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Blog / 26 Jun 2025

कीट-आधारित पशु आहार: टिकाऊ पशुपालन की दिशा में नवाचार

सन्दर्भ:
पारंपरिक पशुपालन प्रणालियाँ न केवल भूमि, जल और संसाधनों पर अत्यधिक दबाव डालती हैं, बल्कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जैव विविधता क्षरण, और एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (AMR) जैसी गंभीर समस्याओं को भी जन्म देती हैं। वर्तमान वैश्विक खाद्य प्रणाली एक ऐसे संक्रमण काल से गुजर रही है जहाँ प्रोटीन की मांग तेजी से बढ़ रही है और टिकाऊ समाधान की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में कीट-आधारित पशु आहार (Insect-based Feed) एक संभावित समाधान के रूप में उभर रहा है।

AMR: एक बढ़ता खतरा:

  • एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (AMR) वह स्थिति है जब जीवाणु, वायरस या अन्य रोगजनक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं, जिससे दवाएं असर नहीं करतीं। यह समस्या मुख्यतः एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक और गलत उपयोग के कारण होती है। इससे साधारण बीमारियां भी जानलेवा बन सकती हैं।
  • पशुपालन में एंटीबायोटिक का अत्यधिक प्रयोग विश्व स्तर पर चिंता का विषय बन चुका है। अनुमान है कि 2030 तक एंटीबायोटिक उपयोग 2 लाख टन तक पहुँच सकता है। इससे एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीवाणु (AMR genes) उत्पन्न होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकते हैं।
  • विशेष रूप से निम्न-और-मध्यम आय वाले देशों (LMICs) में ऐसे कई एंटीबायोटिक उपयोग में हैं जिन्हें विकसित देशों में प्रतिबंधित किया जा चुका है, जैसे क्लोरैमफेनिकोल, टायलोसिन और TCN मिश्रण। ये पदार्थ मानव शरीर में गुर्दे, रक्त व कैंसर संबंधी जोखिम को बढ़ाते हैं।


 

कीट-आधारित आहार के लाभ:

1.        पोषणात्मक दृष्टि से समृद्ध:
कीटों में उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, फैट, फाइबर, जिंक, कैल्शियम व आयरन होते हैं।

2.      पर्यावरणीय दृष्टि से लाभकारी:
कीटों को जैविक कचरे पर पाला जा सकता है, जिससे वे कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन उत्पन्न करते हैं।

3.      कम संसाधन आवश्यकताएँ:
कीट पालन के लिए भूमि, जल, और चारे की आवश्यकता अन्य पशुओं की तुलना में बहुत कम होती है।

4.     बेहतर लागत-लाभ अनुपात:
अनुसंधानों के अनुसार कीट प्रोटीन, सोया व फिश मील की तुलना में अधिक पाचनशील और प्रभावशाली होता है। उदाहरणस्वरूप, 1 किग्रा फिश मील की जगह 0.85 किग्रा ब्लैक सोल्जर फ्लाई प्रोटीन पर्याप्त है।

नीतिगत और वैश्विक स्वीकृति:
आज 40 से अधिक देशों ने पशु आहार में कीटों के उपयोग को स्वीकृति दी है। भारत में भी इसे "क्लाइमेट-स्मार्ट" समाधान के रूप में देखा जा रहा है। FAO का अनुमान है कि 2050 तक वैश्विक खाद्य उत्पादन में 70% की वृद्धि आवश्यक होगी, और मांस उत्पादन दोगुना होगा।
भारत में पहल:

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और इसके संबद्ध संस्थानों ने हाल के वर्षों में कीट-आधारित पशु आहार को बढ़ावा देने की दिशा में कई समझौते (MoUs) किए हैं:

  • मार्च 2023: ICAR-CIBA ने अल्ट्रा न्यूट्री इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ काले सैनिक मक्खी (Black Soldier Fly - Hermetia illucens) के लार्वा को एक्वा-फीड में उपयोग करने हेतु समझौता किया।
  • जून 2024: CIBA ने बेंगलुरु की लूपवोर्म कंपनी के साथ झींगा और एशियाई सीबास के लिए कीट-आधारित प्रोटीन के उपयोग पर समझौता किया।
  • जनवरी 2025: ICAR-CMFRI ने कोयंबटूर की भैरव रेन्दरेर्स (Bhairav Renderers) के साथ सहयोग किया।

चुनौतियाँ और आगे की राह

1.         सांस्कृतिक स्वीकार्यता: भारत जैसे देशों में कीटों को भोजन या पशु आहार के रूप में स्वीकार करना सामाजिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

2.      नीतिगत अस्पष्टता: भारत में कीट-आधारित फीड के लिए अब तक कोई स्पष्ट कानूनी ढाँचा नहीं है।

3.       औद्योगिक मानकीकरण: उत्पादन, भंडारण और गुणवत्ता मानकों पर दिशानिर्देशों की आवश्यकता है।

4.      शोध एवं नवाचार में निवेश: अधिक संस्थानों, स्टार्टअप्स और अनुसंधान केंद्रों को जोड़ने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:
भारत का कीट-आधारित पशु आहार की दिशा में बढ़ना एक वैज्ञानिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से परिपक्व कदम है। यह न केवल पशुपालन को टिकाऊ बना सकता है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रख सकता है। भविष्य की खाद्य सुरक्षा और AMR जैसे वैश्विक संकट से निपटने हेतु यह नवाचार अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।