संदर्भ:
हाल ही में भारत ने अमेरिका को जैवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM) के संयुक्त निर्माण (को-प्रोडक्शन) के लिए औपचारिक अनुरोध प्रस्तुत किया है। यह पहल "मेक इन इंडिया" अभियान के तहत न केवल देश की रक्षा क्षमताओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक अहम कदम है, बल्कि इसका उद्देश्य विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करना और स्वदेशी रक्षा उद्योग को आत्मनिर्भर एवं प्रतिस्पर्धी बनाना भी है।
जैवलिन एटीजीएम के बारे में:
जैवलिन एक तीसरी पीढ़ी की "फायर एंड फॉरगेट" प्रकार की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल है, जिसे अमेरिका की रैथियॉन और लॉकहीड मार्टिन कंपनियों ने संयुक्त रूप से विकसित किया है।
• यह मिसाइल लक्ष्य का पता लगाने के लिए इन्फ्रारेड इमेजिंग तकनीक का उपयोग करती है और "टॉप अटैक" क्षमता से लैस है, जिससे यह आधुनिक और भारी बख्तरबंद टैंकों को प्रभावी ढंग से नष्ट कर सकती है।
• इसका हल्का, पोर्टेबल और कंधे पर ले जाने योग्य डिज़ाइन इसे भारतीय सेना के लिए विशेष रूप से पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों, जैसे हिमालय, में संचालन के लिए बेहद उपयुक्त बनाता है।
भारत के लिए रणनीतिक महत्व:
जैवलिन मिसाइलों का भारत में सह-निर्माण विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान से उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए रणनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
• इससे भारत की टैंक-रोधी युद्धक क्षमताएं बढ़ेंगी और समग्र रक्षा तैयारियों में महत्वपूर्ण सुधार होगा।
• यह मिसाइल सिस्टम यूक्रेन-रूस युद्ध में अपनी प्रभावशीलता सिद्ध कर चुका है, जहां इसका सफलतापूर्वक रूसी टैंकों को नष्ट करने में उपयोग किया गया।
संयुक्त निर्माण के लाभ:
भारत में जैवलिन मिसाइलों का निर्माण केवल सैन्य क्षमताओं को ही नहीं बढ़ाएगा, बल्कि—
• विदेशी निर्भरता में कमी: स्वदेशी निर्माण भारत को विदेशी आपूर्ति पर निर्भरता से मुक्त करेगा और आपात स्थितियों में तत्परता सुनिश्चित करेगा।
• "मेक इन इंडिया" को बल: यह पहल देश के रक्षा उत्पादन क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जो स्थानीय उद्योगों को भी सशक्त बनाएगी।
• भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग को मजबूती: यह समझौता दोनों देशों के बीच रक्षा तकनीकी सहयोग को गहरा करेगा और भविष्य में संयुक्त अनुसंधान एवं विकास की संभावनाएं खोलेगा।
निष्कर्ष:
भारत और अमेरिका के बीच इस समझौते पर बातचीत अंतिम चरण में है। इस बीच, आपात आवश्यकता की स्थिति में जैवलिन मिसाइलों की त्वरित खरीद की योजना भी बनाई जा रही है। प्रस्तावित समझौते में तकनीकी हस्तांतरण, देश में निर्माण और परीक्षण की व्यवस्था शामिल होगी। यह कदम भारत की टैंक-रोधी युद्धक क्षमताओं को मजबूत करने और संकट की घड़ी में विदेशी आपूर्ति पर निर्भरता को कम करने में निर्णायक भूमिका निभाएगा।