संदर्भ:
हाल ही में बिहार सरकार ने सीतामढ़ी ज़िले के पास स्थित पुनौरा धाम में एक भव्य जानकी मंदिर की वास्तुकला का डिज़ाइन जारी किया है। यह स्थान पारंपरिक रूप से माता सीता के जन्मस्थान के रूप में माना जाता है। यह परियोजना मिथिला की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देने और उसे पुनर्जीवित करने की एक महत्वपूर्ण पहल है। मिथिला भारत के सबसे प्राचीन और सांस्कृतिक रूप से संपन्न क्षेत्रों में से एक रहा है।
जानकी मंदिर परियोजना की विशेषताएं:
नए मंदिर परिसर में निम्नलिखित चीज़ें शामिल होंगी:
• माता सीता को समर्पित एक भव्य मंदिर
• चारों ओर सीढ़ियों से घिरा हुआ एक पवित्र सीता कुंड
• ध्यान के लिए एक हॉल और भक्तों के लिए सुव्यवस्थित दर्शन स्थल
• बेहतर सड़क संपर्क, थीम आधारित प्रवेश द्वार और समर्पित पार्किंग ज़ोन
इस डिज़ाइन का उद्देश्य तीर्थयात्रियों के अनुभव को बेहतर बनाना है, साथ ही इस स्थल की आध्यात्मिक भावना को भी बनाए रखना है।
मिथिला की विरासत में पुनौरा धाम का महत्व:
• पुनौरा धाम मिथिला क्षेत्र के केंद्र में स्थित एक पवित्र स्थल है, जो ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व से परिपूर्ण है। मान्यता है कि यह क्षेत्र राजा जनक का राज्य था, जो माता सीता के पिता थे।
• मिथिला का उल्लेख प्राचीन वेदों में भी मिलता है, और यह भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। ऐतिहासिक रूप से इसे ‘तिरहुत’ या ‘तिरभुक्ति’ के नाम से जाना जाता था। वर्तमान में यह क्षेत्र उत्तर बिहार के कई ज़िलों “जैसे सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, सहरसा और मधेपुरा” के साथ-साथ नेपाल के तराई क्षेत्र तक फैला हुआ है।
• मिथिला की भौगोलिक सीमाएं प्राकृतिक रूप से परिभाषित हैं, उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा नदी, पश्चिम में गंडक नदी और पूर्व में महानंदा नदी। इन प्राकृतिक सीमाओं ने मिथिला की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को सदियों से आकार देती रही है।
मिथिला के सांस्कृतिक आयाम:
• भाषा और साहित्य: मिथिला की प्रमुख भाषा मैथिली है, जो एक इंडो-आर्यन भाषा है और जिसका साहित्यिक इतिहास अत्यंत समृद्ध है। मैथिली के प्रसिद्ध कवि विद्यापति (1352–1448 ई.) की भक्ति और प्रेम से भरपूर कविताओं ने इस क्षेत्र की सांस्कृतिक चेतना पर गहरा प्रभाव डाला है। मैथिली साहित्य में महाकाव्य, लोककथाएं, नाटक और धार्मिक जीवनियों की समृद्ध परंपरा रही है, जो क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को मजबूती देती है।
• मधुबनी चित्रकला: मिथिला अपनी विशिष्ट मधुबनी चित्रकला के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है। यह परंपरागत कला शैली मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा बनाई जाती है और इसमें प्राकृतिक रंगों और ज्यामितीय आकृतियों का उपयोग होता है। इन चित्रों में अक्सर रामायण, स्थानीय जीवन, पेड़-पौधे और पशु-पक्षियों के दृश्य दर्शाए जाते हैं। यह कला न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि आज भी जीवित परंपरा के रूप में मिथिला की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखे हुए है।
• मिथिला मखाना: यह क्षेत्र मिथिला मखाना (Euryale ferox) के लिए भी प्रसिद्ध है, जो स्थानीय पोखरों और दलदली इलाकों में उगाया जाता है। इसे भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त है, जो इसकी आर्थिक उपयोगिता के साथ-साथ सांस्कृतिक महत्व को भी दर्शाता है।
निष्कर्ष:
पुनौरा धाम में जानकी मंदिर का निर्माण केवल एक धार्मिक संरचना का विकास नहीं, बल्कि मिथिला की सांस्कृतिक पहचान को सम्मान देने और संजोने की एक सार्थक पहल है। यह परियोजना क्षेत्र के इतिहास, भाषा, कला और आध्यात्मिक परंपराओं को संरक्षित करने के साथ-साथ उन्हें नई ऊर्जा देने का कार्य करती है। आधुनिक सुविधाओं से युक्त यह मंदिर परिसर न केवल श्रद्धालुओं को बेहतर अनुभव प्रदान करेगा, बल्कि मिथिला की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी नई पहचान दिलाएगा।