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Blog / 04 Sep 2025

हैदराबाद गजट के माध्यम से मराठा आरक्षण की पहल

संदर्भ:

मराठा आरक्षण आंदोलन के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने हैदराबाद गजट को लागू करने पर सहमति दी है। हैदराबाद गजट एक औपनिवेशिक कालीन प्रशासनिक दस्तावेज़ है, जिस पर आंदोलनकारियों का दावा है कि यह मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में शामिल करने का समर्थन करता है। यह पहल कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल द्वारा लंबे समय से उठाई जा रही आरक्षण मांग को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।

हैदराबाद गजट के विषय में:

·        हैदराबाद गजट हैदराबाद के तत्कालीन निज़ाम द्वारा जारी किया गया था, जिनके शासन क्षेत्र में मराठवाड़ा भी शामिल था। यह दस्तावेज उस युग की जातिगत पहचान और व्यवसायों का सटीक विवरण प्रदान करता है, जिसमें मराठों को कुनबी, एक कृषि समुदाय के रूप में वर्गीकृत किया गया था।

·        अन्य ऐतिहासिक अभिलेख, जैसे 1884 का एक अभिलेख, भी दोनों समुदायों (मराठा और कुनबी) के बीच के अंतर को अस्पष्ट करते हैं।

·        आंदोलनकारियों का तर्क है कि ये दस्तावेज स्पष्ट करते हैं कि मराठों को कभी आधिकारिक तौर पर कुनबी वर्ग में शामिल किया गया था, इसलिए वे आज के ओबीसी लाभों के लिए पात्र हैं।

निहितार्थ:

·        राजपत्र को आधिकारिक रूप से स्वीकार किए जाने के बाद, मराठवाड़ा क्षेत्र के मराठा समुदाय के लोग कुनबी जाति प्रमाण पत्र प्राप्त कर ओबीसी आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं। हालांकि, यह नीति केवल मराठवाड़ा क्षेत्र तक सीमित है और पूरे महाराष्ट्र राज्य पर लागू नहीं होती।

·        विदर्भ जैसे अन्य क्षेत्रों में कुछ मराठा पहले से ही कुनबी के रूप में सूचीबद्ध हैं, जबकि पश्चिमी महाराष्ट्र में कई मराठा अगड़ी जाति के रूप में पहचाने जाते हैं।

इस नीति से जुड़े मुद्दे:

·        क्षेत्रीय असमानता: यह निर्णय केवल मराठवाड़ा क्षेत्र के मराठा समुदाय पर लागू होता है, जबकि पश्चिमी महाराष्ट्र जैसे अन्य क्षेत्रों के मराठा इससे बाहर रह जाते हैं।

·        कानूनी चुनौतियाँ: इस फैसले को संवैधानिक समीक्षा का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि पहले मराठा आरक्षण को 50% की आरक्षण सीमा से अधिक होने के कारण रद्द किया जा चुका है।

·        ओबीसी विरोध: मौजूदा ओबीसी समूह नौकरियों और शिक्षा लाभों तक पहुँच कम होने के डर से मराठों को शामिल करने का विरोध कर सकते हैं।

भारत में आरक्षण कोटा आंदोलन:

·        भारत में आरक्षण नीति अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) जैसे ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों के सामाजिक न्याय और समान प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक रूप से अनिवार्य है। हालांकि, नए कोटा निर्धारण और संशोधनों की मांग अक्सर सार्वजनिक विरोध, कानूनी विवाद और राजनीतिक मतभेदों को जन्म देती है

उभरती माँगें:

राज्य-विशिष्ट आंदोलन: गुजरात में पाटीदार, हरियाणा में जाट, आंध्र प्रदेश में कापू और महाराष्ट्र में मराठा जैसे समुदायों ने ओबीसी या अलग आरक्षण की माँग को लेकर विरोध प्रदर्शन किए हैं।

कोटा के भीतर कोटा: एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों के हाशिए पर पड़े उप-समूह आंतरिक वर्गीकरण चाहते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि लाभ सबसे वंचित वर्गों तक पहुँचें।

आंदोलन के कारण:

1.        सामाजिक समानता: ऐतिहासिक भेदभाव समाप्त कर हाशिए के समूहों का उत्थान सुनिश्चित करना।

2.      जनसंख्या अनुपात: समुदाय अपनी जनसंख्या के अनुसार आरक्षण की मांग करते हैं।

3.      प्रतिनिधित्व: शिक्षा, रोजगार और राजनीति में उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।

4.     कानूनी सीमाएँ: इंदिरा साहनी मामले में निर्धारित 50% की आरक्षण सीमा विवाद का प्रमुख कारण है।

 

निष्कर्ष:

हैदराबाद गजट का कार्यान्वयन मराठा समुदाय को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि यह क्षेत्रीय समाधान प्रदान करता है, परन्तु कानूनी बाधाएं, मौजूदा ओबीसी समूहों का विरोध एवं अन्य क्षेत्रों के मराठा समुदाय की मांगें अभी भी प्रमुख चुनौतियाँ हैं। ऐसे में सरकार को व्यापक और समग्र समाधान तैयार करना आवश्यक है