सन्दर्भ:
हाल ही में आईयूसीएन द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज आउटलुक 4 रिपोर्ट जारी किया गया, जिसमें पाया गया कि जलवायु परिवर्तन अब प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थलों के लिए सबसे बड़ा वर्तमान खतरा बन चुका है। यह पहले की तुलना में कहीं अधिक संख्या में स्थलों को प्रभावित कर रहा है।
मुख्य निष्कर्ष:
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- अब 43% स्थल (271 प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थलों में से 117) जलवायु परिवर्तन से उच्च या बहुत उच्च स्तर के खतरे का सामना कर रहे हैं। यह संख्या 2020 में 33% थी।
- आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (Invasive Alien Species – IAS) दूसरा सबसे आम खतरा हैं, जो लगभग 30% स्थलों को प्रभावित कर रही हैं।
- वन्यजीव और पौधों की बीमारियाँ एक उभरता हुआ खतरा बन गई हैं। अब ये 9% स्थलों को प्रभावित कर रही हैं (2020 में यह केवल 2% थी)।
- जिन स्थलों के भविष्य में संरक्षण की स्थिति सकारात्मक मानी जा रही थी, उनका अनुपात घट गया है। अब केवल 57% स्थलों का भविष्य सकारात्मक माना जा रहा है, जो 2020 में 62% था।
- अब 43% स्थल (271 प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थलों में से 117) जलवायु परिवर्तन से उच्च या बहुत उच्च स्तर के खतरे का सामना कर रहे हैं। यह संख्या 2020 में 33% थी।
विश्व धरोहर स्थलों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव:
इसके प्रभाव अनेक और परस्पर जुड़े हुए हैं —
1. कोरल ब्लीचिंग और रीफ का क्षरण: समुद्र के बढ़ते तापमान और अम्लीकरण (acidification) से कोरल प्रणालियाँ, जैसे कि ग्रेट बैरियर रीफ, बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं।
2. हिमनदों का पिघलना: बर्फ के पिघलने से ठंडे वातावरण में रहने वाली प्रजातियों का आवास घट रहा है, नीचे की ओर जल प्रवाह और पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता प्रभावित हो रही है।
3. अधिक बार और तीव्र आग, सूखा एवं चरम मौसमी घटनाएँ: ये पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करती हैं, उनकी सहनशीलता घटाती हैं, और क्रमिक पारिस्थितिक विफलताएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
4. आक्रामक प्रजातियों और रोगजनकों का प्रसार: जैसे-जैसे तापमान और वर्षा के पैटर्न बदलते हैं, वे जीव जो पहले जलवायु सीमाओं के कारण सीमित थे, अब फैल सकते हैं, जिससे नई बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
आवश्यक सुझाव:
आईयूसीएन की रिपोर्ट और संबंधित विश्लेषण कई आवश्यक कदम सुझाते हैं —
· मजबूत जलवायु अनुकूलन रणनीतियाँ: संरक्षण योजनाओं में केवल “संरक्षण” ही नहीं बल्कि “अनुकूलन” (adaptation) के उपायों को भी स्पष्ट रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
· स्थल प्रबंधन, निगरानी और पुनर्स्थापन में अधिक निवेश: कई स्थल अपर्याप्त वित्त पोषण और कमजोर शासन से ग्रस्त हैं।
· स्थानीय और आदिवासी समुदायों का समावेश: धरोहर स्थलों के संरक्षण हेतु निर्णय-प्रक्रिया में स्थानीय और पारंपरिक ज्ञान को शामिल करना आवश्यक है।
· वैश्विक सहयोग: जलवायु परिवर्तन सीमाओं से परे की समस्या है — ग्रीनहाउस गैसों को कम करना, डेटा साझा करना और वित्तीय सहायता प्रदान करना एक वैश्विक सामूहिक प्रयास होना चाहिए।
निष्कर्ष:
आईयूसीएन की नई रिपोर्ट एक गंभीर चेतावनी देती है। जलवायु परिवर्तन अब कोई भविष्य का खतरा नहीं, बल्कि वर्तमान और व्यापक संकट है जो लगभग आधे प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थलों को प्रभावित कर रहा है। यदि उत्सर्जन में कमी, पारिस्थितिक तंत्र की सहनशीलता बढ़ाने और अनुकूलन में निवेश के ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो पृथ्वी के अनेक अनमोल प्राकृतिक परिदृश्य और पारिस्थितिक प्रणालियाँ स्थायी रूप से नष्ट हो सकती हैं।
