संदर्भ:
हाल ही में आईयूसीएन द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट (आईयूसीएन कंज़र्वेशन कांग्रेस में) ने चेतावनी दी है कि वर्तमान समय में भारत में डुगोंग (Dugong) की दीर्घकालिक अस्तित्व संभावना “विशेषकर कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी–पाल्क खाड़ी और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में” “बहुत अनिश्चित” हो गई है।
डुगोंग के बारे में:
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- डुगोंग, बड़े शाकाहारी समुद्री स्तनधारी (Marine Mammals) हैं, जिन्हें आमतौर पर "सी काउ" यानी समुद्री गाय के नाम से जाना जाता है। ये तटीय क्षेत्रों के उथले पानी में रहते हैं और मुख्य रूप से समुद्री घास खाते हैं। डुगोंग दिखने में मैनेटी से मिलते-जुलते हैं, लेकिन मैनेटी के विपरीत ये पूरी तरह समुद्री प्राणी होते हैं और इनकी पूँछ डॉल्फ़िन जैसी होती है।
- यह आईयूसीएन रेड लिस्ट में ‘कमज़ोर’ (Vulnerable) श्रेणी में शामिल हैं और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत पूर्ण रूप से संरक्षित प्रजाति हैं।
- डुगोंग, बड़े शाकाहारी समुद्री स्तनधारी (Marine Mammals) हैं, जिन्हें आमतौर पर "सी काउ" यानी समुद्री गाय के नाम से जाना जाता है। ये तटीय क्षेत्रों के उथले पानी में रहते हैं और मुख्य रूप से समुद्री घास खाते हैं। डुगोंग दिखने में मैनेटी से मिलते-जुलते हैं, लेकिन मैनेटी के विपरीत ये पूरी तरह समुद्री प्राणी होते हैं और इनकी पूँछ डॉल्फ़िन जैसी होती है।
भारत में डुगोंग संकट में क्यों हैं?
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खतरा |
कारण / विवरण |
डुगोंग पर प्रभाव |
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समुद्री घास के आवास का नुकसान |
ड्रेजिंग, तटीय निर्माण, बंदरगाहों का विस्तार, एक्वाकल्चर गतिविधियाँ, प्रदूषण और तलछट जमाव |
इनके मुख्य भोजन (समुद्री घास) का निरंतर नष्ट होना इनके जीवन को प्रभावित कर रहा है |
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मछली पकड़ना |
गिलनेट में उलझना; डुगोंग का अधिक मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों से लगातार संपर्क |
मृत्यु का प्रमुख कारण; मुख्य हॉटस्पॉट: तमिलनाडु, अंडमान एवं निकोबार, कच्छ की खाड़ी |
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प्रदूषण और जहरीली धातुएँ |
औद्योगिक रसायनों का कचरा, कृषि अपवाह, बिना शोधित सीवेज, समुद्री कचरा- आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड जैसी धातुएँ |
ये विषैले तत्व समुद्री घास में जमा होते हैं, डुगोंग के लीवर, किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान |
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धीमी प्रजनन दर |
मादा कई वर्षों में एक बार शावक को जन्म देती है; गर्भधारण अवधि लंबी; बच्चों की मृत्यु दर अधिक |
थोड़ी भी अतिरिक्त मृत्यु से आबादी तेजी से गिर सकती है, जिससे दीर्घकालिक अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है |
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जलवायु परिवर्तन |
समुद्र का तापमान बढ़ना, समुद्र स्तर में वृद्धि, समुद्री घास का सफेद पड़ना (Bleaching), चक्रवात और तूफानों में बढ़ोतरी |
आवास की गुणवत्ता और खाद्य उपलब्धता पर गंभीर असर; अन्य खतरों को और अधिक बढ़ावा |
पारिस्थितिक महत्व:
डुगोंग को इकोसिस्टम इंजीनियर माना जाता है। उनके चरने (ग्रेसिंग) से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को कई महत्वपूर्ण लाभ मिलते हैं:
1. समुद्री घास के मैदानों का संरक्षण और रखरखाव
• ग्रेसिंग से समुद्री घास की नई वृद्धि को बढ़ावा मिलता है
• अत्यधिक बढ़ी हुई और सड़ने वाली घास को नियंत्रित करता है
• समुद्री घास की कार्बन अवशोषण क्षमता बढ़ती है, यह जलवायु परिवर्तन को कम करने में अत्यंत महत्वपूर्ण है
2. समुद्री खाद्य श्रृंखलाओं को समर्थन: डुगोंग समुद्री तल की मिट्टी (sediment) को हिलाते हैं और पोषक तत्व (nutrients) छोड़ते हैं, जिससे निम्न जीवों की आबादी को पोषण मिलता है:
• वाणिज्यिक मछलियाँ
• शंख-घोंघे और कस्तूरा (shellfish)
• समुद्री खीरे (sea cucumbers)
• अन्य अकशेरुकी जीव
3. आर्थिक महत्व: अध्ययनों से पता चलता है कि डुगोंग द्वारा सुरक्षित किए गए समुद्री घास वाले पारिस्थितिक तंत्र हर वर्ष लगभग ₹2 करोड़ की अतिरिक्त मछली उत्पादन में योगदान करते है।
सरकार द्वारा संरक्षण उपाय:
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वर्ष / पहल |
विवरण |
उद्देश्य |
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2010: डुगोंग टास्क फोर्स |
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा गठित विशेष समूह |
संरक्षण रणनीतियों, नीतियों और विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय को मजबूत करना |
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नेशनल डुगोंग रिकवरी प्रोग्राम |
तमिलनाडु, गुजरात और अंडमान–निकोबार प्रशासन के साथ संयुक्त पहल |
डुगोंग के आवास संरक्षण, वैज्ञानिक शोध, स्थानीय समुदायों में जागरूकता और सहभागिता बढ़ाना |
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2022: डुगोंग संरक्षण रिज़र्व (पाल्क खाड़ी, तमिलनाडु) |
क्षेत्रफल: 448 वर्ग किमी; समुद्री घास के मैदानों और संबंधित समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा |
डुगोंग को सुरक्षित आवास उपलब्ध कराना; भारत का पहला समर्पित डुगोंग संरक्षण रिज़र्व |
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कानूनी सुरक्षा |
डुगोंग वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में शामिल; शिकार और व्यापार पर कठोर दंड; संरक्षित क्षेत्रों में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध |
अवैध शिकार की रोकथाम, बायकैच कम करना और डुगोंग जनसंख्या को दीर्घकालिक सुरक्षा प्रदान करना |
निष्कर्ष:
डुगोंग भारत की समुद्री विरासत और तटीय पारिस्थितिकी का अहम जीव हैं, जिसकी जगह कोई अन्य प्रजाति नहीं ले सकती। उनका अस्तित्व पूरी तरह समुद्री घास (सीग्रास) इकोसिस्टम की सेहत पर निर्भर है, जो दुनिया के सबसे प्रभावी प्राकृतिक कार्बन सिंक में से एक माना जाता है। मानव गतिविधियों, प्रदूषण और आवास के निरंतर बिगड़ने से बढ़ते खतरों को देखते हुए, इनके संरक्षण के लिए तत्काल, समन्वित और व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है। डुगोंग का संरक्षण केवल एक प्रजाति को बचाने का विषय नहीं है, यह तटीय समुदायों की आजीविका, समुद्री जैव-विविधता और भारत की जलवायु सहनशीलता (climate resilience) की मजबूती से सीधा जुड़ा हुआ है।

