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Blog / 10 Oct 2025

भारत–तालिबान सम्बन्ध

सन्दर्भ:

अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान विदेश मंत्री, अमीर ख़ान मुत्ताक़ी, संयुक्त राष्ट्र यात्रा-प्रतिबंध छूट के तहत 9 से 16 अक्टूबर तक अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर भारत में हैं। इसे एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक क्षण के रूप में देखा जा रहा है। 2021 में तालिबान द्वारा काबुल पर कब्ज़ा करने के बाद से किसी वरिष्ठ तालिबान नेता की यह पहली यात्रा है। 

पृष्ठभूमि:

तालिबान के 2021 में सत्ता में वापसी के बाद भारत ने सावधानीपूर्वक कदम उठाया। भारत ने तालिबान सरकार को तुरंत मान्यता नहीं दी, बल्कि मानवीय संपर्क बनाए रखे, सहायता भेजी (खाद्य सामग्री, दवाएँ, वैक्सीन आदि) और अपने विकास परियोजनाओं तथा राजनयिक चैनलों को सीमित रूप में बनाए रखा।

भारत तालिबान से संपर्क क्यों बढ़ा रहा है:

प्रेरक कारक

विवरण / व्याख्या

विदेश नीति में यथार्थवाद

तालिबान वर्तमान में अफगानिस्तान में वास्तविक नियंत्रण शक्ति (de facto authority) है। भारत यह मानता है कि काबुल में अपना प्रभाव बनाए रखने का तरीका संवाद है, अलगाव नहीं। अफगानिस्तान की अनदेखी करने से भारत को अपने रणनीतिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धियों के लिए जगह खोने का खतरा है।

सुरक्षा संबंधी चिंताएँ

अफगानिस्तान से या उसकी भूमि का उपयोग करने वाले आतंकवादी समूहों से उत्पन्न खतरा भारत के लिए गंभीर है। तालिबान नेतृत्व से संपर्क बनाए रखना इस बात को सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि अफगान भूमि का उपयोग भारत-विरोधी आतंकवादी गतिविधियों के लिए न हो। इसके अलावा, कश्मीर में हुए हमलों की मुत्ताकी द्वारा की गई निंदा को भी भारत सकारात्मक संकेत के रूप में देखता है।

संपर्क, व्यापार और पारगमन की आवश्यकता

भारत को मध्य एशिया और अपने निकटवर्ती पड़ोसियों के अलावा बाजारों तक विश्वसनीय पहुँच चाहिए। पाकिस्तान ने परंपरागत रूप से भूमि पारगमन मार्गों को अवरुद्ध रखा है, इसलिए अफगानिस्तान और ईरान (विशेषकर चाबहार बंदरगाह) के माध्यम से मार्गों को भारत रणनीतिक विकल्पों के रूप में देख रहा है।

प्रतिद्वंद्वी प्रभाव का संतुलन

पाकिस्तान का तालिबान पर ऐतिहासिक रूप से गहरा प्रभाव रहा है (या कुछ तालिबान गुटों पर अब भी है)। भारत नहीं चाहता कि वह इस क्षेत्रीय समीकरण से बाहर कर दिया जाए। साथ ही, चीन और ईरान अफगानिस्तान के साथ अपने संपर्क बढ़ा रहे हैं; भारत चाहता है कि वह अफगानिस्तान के भविष्य के क्षेत्रीय गठजोड़ में अपनी भूमिका बनाए रखे।

पूर्व निवेश की सुरक्षा

भारत ने पिछले दशकों में अफगानिस्तान में सड़कें, बांध, विद्यालय जैसी अनेक विकास परियोजनाओं में निवेश किया है। तालिबान से संवाद इन निवेशों की सुरक्षा और कुछ स्थगित परियोजनाओं को पुनः आरंभ करने में मदद कर सकता है।

India's Recalibration with Taliban - Rau's IAS

सीमाएँ और जोखिम:

      • मान्यता (Recognition): भारत ने अब तक तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है। ऐसा करने पर कूटनीतिक और साख-संबंधी जोखिम हैं, खासकर मानवाधिकार और महिलाओं के अधिकारों के मुद्दों को लेकर।
      • मानवाधिकार / समावेशिता: महिलाओं, अल्पसंख्यकों के साथ तालिबान के व्यवहार, असहमति के दमन आदि को लेकर अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दबाव बना हुआ है। अगर भारत ऐसे मुद्दों को नज़रअंदाज़ करता हुआ पाया गया तो उसे आलोचना का सामना करना पड़ेगा।
      • सुरक्षा विश्वसनीयता: किसी भी गारंटी पर भरोसा करने में जोखिम है। तालिबान का आंतरिक ढांचा एकरूप नहीं है; ऐसे तत्व (या सहयोगी) हैं जो केंद्रीय नियंत्रण में नहीं हो सकते हैं और आतंकवादी समूहों के लिए आधार का काम कर सकते हैं।
      • पाकिस्तान कारक: भारत-तालिबान संबंधों में गहराई आने पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया निश्चित है, क्योंकि वह अफगानिस्तान को अपने प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा मानता है। सीमापार आतंकवाद, उग्रवादी गुटों की सक्रियता, और भारत-पाक तनाव इससे प्रभावित हो सकते हैं।

निष्कर्ष:

तालिबान के मुत्ताकी के साथ भारत की सहभागिता अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की जटिलता को दर्शाती है, जहाँ रणनीतिक हित अक्सर मूल्यों से असहमति रखने वाले पक्षों के साथ संवाद की आवश्यकता पैदा करते हैं। क्षेत्रीय स्थिरता, सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को प्राथमिकता देकर भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना चाहता है और एक स्थिर अफगानिस्तान के निर्माण में योगदान देना चाहता है जबकि वह इस क्षेत्र की जटिल भू-राजनीति को सावधानीपूर्वक संतुलित कर रहा है।