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Blog / 30 Dec 2025

मन की बात कार्यक्रम में भारत की सभ्यतागत और समावेशी विरासत का दृष्टिकोण

संदर्भ:

हाल ही में 28 दिसंबर 2025 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' के 129वें एपिसोड में राष्ट्र को संबोधित किया, जोकि वर्ष का उनका अंतिम प्रसारण था। इस संबोधन में सुरक्षा, संस्कृति, विज्ञान, शासन और जन-केंद्रित पहलों के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया, जो समावेशी विकास और सांस्कृतिक गौरव पर सरकार के जोर को दर्शाता है।

तमिल भाषा की पहल:

      • 'मन की बात' के दौरान, प्रधानमंत्री ने घरेलू स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमिल जो दुनिया की सबसे पुरानी जीवित शास्त्रीय भाषाओं में से एक, को बढ़ावा देने के प्रयासों को रेखांकित किया।
      • फिजी तमिल भाषा परियोजना का उद्देश्य फिजी संगम स्कूलों में तमिल शिक्षकों की तैनाती के माध्यम से गिरमिटियाओं के वंशजों को उनकी भाषाई और सांस्कृतिक जड़ों से फिर से जोड़ना है।
      •  काशी तमिल संगमम (KTS) उत्तर-दक्षिण सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करता है। "तमिल सीखें" (Tamil Karkalam) विषय पर इसका चौथा संस्करण, KTS 4.0, वाराणसी में हिंदी भाषी युवाओं को तमिल सीखने के लिए प्रोत्साहित करता है।
      • ये पहलें मिलकर भारत की सांस्कृतिक एकता, प्रवासी संपर्क , और भाषाई समावेशिता को उजागर करती हैं।

ज़ेहानपोरा-बारामूला के बौद्ध स्तूप:

      • प्रधानमंत्री ने बारामूला के पास प्राचीन बौद्ध स्तूपों की खोज पर भी ध्यान आकर्षित किया, जो कश्मीर की समृद्ध और बहुल सभ्यतागत विरासत पर जोर देता है।
      • ज़ेहानपोरा में कुषाण-युग का पुरातात्विक परिसर, जो लगभग 2,000 साल पुराना है, में स्तूप, मठवासी संरचनाएं, मिट्टी के बर्तन और गांधार शैली की टेराकोटा कला शामिल है। प्राचीन व्यापार मार्गों से जुड़ा हुआ और चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा दौरा किया गया यह स्थल, कश्मीर के इतिहास को बौद्ध धर्म के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में नया आकार देता है।
      • प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पुरातत्व कैसे भूले-बिसरे इतिहास को पुनर्जीवित करने, राष्ट्रीय गौरव को मजबूत करने और अतीत व वर्तमान के बीच एक सेतु के रूप में काम करता है।

पार्वती गिरि:

      • आगामी 77वें गणतंत्र दिवस का जिक्र करते हुए, प्रधानमंत्री ने ओडिशा की पार्वती गिरि को भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक गुमनाम नायिका के रूप में याद किया। वह 16 साल की उम्र में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुईं और बाद में अपना जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया, जिससे उन्हें "पश्चिमी ओडिशा की मदर टेरेसा" की उपाधि मिली।
      • उनके योगदान में अनाथालय स्थापित करना, आदिवासी कल्याण, कुष्ठ उन्मूलन और जेल सुधार के लिए काम करना शामिल था। उन्होंने जानबूझकर राजनीतिक पद से इनकार कर समाज की सेवा जारी रखी। 2026 में उनकी जन्म शताब्दी जमीनी स्तर के नेतृत्व, राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भागीदारी और निस्वार्थ सेवा के गांधीवादी आदर्शों को उजागर करती है।

नरसपुरम लेस क्राफ्ट, आंध्र प्रदेश:

      • प्रधानमंत्री ने नरसपुरम लेस क्राफ्ट की प्रशंसा एक ऐसे आदर्श मॉडल के रूप में की है, जो यह दर्शाता है कि किस प्रकार पारंपरिक कौशल महिला-नेतृत्व वाले विकास को गति दे सकते हैं। लगभग 150 वर्ष पुरानी यह हस्तनिर्मित क्रोशिया लेस परंपरा, जिसे अब भौगोलिक संकेत (GI टैग) प्राप्त है, ग्रामीण आंध्र प्रदेश में लाखों महिलाओं को आजीविका प्रदान कर रही है।
      • गोदावरी नदी के तट पर स्थित नरसपुर में उत्पन्न यह शिल्प अपने जटिल और सूक्ष्म क्रोशिया डिज़ाइनों के लिए प्रसिद्ध है। राज्य सरकार के सहयोग से नाबार्ड तथा हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद द्वारा कारीगरों को कौशल प्रशिक्षण, डिज़ाइन नवाचार और बेहतर बाज़ार तक पहुँच उपलब्ध कराई जा रही है।
      • इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है तथा महिला-केंद्रित आर्थिक सशक्तिकरण को सुदृढ़ आधार प्राप्त हो रहा है।