संदर्भ:
हाल ही में भारत और सिंगापुर के मध्य मंत्रिस्तरीय गोलमेज सम्मेलन का तीसरा चरण नई दिल्ली में आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के मध्य व्यापक रणनीतिक साझेदारी को और अधिक सुदृढ़ करना था।
बैठक के प्रमुख फोकस क्षेत्र:
गोलमेज सम्मेलन के दौरान भारत और सिंगापुर ने इंडिया-सिंगापुर मिनिस्ट्रियल राउंडटेबल (ISMR) के अंतर्गत सहयोग के छह प्रमुख स्तंभों पर ध्यान केंद्रित किया। इनमें डिजिटलीकरण, कौशल विकास, स्थिरता, स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा, उन्नत विनिर्माण तथा संपर्कता शामिल हैं। इन क्षेत्रों में सहयोग का उद्देश्य दोनों देशों के बीच तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक साझेदारी को व्यापक बनाना है।
भारत-सिंगापुर संबंध:
1. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध:
· भारत और सिंगापुर के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंध हैं। वर्ष 1819 में, सर स्टैमफोर्ड रैफल्स ने सिंगापुर को एक व्यापारिक केंद्र के रूप में स्थापित किया था, और उस समय इसका प्रशासनिक नियंत्रण कोलकाता से संचालित होता था।
· स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, भारत 1965 में सिंगापुर को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बना। वर्तमान में सिंगापुर में लगभग 9.1% जातीय भारतीय आबादी निवास करती है, जो इस ऐतिहासिक संबंध को और अधिक सुदृढ़ बनाती है।
· तमिल, सिंगापुर की चार आधिकारिक भाषाओं में से एक है, जिससे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध और भी प्रगाढ़ होते हैं। इसके अतिरिक्त, सिंगापुर में लगभग पाँचवां हिस्सा विदेशी नागरिकों का है, जिनमें बड़ी संख्या भारतीय नागरिकों की है, जिससे लोगों के बीच आपसी संबंध और सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
2. आर्थिक, सामरिक और रक्षा सहयोग:
· सिंगापुर भारत की एक्ट ईस्ट नीति, इंडो-पैसिफिक विज़न तथा सागरीय सहयोग पहल (SAGAR) में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार बना हुआ है।
· यह आसियान में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और वैश्विक स्तर पर (2023–24) भारत का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है। व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) के बाद द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 35.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
· भारत इस व्यापार संबंध में एक शुद्ध आयातक है। वर्ष 2016 में हस्ताक्षरित प्रत्यक्ष कर परिहार समझौता (DTAA) का उद्देश्य दोहरे कराधान से बचाव के साथ-साथ कर चोरी को कम करना भी है।
· रक्षा क्षेत्र में सहयोग लगातार सुदृढ़ हो रहा है। इसमें ‘अग्नि योद्धा’ (सेना), ‘सिम्बेक्स’ (नौसेना) और संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण (वायु सेना) जैसे त्रि-सेवा अभ्यास शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, रुपे-यूपीआई और पेनाउ लिंकेज जैसे ऐतिहासिक कदमों के माध्यम से फिनटेक क्षेत्र में भी दोनों देश अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, जिससे डिजिटल भुगतान प्रणाली और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिल रहा है।
द्विपक्षीय संबंधों में चुनौतियाँ:
मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों के बावजूद, कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
· चीन में सिंगापुर की भारी निवेश उपस्थिति (BRI निवेश का 85%) और कर-मुक्त निवेश के रूप में इसकी प्रतिष्ठा, राउंडट्रिपिंग के बारे में चिंताएँ बढ़ाती है।
· दोनों देशो के व्यापार में सीमित सेवा निर्यात पहुँच और व्यावसायिक गतिशीलता में बाधाएँ भी आपसी आर्थिक सहयोग को प्रभावित करती हैं। इसके अतिरिक्त, सोने की तस्करी और भारतीय कामगारों को निशाना बनाकर फैलाए गए भारत-विरोधी भावनात्मक माहौल जैसी घटनाएँ द्विपक्षीय संबंधों को और जटिल बना देती हैं।
निष्कर्ष:
भारत–सिंगापुर मंत्रिस्तरीय गोलमेज सम्मेलन, रणनीतिक सहयोग और पारस्परिक समृद्धि को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से एक प्रभावी मंच के रूप में उभरा है। डिजिटल प्रौद्योगिकी, हरित विकास और उन्नत विनिर्माण जैसे भविष्य-उन्मुख क्षेत्रों पर केंद्रित यह सहयोग, दोनों देशों द्वारा एक लचीले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति की गई प्रतिबद्धता को दर्शाता है। सम्मेलन के परिणाम निकट भविष्य में गहन आर्थिक एकीकरण, क्षेत्रीय स्थिरता, तथा नवाचार-आधारित विकास की दिशा में एक साझा दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से रेखांकित करते हैं।