सन्दर्भ:
भारत ने हाल ही में छठ महापर्व को यूनेस्को की मानवता की “अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH)” की प्रतिनिधि सूची में वर्ष 2026–27 चक्र हेतु नामांकित करने की प्रक्रिया आरंभ की है। इस पहल का उद्देश्य इस प्राचीन, सामुदायिक-आधारित पर्व को सम्मानित करना और संरक्षित करना है, जो पूर्वी भारत तथा वैश्विक भारतीय प्रवासी समुदायों में गहन सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्व रखता है।
छठ महापर्व के बारे में:
छठ महापर्व एक चार-दिवसीय हिंदू त्योहार है, जो मुख्यतः बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में व्यापक रूप से मनाया जाता है। यह पर्व विश्वभर में भारतीय प्रवासी समुदायों द्वारा भी प्रमुख रूप से आयोजित किया जाता है।
इस पर्व की मुख्य विशेषताएँ:
- निर्जल व्रत (जल ग्रहण किए बिना उपवास रखना)
- नदियों या तालाबों में पवित्र स्नान करना
- अस्ताचल और उदयाचल सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना
- छठी मैया की पूजा, जिन्हें सूर्यदेव की बहन का रूप माना जाता है
यह पर्व अपनी पर्यावरण-सचेतना, सामुदायिक सहभागिता, तथा पुजारियों की अनुपस्थिति (अर्थात् अनुष्ठानों का प्रत्यक्ष संपादन स्वयं श्रद्धालुओं द्वारा) के लिए विशिष्ट है।
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) के बारे में:
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत से अभिप्राय उन प्रथाओं, अभिव्यक्तियों, ज्ञान और कौशलों से है, जिन्हें समुदाय, समूह और व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा मानते हैं।
- मूर्त विरासत (जैसे स्मारक, भवन, वस्तुएँ) के विपरीत, ICH में जीवित परंपराएँ आती हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी संप्रेषित होती रहती हैं।
- इसमें उन उपकरणों, कलाकृतियों और सांस्कृतिक स्थलों को भी शामिल किया जाता है, जो इन परंपराओं से जुड़े होते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सांस्कृतिक विरासत केवल भौतिक स्थलों तक सीमित न रहकर सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों के गतिशील रूपों को भी समाहित करे।
यूनेस्को के 2003 अभिसमय (Convention) के अनुसार ICH के क्षेत्र (Domains):
1. मौखिक परंपराएँ और अभिव्यक्तियाँ, जिनमें भाषाएँ भी शामिल हैं
2. प्रदर्शन कलाएँ
3. सामाजिक प्रथाएँ, अनुष्ठान और उत्सवी आयोजन
4. प्रकृति और ब्रह्मांड से संबंधित ज्ञान एवं प्रथाएँ
5. पारंपरिक शिल्पकला
छठ महापर्व सामाजिक प्रथाओं, अनुष्ठानों और उत्सवी आयोजनों की श्रेणी में आता है, जिससे यह यूनेस्को की मान्यता हेतु एक सशक्त प्रत्याशी बनता है।
भारत के वर्तमान ICH तत्व (यूनेस्को सूची में):
वर्तमान में भारत के 15 अमूर्त सांस्कृतिक विरासत तत्व यूनेस्को की प्रतिनिधि सूची में अंकित हैं:
क्रमांक |
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत तत्व |
अंकन का वर्ष |
1 |
कुटियाट्टम, संस्कृत रंगमंच |
2008 |
2 |
वैदिक मंत्रोच्चार की परंपरा |
2008 |
3 |
रामलीला, पारंपरिक रामायण प्रदर्शन |
2008 |
4 |
रम्मान, गढ़वाल हिमालय का उत्सव एवं अनुष्ठानिक रंगमंच |
2009 |
5 |
छाऊ नृत्य |
2010 |
6 |
राजस्थान के कालबेलिया लोकगीत और नृत्य |
2010 |
7 |
मुदियेट्टु, केरल का अनुष्ठानिक रंगमंच और नृत्य-नाटक |
2010 |
8 |
लद्दाख का बौद्ध मंत्रोच्चार |
2012 |
9 |
मणिपुर का संकीर्तन |
2013 |
10 |
पंजाब के ठठेरा समुदाय की पारंपरिक पीतल और तांबे की कारीगरी |
2014 |
11 |
नवरोज़ |
2016 |
12 |
योग |
2016 |
13 |
कुंभ मेला |
2017 |
14 |
कोलकाता की दुर्गा पूजा |
2021 |
15 |
गुजरात का गरबा |
2023 |
निष्कर्ष:
छठ महापर्व का यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची हेतु नामांकन भारत की सांस्कृतिक आत्मा में निहित एक गहन आध्यात्मिक एवं पर्यावरण-सचेत पर्व को वैश्विक मान्यता दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह केवल भारत के भीतर ही नहीं, बल्कि प्रवासी समुदायों द्वारा संजोई गई परंपराओं का भी सम्मान करता है। यदि इसे सूची में अंकित किया जाता है, तो छठ महापर्व को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त होगी, जिससे इसके संरक्षण, पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरण और वैश्विक जागरूकता को सुदृढ़ आधार मिलेगा।