संदर्भ:
भारत और अमेरिका ने हाल ही में “भारत-अमेरिका प्रमुख रक्षा साझेदारी की 10-वर्षीय रूपरेखा” को प्रस्तुत किया है, जो दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह समझौता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिकी युद्ध सचिव पीट हेज़गथ (Pete Hegseth) के बीच कुआलालंपुर में हुई 12वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ADMM-Plus) के दौरान हस्ताक्षरित हुआ।
रूपरेखा के बारे में:
यह रूपरेखा वर्ष 2025 से 2035 तक भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग की दिशा तय करेगी।
• इसमें कई प्रमुख क्षेत्र “थल, वायु, समुद्र, अंतरिक्ष और साइबरस्पेस, साथ ही रक्षा औद्योगिक सहयोग, रसद (logistics), खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान और सैन्य सहयोग शामिल हैं।
• यह रूपरेखा “21वीं सदी के लिए भारत–अमेरिका समझौता”, हथियार हस्तांतरण व्यवस्थाओं में सुधार (जैसे ITAR की समीक्षा) तथा पारस्परिक रक्षा खरीद (Reciprocal Defence Procurement – RDP) पर चल रही वार्ताओं जैसी व्यापक पहलों से भी जुड़ी हुई है।
रूपरेखा का महत्व:
1. रक्षा उद्योग में खरीदार से साझेदार तक: पहले भारत के अमेरिका के साथ रक्षा संबंध मुख्य रूप से खरीद पर केंद्रित थे। अब यह ढाँचा सह-उत्पादन, संयुक्त अनुसंधान एवं विकास और आपूर्ति श्रृंखला एकीकरण पर ज़ोर देता है। यह परिवर्तन भारत की “आत्मनिर्भर भारत” नीति और रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी क्षमता बढ़ाने की आकांक्षा के अनुरूप है।
2. उन्नत हिंद-प्रशांत अभिविन्यास: यह ढाँचा हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संरचना में भारत की भूमिका को और मजबूत करता है। अमेरिका के साथ संबंधों को गहरा करके भारत यह संकेत देता है कि वह अपने निकटवर्ती पड़ोस से परे एक महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदाता बनने के लिए तैयार है।
3. तकनीकी प्रगति और सैन्य बलों का आधुनिकीकरण: यह ढाँचा उन्नत तकनीकों, जैसे समुद्री प्रणालियाँ, स्वायत्त प्रणालियाँ और अंतरिक्ष संसाधन पर ज़ोर देता है। इसके साथ ही यह अंतर-संचालन को बढ़ावा देता है। इन पहलों से भारत अपनी सेनाओं का आधुनिकीकरण कर सकेगा और बहु-क्षेत्रीय अभियानों को अपनाने में सक्षम होगा, जो भविष्य के संघर्ष परिदृश्यों के लिए आवश्यक है।
4. रणनीतिक स्वायत्तता का संतुलन: भारत ने ऐतिहासिक रूप से अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को महत्व दिया है। यह ढाँचा इस बात को दर्शाता है कि अमेरिका के साथ सहयोग को गहराई देने के बावजूद भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखेगा और रक्षा साझेदारियों में लचीलापन बरकरार रखेगा। अर्थात, भारत साझेदारी को मज़बूत करते हुए भी अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता से समझौता नहीं करेगा।
ADMM-Plus के बारे में:
12वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ADMM-Plus) मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में आयोजित हुई, जिसमें आसियान सदस्य देशों और आठ संवाद साझेदारों “भारत, अमेरिका, चीन, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड” के रक्षा मंत्री शामिल हुए।
पृष्ठभूमि:
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- एडीएमएम -प्लस की स्थापना वर्ष 2010 में आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM) के विस्तार के रूप में की गई थी।
- इसका उद्देश्य सदस्य देशों और उनके प्रमुख साझेदारों के बीच आपसी विश्वास, व्यावहारिक सहयोग और क्षमता निर्माण (capacity-building) को बढ़ावा देना है।
- यह बैठक हर दो साल में होती है , जिसमें कार्य समूह रक्षा और सुरक्षा सहयोग के विशिष्ट क्षेत्रों पर विचार करते हैं।
- एडीएमएम -प्लस की स्थापना वर्ष 2010 में आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM) के विस्तार के रूप में की गई थी।
निष्कर्ष:
भारत और अमेरिका के बीच नई 10-वर्षीय रक्षा रूपरेखा दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच गहराते रणनीतिक संबंधों का प्रतीक है। यह पारंपरिक और नई रक्षा तकनीकों के क्षेत्रों में दीर्घकालिक सहयोग को संस्थागत रूप देती है। यह रूपरेखा भविष्य के लिए एक मजबूत साझेदारी की नींव रखती है, जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि को सुनिश्चित करना है।
