संदर्भ:
भारत 11 से 13 सितंबर 2025 तक नई दिल्ली में पहली बार अंतरराष्ट्रीय पांडुलिपि विरासत सम्मेलन की मेजबानी करेगा। यह आयोजन भारत की अमूल्य पांडुलिपि धरोहर को संरक्षित करने, डिजिटाइज करने और वैश्विक स्तर पर साझा करने के लिए किए जा रहे नए राष्ट्रीय प्रयासों का हिस्सा है।
सम्मेलन का महत्त्व:
· यह स्वामी विवेकानंद के 1893 में शिकागो में दिए गए ऐतिहासिक भाषण की 132वीं वर्षगांठ का स्मरण करता है, जो भारत की बौद्धिक उपस्थिति का प्रतीक है।
· इसमें अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ, विचारक और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षक भाग लेंगे।
· यह सम्मेलन भारत की विरासत संरक्षण में नेतृत्व भूमिका को दर्शाएगा।
प्रमुख विषय और सत्र:
सम्मेलन में कई प्रमुख विषयों पर व्याख्यान, शोध पत्र और परिचर्चाएं होंगी, जैसे:
· संरक्षण और मरम्मत: नाजुक पांडुलिपियों की सफाई और मरम्मत की तकनीकें।
· सर्वेक्षण और प्रलेखन: पांडुलिपियों को पहचानने और सूचीबद्ध करने के मानक।
· डिजिटलीकरण तकनीकें:
o हस्तलिखित पाठ पहचान (HTR) – स्क्रिप्ट को मशीन-पठनीय रूप में बदलना।
o कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) – भाषाई विश्लेषण और सामग्री की समझ के लिए।
o IIIF प्रोटोकॉल – उच्च गुणवत्ता वाली छवियों को साझा करने के अंतरराष्ट्रीय मानक।
· पालियोग्राफी और कोडिकोलॉजी – ऐतिहासिक लिपियों और पांडुलिपि संरचना का अध्ययन।
· लिपि प्रशिक्षण – पुरानी लिपियों को पढ़ने और लिप्यांतरण की क्षमता का विकास।
· कानूनी और नैतिक मुद्दे – पांडुलिपियों का स्वामित्व, पुनःप्राप्ति और समुदाय अधिकार।
भारत में पांडुलिपियाँ:
भारत विश्व की सबसे समृद्ध और विविध पांडुलिपि विरासतों में से एक है, जिसकी अनुमानित संख्या 1 करोड़ से अधिक है। इनमें शामिल हैं:
· दर्शन और दर्शनशास्त्र
· वैदिक अनुष्ठान
· विज्ञान और गणित (जैसे खगोलशास्त्र, आयुर्वेद)
· साहित्य, संगीत और कला
· ज्योतिष और वास्तु शास्त्र
इन पांडुलिपियों को निम्न स्थानों पर संरक्षित किया जाता है:
· मंदिरों और मठों में
· जैन भंडारों में
· राज्य अभिलेखागारों और संग्रहालयों में
· निजी परिवारों की लाइब्रेरियों में
हालांकि, उचित देखभाल के अभाव में कई पांडुलिपियाँ नष्ट होने की कगार पर हैं।
ज्ञान भारतम् मिशन:
सरकार ने 2025-26 के बजट में ज्ञान भारतम् मिशन की घोषणा की है, जो 2003 में शुरू हुए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन का विस्तार है।
इसके प्रमुख लक्ष्य:
· वैज्ञानिक तरीके से पांडुलिपियों का संरक्षण और पुनर्संरक्षण।
· बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण।
· आधुनिक कैटलॉगिंग और मेटाडेटा मानकों का विकास।
· AI और HTR तकनीक से पांडुलिपियों का लिप्यंतरण और अनुवाद।
· युवा शोधकर्ताओं और संरक्षकों को प्रशिक्षित करना।
· अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग।
निष्कर्ष:
अंतरराष्ट्रीय पांडुलिपि विरासत सम्मेलन भारत के प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान और तकनीक से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह पहल न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का कार्य करती है, बल्कि युवा पीढ़ी को इससे जोड़ती है और वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका को और मजबूत बनाती है।
भारत यह संदेश देता है कि सांस्कृतिक विरासत केवल अतीत की चीज़ नहीं, बल्कि आधुनिक समाज के लिए एक जीवंत स्रोत है—ज्ञान, नवाचार और पहचान के लिए।