संदर्भ:
हाल ही में भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 को संसद द्वारा पारित किया गया है, जोकि पुराने भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 का स्थान लेता है। इस विधेयक का उद्देश्य भारत के समुद्री शासन को आधुनिक बनाना और बंदरगाहों के प्रबंधन को ज्यादा प्रभावी, पारदर्शी और सुव्यवस्थित करना है।
विधेयक के उद्देश्य:
· यह विधेयक व्यापार सुगमता बढ़ाने, एकीकृत बंदरगाह विकास को प्रोत्साहित करने और भारत की 11,098 किलोमीटर लंबी तटरेखा के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए एक समकालीन कानूनी ढांचा प्रस्तुत करता है। इसका उद्देश्य विशेष रूप से राज्यों द्वारा प्रबंधित गैर-प्रमुख बंदरगाहों के विनियमन, योजना और विकास को सुव्यवस्थित करना है।
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 केंद्र और तटीय राज्यों के बीच समन्वय के लिए एक वैधानिक परामर्शदात्री निकाय, समुद्री राज्य विकास परिषद (MSDC), की स्थापना करता है। MSDC एकीकृत बंदरगाह विकास सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना तैयार करेगा।
· तटीय राज्यों को राज्य समुद्री बोर्ड स्थापित करने का अधिकार दिया जाएगा, जिससे भारत के 12 प्रमुख और 200 से अधिक गैर-प्रमुख बंदरगाहों में समान और पारदर्शी शासन व्यवस्था लागू होगी।
· विधेयक समयबद्ध तरीके से क्षेत्र-विशिष्ट समाधान प्रदान करने हेतु विवाद समाधान समितियों का गठन भी करता है।
· यह विधेयक MARPOL और बलास्ट जल प्रबंधन जैसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलनों के अनुपालन को अनिवार्य बनाता है, साथ ही बंदरगाहों को आपातकालीन तैयारी प्रणालियाँ बनाए रखने की आवश्यकता भी बताता है।
· डिजिटलीकरण एक प्रमुख मुद्दा है, जिसमें समुद्री एकल खिड़की (Maritime Single Window) और उन्नत पोत यातायात प्रणालियाँ जैसे उपाय दक्षता बढ़ाएँगे, अड़चनें कम करेंगे और लागत में कमी लाएँगे।
भारत की बंदरगाह अर्थव्यवस्था के बारे में:
भारत की बंदरगाह आधारित अर्थव्यवस्था उसके समग्र आर्थिक परिदृश्य की आधारशिला है, जो न केवल वैश्विक व्यापार को सुलभ बनाती है, बल्कि घरेलू आर्थिक विकास को भी गति प्रदान करती है।
· 11,098 किलोमीटर लंबी तटरेखा, 13 प्रमुख बंदरगाहों और 200 से अधिक छोटे बंदरगाहों के साथ, भारत का समुद्री नेटवर्क मात्रा के आधार पर लगभग 95% और मूल्य के आधार पर 70% अंतरराष्ट्रीय व्यापार को संचालित करने में सहायक है।
· बंदरगाह भारत को वैश्विक बाजारों से जोड़ने वाले महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करते हैं, जिससे वे राष्ट्रीय विकास और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता के एक अभिन्न अंग बन जाते हैं।
सरकारी पहल:
अपनी विशाल तटरेखा की क्षमता का दोहन करने के लिए, सरकार ने बंदरगाह-आधारित विकास को बढ़ावा देने, रसद में सुधार और बहु-मॉडल कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए सागरमाला परियोजना जैसी पहल शुरू की है।
• निवेश आकर्षित करने, बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण और कार्गो हैंडलिंग दक्षता में सुधार के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) पर ज़ोर दिया जा रहा है।
• इसके अतिरिक्त, भारत बंदरगाह संचालन को और अधिक स्मार्ट और तेज़ बनाने के लिए एआई, आईओटी और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों के माध्यम से डिजिटल परिवर्तन को अपना रहा है।
चुनौतियाँ:
• प्रगति के बावजूद, भारत का बंदरगाह क्षेत्र अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। कई बंदरगाह अपर्याप्त जलगहराई, पुराने बुनियादी ढांचे और रसद संबंधी बाधाओं से प्रभावित हैं, जिससे माल की आवाजाही और टर्नअराउंड समय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
उपाय:
· उभरती तकनीकों को अपनाने और प्रबंधित करने हेतु कुशल समुद्री कार्यबल की आवश्यकता है।
· विशेष रूप से ट्रांसशिपमेंट यातायात के संदर्भ में भारत के बंदरगाहों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना आवश्यक है, ताकि वे सिंगापुर और कोलंबो जैसे वैश्विक समुद्री केंद्रों के साथ प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकें।
निष्कर्ष:
भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 भारत के बंदरगाह क्षेत्र के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। इसके माध्यम से न केवल समुद्री क्षमता का विकास संभव होगा, बल्कि तटीय आर्थिक क्षेत्रों को भी मजबूती मिलेगी। यह विधेयक भारत को वैश्विक समुद्री परिदृश्य में एक अग्रणी स्थान दिलाने की दिशा में एक ठोस कदम है।