने के लिए समुदाय स्तर पर जन-जागरूकता अभियान चलाए जाएं।

ऑनलाइन बाल शोषण से बचाव के लिए मौजूदा उपाय:

         सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act): यह कानून उन साइबर अपराधों की पहचान करता है, जिनका शिकार बच्चे सबसे अधिक होते हैं, और ऐसे अपराधों के लिए सख्त दंड का प्रावधान करता है।

         आईटी नियम, 2021:सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 का उद्देश्य सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों पर बाल यौन शोषण सामग्री (CSEAM) के प्रसार पर रोक लगाना है।

         राष्ट्रीय बाल कार्य योजना, 2016: यह योजना बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों, खासकर यौन शोषण और उत्पीड़न को रोकने के लिए नीति-स्तरीय दिशा तय करती है।

         बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CRC), 1990 की पुष्टि: भारत द्वारा इस सम्मेलन की पुष्टि बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनके सर्वांगीण विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबद्धता को मजबूत करती है।

निष्कर्ष:
आज के डिजिटल युग में, जहाँ बच्चे तेजी से ऑनलाइन दुनिया से जुड़ रहे हैं, डिजिटल साक्षरता बेहद आवश्यक हो गई है। यदि बच्चों को स्कूल स्तर पर ही ऑनलाइन सुरक्षा, सहमति, गोपनीयता और तकनीक के जिम्मेदार उपयोग की जानकारी दी जाए, तो वे स्वयं को सुरक्षित रख सकेंगे। यह न केवल ऑनलाइन बाल यौन शोषण और उत्पीड़न को रोकने में मदद करेगा, बल्कि बच्चों के लिए एक सुरक्षित डिजिटल माहौल भी तैयार करेगा।