संदर्भ:
हाल ही में मेघालय हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई शुरू की है, जिसमें खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद द्वारा पारित खासी सामाजिक प्रथा (वंश) अधिनियम, 1997 की संवैधानिकता और इसके क्रियान्वयन को चुनौती दी गई है। यह अधिनियम खासी समाज की मातृवंशीय पहचान को संरक्षित करने के उद्देश्य से बनाया गया था। हालांकि, अब इस पर सवाल उठ रहे हैं कि यह अधिनियम उन व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति (ST) प्रमाणपत्र से वंचित करता है जो अपने पिता या पति का उपनाम अपनाते हैं, भले ही वे खासी वंश की सभी आवश्यक सामाजिक और पारंपरिक शर्तों को पूरा करते हों।
हाल की कानूनी घटनाएँ:
· याचिका में खासतौर पर 1997 के अधिनियम में उपनाम को लेकर लगाई गई शर्तों को चुनौती दी गई है, जिससे ST प्रमाणपत्र पाने में बाधा आ रही है।
· इसके जवाब में मेघालय हाई कोर्ट ने एडवोकेट जनरल को जवाब देने और जल्द समाधान सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
खासी वंश अधिनियम, 1997 के बारे में:
· यह अधिनियम खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (KHADC) द्वारा बनाया गया था।
· इसका मकसद खासी समाज की मातृवंशीय परंपराओं को संरक्षित करना है, जहाँ वंश, संपत्ति और पहचान मां की ओर से मिलती है।
· यह कानून खासी जनजातीय पहचान बनाए रखने के लिए केंद्रीय भूमिका निभाता है।
· अधिनियम के तहत केवल वे लोग ST दर्जा पा सकते हैं जो पारंपरिक मातृवंशीय नियमों का पालन करते हैं।
· इस कानून में सुधार या बदलाव की कोशिशें अक्सर कानूनी और सांस्कृतिक विवादों को जन्म देती हैं।
खासी समुदाय के बारे में:
खासी लोग भारत के मेघालय राज्य के खासी और जयंतिया पहाड़ियों में बसने वाली एक आदिवासी जनजाति हैं। उनकी संस्कृति, भाषा और सामाजिक ढांचा बहुत ही अलग और विशिष्ट है।
मुख्य विशेषताएँ:
· मातृवंशीय समाज: यहां वंश और संपत्ति मां की ओर से मिलती है।
· भाषा: खासी भाषा उनकी पहचान का अहम हिस्सा है। वे अंग्रेज़ी और हिंदी भी बोलते हैं।
· धर्म: ज़्यादातर लोग ईसाई हैं, कुछ हिंदू और मुसलमान भी हैं।
· जीविका: परंपरागत रूप से खेती पर निर्भर, लेकिन अब कई खासी युवा पेशेवर क्षेत्रों में भी आगे बढ़ रहे हैं।
· अनुसूचित जनजाति का दर्जा: भारत में उन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिससे उन्हें विशेष लाभ मिलते हैं।
संस्कृतिक परंपराएँ:
· त्योहार: शाद सुक मिंसिएम, नोंगक्रेम डांस फेस्टिवल और बेहदिएनखलाम प्रमुख त्योहार हैं।
· संगीत: डुइतारा (तार वाद्य) और तांगमुरी (बांसुरी) जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं।
· लिविंग रूट ब्रिज: खासी लोग जीवित पेड़ों की जड़ों से बनाए गए प्राकृतिक पुलों के लिए प्रसिद्ध हैं।
चुनौतियाँ:
· संस्कृति का क्षरण: आधुनिकता और शहरीकरण से पारंपरिक संस्कृति को नुकसान हो रहा है।
· भूमि संकट: खासी समुदाय अपनी जमीन की रक्षा और बाहरी लोगों से अतिक्रमण रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है।
· गरीबी और पिछड़ापन: कई खासी लोग आज भी गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं।
निष्कर्ष:
खासी वंश अधिनियम का उद्देश्य मातृवंशीय परंपराओं की रक्षा करना है, लेकिन उपनाम को लेकर बनाए गए कठोर नियम अब न्याय और संवैधानिक अधिकारों पर सवाल खड़े कर रहे हैं। जैसे-जैसे मेघालय हाई कोर्ट इस मुद्दे पर विचार कर रहा है, यह मामला यह दिखाता है कि किस तरह जनजातीय परंपराओं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा ST दर्जे के बराबर हक के बीच संतुलन बनाना