सन्दर्भ:
हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा ने महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा (MSPS) विधेयक को ध्वनि मत से पारित किया है। इस विधेयक का उद्देश्य है—कट्टरपंथी या इसी प्रकार के संगठनों द्वारा की जाने वाली अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए राज्य को कानूनी अधिकार देना।
हालाँकि सरकार का कहना है कि यह कानून सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक है, लेकिन नागरिक समाज और कानूनी विशेषज्ञों ने इसके दुरुपयोग और व्यापक परिभाषाओं को लेकर गंभीर चिंताएं जताई हैं।
MSPS विधेयक की मुख्य बातें:
- यह विधेयक राज्य सरकार को किसी भी संगठन को "गैरकानूनी" घोषित करने का अधिकार देता है यदि वह संगठन ऐसी गतिविधियों में शामिल पाया जाए जो सार्वजनिक व्यवस्था या संस्थागत स्थिरता के लिए खतरा मानी जाए।
चार तरह के अपराधों को परिभाषित किया गया है:
1. गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना
2. ऐसे संगठनों के लिए धन जुटाना
3. उनके कार्यों को संचालित करना या सहयोग देना
4. कोई भी "गैरकानूनी गतिविधि" करना (जिसकी परिभाषा बहुत व्यापक है)
सजा का प्रावधान:
- 2 से 7 साल तक की सजा और ₹2 लाख से ₹5 लाख तक का जुर्माना।
- सबसे गंभीर अपराध — “गैरकानूनी गतिविधि” करना — पर 7 साल की सजा और ₹5 लाख का जुर्माना।
- सभी अपराध संज्ञेय (cognizable) और गैर-जमानती (non-bailable) होंगे, यानी पुलिस बिना वारंट के गिरफ़्तारी कर सकती है।
"गैरकानूनी गतिविधि" की व्यापक परिभाषा:
- केवल हिंसा ही नहीं, बल्कि कोई भी बात, संकेत, प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति जो सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डाल सकती है, उसे इस श्रेणी में रखा गया है।
- उदाहरण के लिए, "कानून का उल्लंघन करना", ट्रैफिक रोकना, प्रदर्शन के लिए फंड इकट्ठा करना — ये सभी भी गैरकानूनी गतिविधियों में गिने जा सकते हैं।
संवैधानिक और कानूनी चिंताएं:
- इस विधेयक की तुलना केंद्र सरकार के कानूनों जैसे UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) और PMLA (धनशोधन निवारण अधिनियम) से की जा रही है। लेकिन UAPA जैसे कानून आम तौर पर आतंकवाद या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मामलों में प्रयुक्त होते हैं।
- विशेषज्ञों का मानना है कि MSPS विधेयक की अस्पष्ट और व्यापक परिभाषाएँ लोकतांत्रिक विरोध और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) का उल्लंघन कर सकती हैं।
- उदाहरण: “कानून तोड़ने के लिए प्रेरित करना” जैसी भाषा किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता या आलोचक पर लागू की जा सकती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) के निर्णय में स्पष्ट किया था कि सरकार की आलोचना तब तक अपराध नहीं है जब तक वह हिंसा के लिए प्रेरित न करे।
- सामान्य कानूनों की तुलना में ऐसे विशेष कानूनों में "जब तक दोष सिद्ध न हो, तब तक निर्दोष माने जाने" की संवैधानिक सुरक्षा कमज़ोर हो जाती है, जिससे मनमानी गिरफ्तारी और दुरुपयोग की आशंका बढ़ती है।
निष्कर्ष:
महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक का उद्देश्य राज्य को चरमपंथ से निपटने के लिए मजबूत बनाना है, लेकिन इसके प्रावधान नागरिक स्वतंत्रताओं और मानवाधिकारों पर असर डाल सकते हैं।
इसके व्यापक दायरे और दुरुपयोग की संभावना को देखते हुए यह कानून न केवल अदालतों में, बल्कि जनता की अदालत में भी चुनौती का विषय बन सकता है। सुरक्षा और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना आज की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक आवश्यकता है।