संदर्भ:
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने वर्ल्ड कंज़र्वेशन कांग्रेस 2025 में प्रस्ताव को औपचारिक रूप से अपनाया, जिसमें तमिलनाडु के पाक खाड़ी (Palk Bay) में भारत के पहले डुगोंग संरक्षण रिजर्व को समुद्री जैव विविधता संरक्षण के मॉडल के रूप में मान्यता दी गई।
डुगोंग संरक्षण रिज़र्व की मुख्य विशेषताएँ:
पहलू |
विवरण |
कानूनी आधार / अधिसूचना |
डुगोंग संरक्षण रिज़र्व को सितंबर 2022 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अधिसूचित किया गया। |
स्थान और क्षेत्रफल |
यह रिज़र्व उत्तरी पाक खाड़ी में 448.34 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है। यह तमिलनाडु के तंजावुर और पुडुकोट्टई ज़िलों के तटीय क्षेत्र में फैला है। |
आवास (हैबिटैट) |
यहाँ 12,250 हेक्टेयर से अधिक सीग्रास (समुद्री घास) के मैदान हैं, जो डुगोंग (डुगोंग डुगोन) के लिए महत्वपूर्ण भोजन स्थल हैं। |
मुख्य प्रजाति |
डुगोंग डुगोन (आम तौर पर डुगोंग या “सी काउ” कहा जाता है), जिसे आईयूसीएन रेड लिस्ट में असुरक्षित (Vulnerable) श्रेणी में रखा गया है। |
आईयूसीएन मान्यता का महत्व:
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- वैश्विक समर्थन: यह रिज़र्व अब वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त मॉडल बन गया है। इससे अंतरराष्ट्रीय ध्यान, फंडिंग और तकनीकी सहयोग मिल सकता है।
- संरक्षण को बढ़ावा: यह डुगोंग के लिए खतरों (आवास नष्ट होना, मछली पकड़ने के जाल, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन) को उजागर करेगा और तत्काल कार्रवाई की ज़रूरत को रेखांकित करेगा।
- पुनरुत्पादक मॉडल: यह पहल भारत और हिंद महासागर क्षेत्र में अन्य समुद्री संरक्षण प्रयासों को प्रेरित करती है। आईयूसीएन के प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से इस मॉडल को अपनाने की सिफारिश की गई है।
- वैश्विक समर्थन: यह रिज़र्व अब वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त मॉडल बन गया है। इससे अंतरराष्ट्रीय ध्यान, फंडिंग और तकनीकी सहयोग मिल सकता है।
भारत में डुगोंग (Dugong):
डुगोंग जिन्हें “सी काउ” भी कहा जाता है, समुद्री स्तनधारी हैं। ये उथले (shallow) तटीय जल में रहते हैं और सीग्रास खाते हैं। भारत में इनकी कम संख्या मौजूद है, इसके साथ ही इनकी संख्या लगातार घट रही है। इस गिरावट को रोकने के लिए कई संरक्षण उपाय किए जा रहे हैं।
संरक्षण स्थिति और कानूनी सुरक्षा:
सूची / कानून |
इसका अर्थ |
आईयूसीएन रेड लिस्ट: असुरक्षित (Vulnerable) |
डुगोंग वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त हैं और इनकी आबादी घट रही है। |
CITES: परिशिष्ट I |
सबसे उच्च सुरक्षा; डुगोंग या इनके अंगों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार लगभग पूरी तरह प्रतिबंधित। |
भारत का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची I |
भारत में सबसे सख्त कानूनी सुरक्षा; डुगोंग का शिकार या नुकसान पहुँचाना पूरी तरह से प्रतिबंधित। |
चुनौतियाँ:
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- सीग्रास के मैदानों का नष्ट होना या क्षति पहुँचना डुगोंग के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
- असुरक्षित मछली पकड़ने के तरीके (जाल में फँसना और उलझना) गंभीर जोखिम हैं।
- समुद्री प्रदूषण, तलछट जमना, और जलवायु परिवर्तन (समुद्र तापमान बढ़ना, समुद्र स्तर बढ़ना) डुगोंग और सीग्रास दोनों के लिए ख़तरनाक हैं।
- डुगोंग की प्रजनन दर बहुत कम है, जिससे इनकी संख्या तेजी से नहीं बढ़ पाती।
- सीग्रास के मैदानों का नष्ट होना या क्षति पहुँचना डुगोंग के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
निष्कर्ष:
आईयूसीएन द्वारा तमिलनाडु के पाक खाड़ी डुगोंग संरक्षण रिजर्व को मान्यता मिलना भारत के समुद्री संरक्षण इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह दर्शाता है कि सही तरीके से बनाए गए और स्थानीय लोगों को शामिल करने वाले संरक्षण प्रयास वैश्विक स्तर पर पहचान हासिल कर सकते हैं। यह मॉडल न केवल डुगोंग बल्कि अन्य समुद्री प्रजातियों और संकटग्रस्त आवासों के लिए भी उदाहरण बन सकता है। जैसे-जैसे मानव गतिविधियाँ, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय दबाव बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे संरक्षण रिज़र्व प्रजातियों की सुरक्षा, पारिस्थितिकी तंत्र की संतुलन और स्थानीय समुदायों की आजीविका के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाते हैं।