संदर्भ:
हाल ही में नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन ने भारत में बच्चों में गैस्ट्रोएंटेराइटिस की रोकथाम में स्वदेशी रोटावायरस वैक्सीन, रोटावैक की प्रभावशीलता के बारे में ठोस प्रमाण प्रदान किए हैं। शोधकर्ता द्वारा किया गया यह अवलोकनात्मक, बहु-केंद्रीय विश्लेषण जिसमें नौ राज्यों के 31 अस्पताल शामिल थे 2016 से 2020 तक चला।
अध्ययन का अवलोकन:
इस अध्ययन का उद्देश्य रोटावैक, एक मौखिक रोटावायरस वैक्सीन, जिसे 2016 में भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) में शुरू किया गया था, की वास्तविक दुनिया में प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना था। 6, 10 और 14 सप्ताह की आयु में दिया जाने वाला यह टीका यूआईपी के तहत सभी पात्र लाभार्थियों को निःशुल्क प्रदान किया गया था।
मुख्य निष्कर्ष:
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- वैक्सीन प्रभावशीलता: अध्ययन में यह पाया गया कि गंभीर रोटावायरस गैस्ट्रोएन्टराइटिस (Severe Rotavirus Gastroenteritis – SRVGE) के खिलाफ वैक्सीन की समायोजित प्रभावशीलता 54% थी, जो पहले किए गए चरण-3 नैदानिक परीक्षणों में देखी गई प्रभावशीलता के अनुरूप है।
- स्थायी प्रभाव: यह प्रभावशीलता जीवन के पहले दो वर्षों में स्थिर बनी रही, वह अवधि जब बच्चे रोटावायरस संक्रमण के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।
- अस्पताल में भर्ती दरें: बाल रोटावायरस-संबंधी अस्पताल में भर्ती मामलों में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई, जिससे यह सिद्ध हुआ कि यह वैक्सीन स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर बोझ को कम करने में सहायक है।
- वैक्सीन प्रभावशीलता: अध्ययन में यह पाया गया कि गंभीर रोटावायरस गैस्ट्रोएन्टराइटिस (Severe Rotavirus Gastroenteritis – SRVGE) के खिलाफ वैक्सीन की समायोजित प्रभावशीलता 54% थी, जो पहले किए गए चरण-3 नैदानिक परीक्षणों में देखी गई प्रभावशीलता के अनुरूप है।
रोटावैक के बारे में:
रोटावैक रोटावायरस गैस्ट्रोएंटेराइटिस से बचाव के लिए एक मौखिक टीका है। यह एक अत्यधिक संक्रामक रोग है जो शिशुओं और छोटे बच्चों में गंभीर दस्त और उल्टी का कारण बनता है। यह टीका तरल रूप में मुँह द्वारा दिया जाता है।
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- रोटावैक को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से विकसित किया गया था, जिसमें जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत बायोटेक, अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान, रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय और PATH शामिल थे, और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन व अन्य संस्थाओं का सहयोग प्राप्त था।
- रोटावैक को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से विकसित किया गया था, जिसमें जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत बायोटेक, अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान, रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय और PATH शामिल थे, और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन व अन्य संस्थाओं का सहयोग प्राप्त था।
महत्व:
रोटावायरस पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में गंभीर गैस्ट्रोएंटेराइटिस का एक प्रमुख कारण है, जिसके परिणामस्वरूप दुनिया भर में हर साल लगभग 128,500 मौतें होती हैं।
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- भारत में इन वैश्विक मौतों का लगभग पाँचवाँ हिस्सा होता है। रोटावैक की शुरुआत इस मृत्यु दर को कम करने में एक महत्वपूर्ण कदम रही है, खासकर कम संसाधन वाले क्षेत्रों में।
- भारत में इन वैश्विक मौतों का लगभग पाँचवाँ हिस्सा होता है। रोटावैक की शुरुआत इस मृत्यु दर को कम करने में एक महत्वपूर्ण कदम रही है, खासकर कम संसाधन वाले क्षेत्रों में।
निष्कर्ष:
इस व्यापक अध्ययन के निष्कर्ष भारत में बच्चों में गंभीर रोटावायरस गैस्ट्रोएंटेराइटिस की रोकथाम में स्वदेशी रोटावैक वैक्सीन की प्रभावकारिता को रेखांकित करते हैं। यूआईपी में इसके शामिल होने से न केवल अस्पताल में भर्ती होने की दर में कमी आई है, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में, विशेष रूप से दस्त रोगों के कारण होने वाली बाल मृत्यु दर से निपटने में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि भी है।
