संदर्भ:
हाल ही में यूक्रेन युद्ध और अमेरिकी व्यापार प्रतिबंधों के कारण बढ़ते वैश्विक तनाव के बीच, रूस ने भारत को कच्चे तेल पर 5% की छूट की पेशकश की है। यह प्रस्ताव भारत-रूस के ऊर्जा सहयोग को और सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण विकास है। यह घोषणा उस समय की गई जब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर मास्को यात्रा पर हैं और ऊर्जा, व्यापार तथा क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर रूसी नेतृत्व के साथ उच्च-स्तरीय वार्ता कर रहे हैं।
पृष्ठभूमि:
· भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग पर भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग (IRIGC-TEC) के 26वें सत्र में भाग लेने के लिए मास्को का दौरा किया।
· यह यात्रा ऐसे समय पर हुई है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ रहा है। अमेरिका ने भारत पर कुल 50% टैरिफ लागू किए हैं, जिसमें 25% पारस्परिक शुल्क और 25% अतिरिक्त शुल्क रूसी तेल के आयात से संबंधित हैं। इन वाणिज्यिक प्रतिबंधों ने 2025 में भारत-अमेरिका के बीच राजनयिक और व्यापारिक संकट को और गहरा कर दिया है।
यात्रा के निहितार्थ:
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हालिया मास्को यात्रा भारत-रूस संबंधों के महत्व को रेखांकित करती है, जो दशकों से मजबूत और स्थिर रहे हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा, ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग का लंबा इतिहास रहा है। वर्तमान में, भारत अपनी लगभग 35% कच्चे तेल की आपूर्ति रूस से करता है, और रूस भारत के लिए सैन्य उपकरणों का एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता भी है।
भारत-रूस संबंधों के विषय में:
· भारत और रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) के बीच राजनयिक संबंध भारत की स्वतंत्रता से पहले ही, अप्रैल 1947 में स्थापित हो गए थे। भारत के औद्योगिक आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों को उस समय सोवियत संघ में एक स्वाभाविक सहयोगी मिला।
· शीत युद्ध के दौर में भारत-सोवियत संबंध अत्यंत प्रगाढ़ हुए। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में सोवियत संघ ने भारत का समर्थन किया तथा 1966 में ताशकंद शिखर सम्मेलन की मेज़बानी कर शांति स्थापना में भूमिका निभाई। विशेष रूप से 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय, जब अमेरिका और चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया, सोवियत संघ भारत के साथ मज़बूती से खड़ा रहा। इसी दौर में दोनों देशों के बीच 1971 की शांति, मैत्री और सहयोग संधि संपन्न हुई, जो द्विपक्षीय संबंधों का शिखर मानी जाती है।
· सोवियत संघ ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी भारत का समर्थन किया, और 1957 से 1971 के बीच कई बार वीटो का प्रयोग किया—विशेषकर कश्मीर और गोवा से संबंधित मुद्दों पर।
इस दौरान, भारतीय नीति-निर्माताओं के लिए मास्को एक विश्वसनीय रणनीतिक भागीदार के रूप में उभरा।
वर्तमान स्वरूप:
· सोवियत संघ के विघटन के बाद, वर्ष 2000 में भारत-रूस संबंधों को "रणनीतिक साझेदारी" में परिवर्तित किया गया, जिसे 2010 में "विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी" में उन्नत किया गया। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन (कुछ अपवादों को छोड़कर) एक नियमित अभ्यास बन चुका है, जो द्विपक्षीय राजनयिक निरंतरता को दर्शाता है।
· 2021 से, दोनों देशों के बीच 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद भी शुरू हुआ है, जो रक्षा, ऊर्जा और कूटनीति जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग की बहुआयामी प्रकृति को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
विदेश मंत्री की मॉस्को यात्रा ने भारत-रूस के दीर्घकालिक और भरोसेमंद संबंधों को और सुदृढ़ किया है। रूस द्वारा रियायती तेल की पेशकश ऐसे समय पर आई है जब भारत वैश्विक अस्थिरता के बीच अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। यह यात्रा दर्शाती है कि भारत कूटनीतिक संतुलन और लचीलापन बनाए रखते हुए, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी स्थिति को मजबूती से स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है।