संदर्भ:
हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने नई दिल्ली में चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ बातचीत के दौरान “ताइवान को चीन का हिस्सा” बताया। इस बयान का खंडन करते हुए, भारत ने स्पष्ट किया है कि ताइवान को लेकर उसकी नीति अपरिवर्तित और स्थिर बनी हुई है।
कूटनीतिक स्थिति और भारत का दृष्टिकोण:
· मंदारिन तथा बाद में अंग्रेज़ी में जारी किए गए चीनी बयान में यह दावा किया गया कि भारत ने ताइवान को लेकर चीन के रुख को स्वीकार कर लिया है।
· हालांकि, भारत सरकार के सूत्रों ने इस दावे का स्पष्ट खंडन किया है और बताया कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन द्वारा प्रस्तुत उक्त विशिष्ट वाक्यांश का प्रयोग नहीं किया।
· भारत ने यह भी रेखांकित किया कि यद्यपि वह ताइवान को एक स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं देता, फिर भी ताइवान के साथ उसके आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक संबंध मजबूत और व्यापक हैं।
· इसके अतिरिक्त, भारत ने 2010 के बाद से 'एक चीन नीति' को दोहराने से परहेज किया है, खासकर तब से जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के निवासियों को विवादित क्षेत्र मानते हुए उन्हें स्टेपल्ड वीज़ा जारी किए थे।
निहितार्थ:
· भारत ने ‘एक चीन नीति’ को दोहराने से इनकार कर चीन को उसकी संप्रभुता संबंधी चिंताओं, जैसे अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर, के प्रति एक संकेत दिया है।
· भारत बिना किसी औपचारिक कूटनीतिक नियमों का उल्लंघन किए, चीन और ताइवान दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित कर रहा है और अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता दिखा रहा है। यह स्थिति वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ताइवान के बढ़ते महत्व को दर्शाती है।
· भारत ने स्पष्ट किया है कि वह ताइवान के साथ आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक संबंध बनाए रखेगा, विशेषकर अर्धचालक, इलेक्ट्रॉनिक्स और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने का इरादा रखता है।
भारत-ताइवान संबंधों के विषय में:
· 1990 के दशक की शुरुआत में प्रतिनिधि कार्यालयों के उद्घाटन के साथ ही भारत-ताइवान संबंध प्रगाढ़ होने लगे। भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) और ताइपे आर्थिक एवं सांस्कृतिक केंद्र (TECC) वर्तमान में वास्तविक दूतावासों के समान कार्य कर रहे हैं। भारत की पूर्वोन्मुखी नीति और ताइवान की 2016 में अपनाई गई दक्षिणोन्मुखी नीति ने संबंधों के विस्तार के लिए मजबूत आधार प्रदान किया है।
आर्थिक और तकनीकी संबंध:
· 2023 में द्विपक्षीय व्यापार 8.22 अरब डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें ताइवान का निवेश मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) और सेमीकंडक्टर क्षेत्रों में है। फॉक्सकॉन और टीएसएमसी जैसी प्रमुख कंपनियाँ भारत में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही हैं, जबकि टाटा-पावरचिप जैसे संयुक्त उद्यम सेमीकंडक्टर सहयोग को प्रदर्शित करते हैं। चीन के दबाव के बावजूद, दोनों पक्ष तकनीकी और विनिर्माण क्षेत्र में पारस्परिक लाभकारी संबंधों को बढ़ावा दे रहे हैं।
निष्कर्ष:
यह असहमति भारत-चीन संबंधों में मौजूदा राजनयिक संपर्कों के बावजूद अंतर्निहित तनाव को दर्शाती है। भारत का सावधानीपूर्ण रुख चीन के साथ राजनयिक प्रोटोकॉल का उल्लंघन किए बिना ताइवान के साथ संबंधों को संतुलित करने के उसके प्रयासों का संकेत देता है, साथ ही अपनी क्षेत्रीय अखंडता के प्रति पारस्परिक सम्मान की भी मांग करता है। द्विपक्षीय संबंधों में तनाव बना हुआ है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के लिए चीन की प्रस्तावित यात्रा से पहले ये संबंध सावधानीपूर्वक आगे बढ़ रहे हैं।