संदर्भ:
हाल के समय में बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों (विशेषकर हिंदू, ईसाई और बौद्ध समुदायों) के विरुद्ध बढ़ती हिंसा की घटनाएँ सामने आई हैं। इन घटनाओं को लेकर भारत में कूटनीतिक स्तर पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। इसके चलते नई दिल्ली और ढाका के बीच कुछ हद तक कूटनीतिक असहजता भी देखने को मिली है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इन घटनाओं पर स्पष्ट और सख्त रुख अपनाया है। साथ ही, क्षेत्रीय स्थिरता, मानवाधिकारों की रक्षा तथा भारत–बांग्लादेश द्विपक्षीय संबंधों के दीर्घकालिक हितों के प्रति प्रतिबद्धता को मजबूती से रेखांकित भी किया है।
भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया के प्रमुख तत्व:
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- कड़ी निंदा: विदेश मंत्रालय ने अल्पसंख्यकों (हिंदू, ईसाई और बौद्ध समुदायों) के विरुद्ध हो रही हिंसा की कड़े शब्दों में निंदा की है और ऐसे कृत्यों को अत्यंत गंभीर, चिंताजनक तथा किसी भी रूप में अस्वीकार्य बताया है।
- घटनाओं को हल्का बताने का विरोध: भारत ने स्पष्ट किया है कि अल्पसंख्यक समुदायों पर बार-बार होने वाले हमलों को अलग-थलग घटनाएँ मानकर या उन्हें केवल राजनीतिक अशांति का परिणाम बताकर खारिज नहीं किया जा सकता।
- जवाबदेही और सुरक्षा की मांग: नई दिल्ली ने बांग्लादेशी प्रशासन से न्याय सुनिश्चित करने, दोषियों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई करने तथा अल्पसंख्यक समुदायों को प्रभावी और निरंतर सुरक्षा प्रदान करने का आग्रह किया है। भारत ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि सभी नागरिकों के अधिकारों और सुरक्षा की रक्षा करना प्रत्येक संप्रभु राज्य की मूल जिम्मेदारी है।
- कूटनीतिक टकराव से संयम: अपनी चिंताओं को स्पष्ट और दृढ़ता से रखते हुए भी भारत ने दबावपूर्ण या टकरावपूर्ण कूटनीति अपनाने से परहेज किया है। संवाद और सहयोग की संभावनाएँ खुली रखते हुए भारत ने मानवाधिकारों की रक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने की रणनीति अपनाई है।
- कड़ी निंदा: विदेश मंत्रालय ने अल्पसंख्यकों (हिंदू, ईसाई और बौद्ध समुदायों) के विरुद्ध हो रही हिंसा की कड़े शब्दों में निंदा की है और ऐसे कृत्यों को अत्यंत गंभीर, चिंताजनक तथा किसी भी रूप में अस्वीकार्य बताया है।
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भारत–बांग्लादेश संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
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- भारत और बांग्लादेश के संबंध इतिहास, संस्कृति और साझा संघर्षों की मजबूत नींव पर आधारित हैं। 1947 के विभाजन ने दोनों ओर व्यापक विस्थापन, मानवीय संकट और गहरी पीड़ा को जन्म दिया है।
- 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भारत ने सैन्य, कूटनीतिक और मानवीय स्तर पर निर्णायक समर्थन प्रदान किया। इसी क्रम में भारत बांग्लादेश को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाला पहला देश बना।
- दोनों देशों के बीच गहरे सांस्कृतिक, भाषाई और सभ्यतागत संबंध हैं, विशेष रूप से बंगाल क्षेत्र में। साझा इतिहास और बलिदान की स्मृति में हर वर्ष 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है, जो दोनों देशों की ऐतिहासिक साझेदारी का प्रतीक है।
- भारत और बांग्लादेश के संबंध इतिहास, संस्कृति और साझा संघर्षों की मजबूत नींव पर आधारित हैं। 1947 के विभाजन ने दोनों ओर व्यापक विस्थापन, मानवीय संकट और गहरी पीड़ा को जन्म दिया है।
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भारत के लिए बांग्लादेश का रणनीतिक महत्व:
बांग्लादेश भारत के भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत के साथ इसकी 4,096 किलोमीटर लंबी स्थलीय सीमा साझा होती है और यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा तथा संपर्क व्यवस्था के लिए अहम है। आर्थिक दृष्टि से बांग्लादेश भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से एक है, जहां द्विपक्षीय व्यापार 18 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है। यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’, क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं तथा साझा नदियों और सुंदरबन जैसे पारिस्थितिक तंत्रों पर सहयोग के लिए भी केंद्रीय भूमिका निभाता है।
द्विपक्षीय संबंधों में चुनौतियां:
इन संबंधों के सामने कुछ प्रमुख चुनौतियां भी हैं, जिनमें अवैध प्रवासन, सीमा प्रबंधन से जुड़े मुद्दे, तीस्ता जैसे जल-बंटवारे के लंबित विवाद, गैर-शुल्कीय व्यापार बाधाएं और ‘बेल्ट एंड रोड पहल’ के तहत बांग्लादेश की चीन के साथ बढ़ती भागीदारी शामिल हैं।
निष्कर्ष:
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को लेकर भारत की प्रतिक्रिया एक सिद्धांतवादी लेकिन व्यावहारिक कूटनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है। भारत जहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा से जुड़े अपने जायज सरोकारों को सामने रखता है, वहीं वह बांग्लादेश के रणनीतिक महत्व और दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों को भी ध्यान में रखता है। द्विपक्षीय संबंधों की सकारात्मक दिशा को बनाए रखने और क्षेत्रीय शांति व स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए निरंतर संवाद, विकास सहयोग और आपसी संवेदनशीलता बेहद आवश्यक हैं।

