संदर्भ:
भारतीय अर्थव्यवस्था ने जुलाई–सितंबर 2025 तिमाही (वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही) में 8.2% की रियल GDP वृद्धि दर्ज की, जो पिछले छह तिमाहियों में सबसे तेज़ विस्तार है। यह परिणाम वैश्विक आर्थिक मंदी, बढ़ते व्यापार तनाव और अस्थिर वित्तीय परिस्थितियों के बावजूद भारत की आर्थिक दृढ़ता और स्थिरता को उजागर करता है। यह वृद्धि प्रमुख क्षेत्रों में व्यापक सुधार, मजबूत उत्पादन गतिविधियों और बाहरी अनिश्चितताओं के बीच घरेलू मांग की निरंतर मजबूती को दर्शाती है।
वृद्धि के प्रमुख कारण:
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- विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र में सुधार: मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने 9.1% की मजबूत वृद्धि दर्ज की, जबकि एक वर्ष पूर्व यह दर मात्र 2.2% थी। यह वृद्धि मुख्यतः मज़बूत घरेलू मांग, औद्योगिक उत्पादन में सुधार तथा वैश्विक टैरिफ परिवर्तनों से पहले कंपनियों द्वारा उत्पादन बढ़ाने जैसी रणनीतिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप संभव हुआ।
- सेवा क्षेत्र की सतत मजबूती: सेवा क्षेत्र आर्थिक वृद्धि का मुख्य आधार बना रहा और GVA में 9.2% की बढ़ोतरी दर्ज हुई। वित्तीय, रियल एस्टेट और प्रोफेशनल सेवाओं में 10.2% की उल्लेखनीय वृद्धि (जो पिछले नौ तिमाहियों में सर्वाधिक है) सेवा गतिविधियों की गति को दर्शाती है। पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, डिफेंस और संबद्ध सेवाओं का योगदान भी महत्वपूर्ण रहा।
- घरेलू उपभोग में बढ़ोतरी: निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) में 7.9% की वृद्धि उपभोक्ता विश्वास में स्पष्ट सुधार को इंगित करती है। कम खाद्य मुद्रास्फीति, GST दरों में कटौती और ऋण दरों में नरमी ने विवेकाधीन खर्च को बढ़ावा दिया, जिससे घरेलू मांग की नींव और मजबूत हुई।
- निवेश गतिविधियों की निरंतर स्थिरता: ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (GFCF) 7.3% बढ़ा, जो लगातार निवेश गतिविधियों को दिखाता है। सरकार के सतत पूंजी व्यय को बढ़ाने से निजी निवेश बढ़ रहा है।
- सरकारी उपभोग व्यय में कमी: सरकारी अंतिम उपभोग व्यय में 2.7% की गिरावट दर्ज की गई। यह दर्शाता है कि आर्थिक विस्तार अब बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्र की गतिविधियों द्वारा संचालित हो रहा है, जो संरचनात्मक रूप से अधिक स्थायी और दीर्घकालिक रूप से स्वस्थ माना जाता है।
- विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र में सुधार: मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने 9.1% की मजबूत वृद्धि दर्ज की, जबकि एक वर्ष पूर्व यह दर मात्र 2.2% थी। यह वृद्धि मुख्यतः मज़बूत घरेलू मांग, औद्योगिक उत्पादन में सुधार तथा वैश्विक टैरिफ परिवर्तनों से पहले कंपनियों द्वारा उत्पादन बढ़ाने जैसी रणनीतिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप संभव हुआ।
मैक्रोइकॉनॉमिक प्रभाव और चुनौतियाँ:
सकारात्मक वृद्धि संकेतकों के बावजूद कुछ महत्वपूर्ण चिंताएँ बनी हुई हैं:
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- नाममात्र जीडीपी वृद्धि की कमजोरी: नाममात्र जीडीपी में केवल 8.7% की वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछले चार तिमाहियों में सबसे कम है। यह प्रवृत्ति जीडीपी डिफ्लेटर के अत्यधिक कम होने की ओर संकेत करती है, जिसका प्रभाव राजस्व संग्रहण पर पड़ सकता है तथा वास्तविक जीडीपी वृद्धि को अपेक्षा से अधिक प्रदर्शित करने की संभावना भी उत्पन्न कर सकता है।
- मौद्रिक नीति (Monetary Policy) का परिदृश्य: यद्यपि मुद्रास्फीति RBI के लक्ष्य दायरे में है और आर्थिक गतिविधियाँ मजबूत बनी हुई हैं, फिर भी निकट भविष्य में ब्याज दरों में कटौती की संभावना सीमित है।
- वैश्विक आर्थिक जोखिम: बढ़ते वैश्विक टैरिफ, व्यापार संबंधी अनिश्चितता और अंतरराष्ट्रीय मांग में मंदी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संभावित जोखिम पैदा करते हैं। विश्लेषकों के अनुसार वित्त वर्ष 2026 की दूसरी छमाही में वृद्धि की रफ्तार कुछ धीमी पड़ सकती है, हालांकि अंतिम परिणाम घरेलू मांग, निवेश और नीतिगत कार्रवाइयों की दिशा पर निर्भर करेगा।
- नाममात्र जीडीपी वृद्धि की कमजोरी: नाममात्र जीडीपी में केवल 8.7% की वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछले चार तिमाहियों में सबसे कम है। यह प्रवृत्ति जीडीपी डिफ्लेटर के अत्यधिक कम होने की ओर संकेत करती है, जिसका प्रभाव राजस्व संग्रहण पर पड़ सकता है तथा वास्तविक जीडीपी वृद्धि को अपेक्षा से अधिक प्रदर्शित करने की संभावना भी उत्पन्न कर सकता है।
जीडीपी के बारे में:
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- जीडीपी किसी देश की सीमाओं के भीतर एक निर्धारित अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को मापता है। रियल जीडीपी में मुद्रास्फीति के प्रभाव को समायोजित किया जाता है, जबकि नाममात्र जीडीपी वर्तमान बाजार कीमतों के आधार पर गणना की जाती है।
- जीडीपी वृद्धि आर्थिक गतिविधि की रफ्तार, रोजगार सृजन की क्षमता, और राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों की प्रभावशीलता का आकलन करने में मदद करती है। इसी कारण जीडीपी को किसी देश के समग्र आर्थिक स्वास्थ्य और विकास दिशा को समझने के लिए सबसे केंद्रीय मैक्रोइकोनॉमिक संकेतक माना जाता है।
- जीडीपी किसी देश की सीमाओं के भीतर एक निर्धारित अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को मापता है। रियल जीडीपी में मुद्रास्फीति के प्रभाव को समायोजित किया जाता है, जबकि नाममात्र जीडीपी वर्तमान बाजार कीमतों के आधार पर गणना की जाती है।
निष्कर्ष:
वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही में भारत की 8.2% GDP वृद्धि देश की आर्थिक मजबूती और व्यापक क्षेत्रों में सुधार को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करती है, विशेष रूप से विनिर्माण, सेवाओं, उपभोग और निवेश की संयुक्त गति के माध्यम से। यद्यपि नाममात्र वृद्धि में नरमी और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, फिर भी वर्तमान वृद्धि की रफ्तार वित्त वर्ष 2026 के शेष भाग के प्रति आशावाद को मजबूत करती है और भारत की पहचान को वैश्विक विकास इंजन के रूप में और अधिक सुदृढ़ बनाती है।

