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Blog / 05 Jun 2025

लद्दाख में आरक्षण, निवास और प्रशासन से जुड़ी नई नीतियाँ

संदर्भ:

हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लद्दाख में लंबे समय से चली आ रही मांगों को ध्यान में रखते हुए कुछ महत्वपूर्ण नियमों को अधिसूचित किया है। ये नए प्रावधान मुख्य रूप से सरकारी नौकरियों में आरक्षण, निवास प्रमाणपत्र की शर्तें, आधिकारिक भाषाओं की मान्यता और स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों के संचालन से जुड़े हैं।

मुख्य नियम और प्रावधान:

1.      निवास प्रमाणपत्र की शर्तें: नई नीति के तहत वे लोग जो लद्दाख के मूल निवासी नहीं हैं, जिनमें केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चे भी शामिल हैं, उन्हें "स्थानीय निवासी" माने जाने के लिए यह साबित करना होगा कि वे 31 अक्टूबर 2019 (जब लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना) से लगातार 15 वर्षों तक लद्दाख में रह रहे हैं।

2.     स्थानीयों के लिए सरकारी नौकरियों में 95% आरक्षण: लद्दाख आरक्षण (संशोधन) विनियमन, 2025 के तहत देश की सबसे व्यापक आरक्षण नीति लागू की गई है।

·        अब 85% सरकारी नौकरियाँ लद्दाख के स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित होंगी। इस आरक्षण का विस्तृत वर्गीकरण आगे तय किया जाएगा।

·        लद्दाख की लगभग 2.74 लाख आबादी में से करीब 80% लोग अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय से आते हैं, जिन्हें इस कोटे में विशेष प्राथमिकता मिलेगी।

·        अन्य आरक्षित वर्गों में शामिल हैं:

·         4% सीमा क्षेत्रों (LAC/LoC) में रहने वाले

·         1% अनुसूचित जाति (SC) के लिए

·         10% आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए

कुल मिलाकर आरक्षण का स्तर 95% तक पहुँच सकता है, जो भारत में सबसे अधिक आरक्षण देने वाले राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में से एक बनाता है।

3.     महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित: लद्दाख की स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों (LAHDCs) में पहली बार महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित की गई हैं।

·        यह आरक्षण रोटेशन के आधार पर होगा, ताकि अलग-अलग क्षेत्रों की महिलाएं प्रतिनिधित्व कर सकें।

·        यह पहल जनजातीय और दूरदराज़ क्षेत्रों में महिलाओं की राजनीति और शासन में भागीदारी बढ़ाने के राष्ट्रीय प्रयासों के अनुरूप है।

4.    आधिकारिक भाषाओं की घोषणा: लद्दाख की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को सम्मान देते हुए, "लद्दाख आधिकारिक भाषाएँ विनियमन, 2025" के तहत पाँच भाषाओं को प्रशासनिक कार्यों के लिए आधिकारिक दर्जा दिया गया है:

·        अंग्रेज़ी

·        हिन्दी

·        उर्दू

·        भोती (तिब्बती मूल की पारंपरिक भाषा, विशेषकर लेह क्षेत्र में बोली जाती है)

·        पुर्गी (मुख्यतः कारगिल और उसके आसपास बोली जाने वाली भाषा)

Ladakh Gets New Policies on Quota, Domicile and Governance

पृष्ठभूमि:

लद्दाख को वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग करके एक केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से यहाँ जनभागीदारी और नागरिक आंदोलनों में तेज़ी आई। इस बदलाव के बाद लद्दाख की जनता ने चार प्रमुख मांगें उठाईं:

1.        लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए।

2.      क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत लाया जाए, जिससे जनजातीय समुदायों को विशेष अधिकार मिल सकें।

3.      स्थानीय लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।

4.     लेह और कारगिल दोनों के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटें आवंटित की जाएँ।

हाल ही में लागू किए गए नियमों से तीसरी मांग, यानी सरकारी नौकरियों में स्थानीयों के लिए आरक्षण को काफी हद तक पूरा किया गया है। हालांकि, राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने जैसी मांगें अभी भी अधूरी हैं। इन मुद्दों को लेकर लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) जैसे प्रमुख संगठन लगातार केंद्र सरकार से संवाद कर रहे हैं और आंदोलनरत हैं।

निष्कर्ष:

लद्दाख में निवास और आरक्षण से जुड़े नियमों को कानूनी रूप देना केंद्र सरकार का एक ऐतिहासिक कदम है, जो स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने और प्रशासन को विकेंद्रीकृत करने की दिशा में बढ़ाया गया कदम है। यह नीतियाँ न केवल स्थानीय लोगों को नौकरियों में प्राथमिकता देती हैं, बल्कि लद्दाख की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को भी सम्मान देती हैं। यह प्रयास जनआंदोलनों और जमीनी स्तर की चिंताओं का जवाब देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।