संदर्भ:
हाल ही में भारत ने ताजिकिस्तान में स्थित अयनी एयरबेस से अपने सैन्य कर्मियों और उपकरणों वापस बुला लिया है। यह भारत का एकमात्र पूर्ण विकसित विदेशी सैन्य अड्डा था, जिसे भारत ने लगभग दो दशकों तक विकसित और संचालित किया था।
अयनी एयरबेस के बारे में:
अयनी एयरबेस ताजिकिस्तान में स्थित भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण सैन्य ठिकाना था। भारत ने यहाँ अपने सैनिकों को पहली बार उस समय तैनात किया था जब वह अफ़ग़ानिस्तान में “नॉर्दर्न एलायंस” का समर्थन कर रहा था।
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- अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा काबुल पर कब्ज़ा किए जाने के बाद भारत ने अपने नागरिकों की सुरक्षित निकासी के लिए भी इसी एयरबेस का उपयोग किया था।
- यह एयरबेस अफ़ग़ानिस्तान के वाखान कॉरिडोर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और चीन के शिनजियांग प्रांत की सीमाओं से सटा हुआ है।
- अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा काबुल पर कब्ज़ा किए जाने के बाद भारत ने अपने नागरिकों की सुरक्षित निकासी के लिए भी इसी एयरबेस का उपयोग किया था।
वापसी के कारण:
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- 2002 में इस हवाई अड्डे के “पुनर्वास और विकास” के लिए भारत और ताजिकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय समझौता किया गया था। यह समझौता 2021–2022 के समय समाप्त हो गया और उसका नवीनीकरण नहीं किया गया।
- ताजिकिस्तान सरकार ने रूस और चीन के बढ़ते दबाव के चलते इस एयरबेस की लीज़ को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं दिखाई, जिसके परिणामस्वरूप भारत को वहाँ से अपनी उपस्थिति समाप्त करनी पड़ी।
- 2002 में इस हवाई अड्डे के “पुनर्वास और विकास” के लिए भारत और ताजिकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय समझौता किया गया था। यह समझौता 2021–2022 के समय समाप्त हो गया और उसका नवीनीकरण नहीं किया गया।
भारत पर प्रभाव:
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- अयनी एयरबेस से भारत को मध्य एशिया में रणनीतिक हवाई पहुँच प्राप्त थी, जो ऊर्जा सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी अभियानों और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी।
- यह एयरबेस चीन और पाकिस्तान की सीमाओं के निकट स्थित होने के कारण भारत को निगरानी, खुफिया जानकारी एकत्र करने और सामरिक बढ़त बनाए रखने में मदद करता था।
- इस एयरबेस से वापसी के बाद भारत की “कनेक्ट सेंट्रल एशिया” नीति कमजोर हो सकती है और अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद भारत के क्षेत्रीय विकल्प भी सीमित हो गए हैं।
- यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब चीन मध्य एशिया में अपनी मौजूदगी लगातार बढ़ा रहा है, और ताजिकिस्तान में एक चीनी सैन्य अड्डे के होने की भी रिपोर्ट सामने आई हैं।
- अयनी एयरबेस से भारत को मध्य एशिया में रणनीतिक हवाई पहुँच प्राप्त थी, जो ऊर्जा सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी अभियानों और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी।
भारत की अन्य विदेशी सैन्य सुविधाएँ:
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- मॉरीशस (अगालेगा): भारत और मॉरीशस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एयरस्ट्रिप और जेटी, जिसका निर्माण 2024 में पूरा हुआ।
- भूटान: यहाँ भारत का सैन्य प्रशिक्षण मिशन “इंडियन मिलिट्री ट्रेनिंग टीम (IMTRAT)” कार्यरत है।
- फ्रांस, ओमान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया: इस देशों के साथ भारत के लॉजिस्टिक सहायता समझौते हैं, जिनसे भारत को सीमित सैन्य पहुँच और सहयोग प्राप्त होता है, हालांकि ये स्थायी ठिकाने नहीं हैं।
- मॉरीशस (अगालेगा): भारत और मॉरीशस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एयरस्ट्रिप और जेटी, जिसका निर्माण 2024 में पूरा हुआ।
आगे की राह:
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- शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और भारत–मध्य एशिया संवाद के माध्यम से सुरक्षा और रक्षा सहयोग को और मजबूत किया जाना चाहिए।
- भारत को अपनी लॉजिस्टिक पहुँच का विस्तार करते हुए हवाई गतिशीलता, अंतरिक्ष आधारित निगरानी और समुद्री क्षमताओं को सशक्त बनाना चाहिए।
- रूस के साथ सहयोग बनाए रखते हुए, चीन के बढ़ते प्रभाव का संतुलन क्षेत्रीय साझेदारियों और बहुपक्षीय पहलों के ज़रिए करना आवश्यक है।
- शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और भारत–मध्य एशिया संवाद के माध्यम से सुरक्षा और रक्षा सहयोग को और मजबूत किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष:
अयनी एयरबेस से भारत की वापसी बदलते भू-राजनीतिक स्थिति और विदेशों में स्थायी सैन्य अड्डे बनाए रखने की सीमित क्षमता को दर्शाती है। भविष्य में भारत को मध्य एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए साझेदारी आधारित नेटवर्क और रणनीतिक लचीलापन अपनाना होगा।

