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Blog / 28 Aug 2025

गगनयान के लिए इसरो का एयर ड्रॉप परीक्षण

संदर्भ:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 24 अगस्त 2025 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में गगनयान मिशन हेतु इंटीग्रेटेड एयर ड्रॉप परीक्षण (IADT-01) सफलतापूर्वक संपन्न किया। यह उपलब्धि गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के लिए पैराशूट आधारित गति-नियंत्रण (डिसेलरेशन) प्रणाली के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

परीक्षण की मुख्य विशेषताएं:

·         सिम्युलेटेड क्रू मॉड्यूल: 4.8 टन वजनी नकली क्रू मॉड्यूल को भारतीय वायुसेना के चिनूक (Chinook) हेलिकॉप्टर से 3 किलोमीटर की ऊँचाई से गिराया गया।

·         पैराशूट प्रणाली: मॉड्यूल में कुल 10 पैराशूट लगाए गए थे, जिसमें 2 एपेक्स कवर सेपरेशन (ACS) पैराशूट, 2 ड्रोग पैराशूट, 3 पायलट पैराशूट और 3 मुख्य पैराशूट शामिल थे। प्रत्येक मुख्य पैराशूट का व्यास 25 मीटर था।

·         गति नियंत्रण प्रक्रिया: पैराशूट निर्धारित क्रम में खुले और मॉड्यूल की गति को धीरे-धीरे कम करते हुए अंततः लगभग 8 मीटर प्रति सेकंड तक ला दिया गया, जिससे यह सुरक्षित रूप से जल सतह पर उतरा।

·         पुनर्प्राप्ति (रिकवरी): पानी में गिरने (स्प्लैशडाउन) के बाद क्रू मॉड्यूल को सफलतापूर्वक निकाला गया और नौसेना के जहाज़ आईएनएस अन्वेषा द्वारा चेन्नई बंदरगाह तक पहुँचाया गया।

ISRO aces key Air Drop Test for Gaganyaan mission

परीक्षण का महत्व:

इस सफल एयर ड्रॉप परीक्षण ने यह सिद्ध कर दिया कि गगनयान मिशन की पैराशूट आधारित गति-नियंत्रण प्रणाली पूरी तरह से प्रभावी और भरोसेमंद है।

·         यही प्रणाली अंतरिक्ष से वापसी के दौरान क्रू मॉड्यूल की गति को नियंत्रित करेगी और समुद्र में सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करेगी।

·         इस परीक्षण में लॉन्च पैड पर आपातकालीन स्थिति (Abort Scenario) का भी सफल अनुकरण किया गया, जिससे यह प्रमाणित हुआ कि आपातकाल में भी यह प्रणाली सुचारु रूप से कार्य कर सकती है।

गगनयान मिशन के बारे में:

गगनयान मिशन भारत का पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य यह साबित करना है कि भारत अपनी स्वदेशी क्षमताओं के बल पर अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित रूप से अंतरिक्ष में भेजने और वापस लाने में सक्षम है।

·         इस मिशन का मुख्य लक्ष्य “तीन अंतरिक्ष यात्रियों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में 400 किलोमीटर की ऊँचाई पर तीन दिनों तक स्थापित करना और तत्पश्चात उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर समुद्र में उतारना है।

·         यह मिशन न केवल भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं का प्रतीक है, बल्कि उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम भी है।

प्रक्षेपण यान: LVM-3

गगनयान मिशन के लिए लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM-3) का उपयोग होगा। इसे पहले जीएसएलवी मार्क-3 कहा जाता था और यह इसरो का भरोसेमंद भारी-भरकम रॉकेट है। इसमें तीन चरण हैं:

  • पहला चरण: दो ठोस ईंधन वाले बूस्टर।
  • दूसरा चरण: दो तरल ईंधन वाले विकस-2 इंजन।
  • तीसरा चरण: तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन पर चलने वाला स्वदेशी सी-20 क्रायोजेनिक इंजन।

ऑर्बिटल मॉड्यूल:

यह 8.2 टन वजनी होगा और दो हिस्सों में बंटा है:

  • क्रू मॉड्यूल: इसमें 3 अंतरिक्ष यात्री रहेंगे। इसमें पैराशूट सिस्टम, जीवन-समर्थन प्रणाली (ECLSS) और आपातकालीन स्थिति के लिए क्रू एस्केप सिस्टम होगा।
  • सर्विस मॉड्यूल: यह अंतरिक्ष में आगे बढ़ने के लिए प्रणोदन (propulsion) देगा और सुरक्षित वापसी के लिए डिऑर्बिट बर्न करेगा।

निष्कर्ष:

यह एयर ड्रॉप परीक्षण अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। वर्ष 2027 में प्रस्तावित पहले मानवयुक्त गगनयान मिशन की तैयारी में ऐसे परीक्षण यह प्रमाणित करते हैं कि सभी रिकवरी प्रणालियाँ पूर्णतः भरोसेमंद और सक्षम हैं। इसरो, मानव उड़ान से पूर्व बिना चालक वाले मिशन (G-1, G-2, G-3) तथा आवश्यक आधारभूत ढाँचे के विकास पर लगातार कार्यरत है, ताकि इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को समयबद्ध और सफलतापूर्वक पूरा किया जा सके।