संदर्भ :
भारत ने 12 देशों और अफ्रीकी देशों के एक क्षेत्रीय समूह के साथ मिलकर जलवायु और प्रकृति वित्त के लिए एक राष्ट्रीय प्लेटफ़ॉर्म बनाने की घोषणा की है। यह घोषणा COP30, बेलेम (ब्राज़ील) में की गई। इस पहल का समन्वय ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) द्वारा किया जा रहा है।
ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) के विषय में:
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- ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) एक वैश्विक वित्तीय तंत्र है, जिसकी स्थापना 2010 में विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का प्रभावी रूप से सामना करने में सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। इसका मुख्यालय सॉन्गडो, दक्षिण कोरिया में स्थित है।
- GCF, UNFCCC के आधिकारिक वित्तीय तंत्र का केंद्रीय घटक है और देशों को कम-उत्सर्जन तथा जलवायु-लचीला विकास मॉडल अपनाने में सहयोग देता है।
- यह दुनिया का सबसे बड़ा जलवायु वित्त तंत्र है, जिसने 2015 से अब तक 134 देशों में लगभग 19 बिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की है, जिससे विभिन्न शमन और अनुकूलन परियोजनाओं को समर्थन मिला है।
- GCF का संचालन पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 के अनुरूप होता है, जो विकसित देशों पर यह दायित्व निर्धारित करता है कि वे विकासशील देशों को जलवायु वित्त उपलब्ध कराएँ, ताकि वे जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर सकें।
- ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) एक वैश्विक वित्तीय तंत्र है, जिसकी स्थापना 2010 में विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का प्रभावी रूप से सामना करने में सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। इसका मुख्यालय सॉन्गडो, दक्षिण कोरिया में स्थित है।
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GCF के मुख्य लक्ष्य:
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- विकासशील देशों को सशक्त बनाना: विकासशील देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने हेतु वित्तीय सहायता और तकनीकी सहयोग प्रदान करना।
- शमन और अनुकूलन दोनों को प्रोत्साहन: जलवायु कार्रवाई के दोनों स्तंभों, उत्सर्जन-नियंत्रण और जलवायु-अनुकूलन के लिए संतुलित वित्तपोषण सुनिश्चित करना।
- सार्वजनिक एवं निजी निवेश का विस्तार: जलवायु वित्त में वृद्धि के लिए घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय, दोनों प्रकार के सार्वजनिक और निजी निवेश को आकर्षित और सक्रिय करना।
- NDCs के कार्यान्वयन में समर्थन: देशों को उनके राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (NDCs) और जलवायु कार्य-योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू करने में आवश्यक वित्तीय तथा संस्थागत सहायता प्रदान करना।
- विकासशील देशों को सशक्त बनाना: विकासशील देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने हेतु वित्तीय सहायता और तकनीकी सहयोग प्रदान करना।
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नए प्लेटफ़ॉर्म की आवश्यकता क्यों?
हालाँकि GCF एक बड़ा फंड है, लेकिन 2024 तक इसकी कुल धनराशि का केवल एक-चौथाई हिस्सा ही प्रभावी रूप से उपयोग हो पाया। कई विकासशील देशों को इसकी जटिल प्रक्रियाओं, तकनीकी सहायता की कमी, और परियोजनाओं को सही तरीके से प्रस्तुत करने में कठिनाइयाँ आती हैं।
इन्हीं चुनौतियों को दूर करने के लिए नया “कंट्री प्लेटफ़ॉर्म” प्रस्तावित किया गया है। यह प्लेटफ़ॉर्म:
· जलवायु वित्त तक पहुँच को संगठित और सरल बनाएगा,
· केंद्र, राज्य और निजी क्षेत्र के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करेगा,
· अनुकूलन और शमन व अनुकूलन परियोजनाओं के लिए फंड के तेज़, प्रभावी और सुव्यवस्थित उपयोग को सुनिश्चित करेगा।
निष्कर्ष:
यह प्लेटफ़ॉर्म भारत में जलवायु वित्त की बिखरी हुई और जटिल व्यवस्था को सुव्यवस्थित करेगा, फंड तक पहुँच को तेज़, सरल और पारदर्शी बनाएगा तथा शमन व अनुकूलन परियोजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन को सुदृढ़ करेगा। साथ ही, यह भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक सशक्त और निर्णायक आवाज़ प्रदान करता है, जिससे भारत विकसित देशों से निष्पक्ष, पारदर्शी और उत्तरदायी जलवायु वित्त की माँग को और अधिक मजबूती से उठा सके।
