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Blog / 02 Jul 2025

2024 में भारत में खोजे गए 683 नई प्राणी और 433 नई वनस्पति प्रजातियाँ

संदर्भ:

भारत की समृद्ध जैव विविधता निरंतर विस्तार की ओर अग्रसर है। वर्ष 2024 में देश ने 683 नई प्राणी प्रजातियाँ और 433 नई वनस्पति प्रजातियों को दस्तावेज़ीकृत किया। ये आंकड़े इस बात को रेखांकित करते हैं कि जैविक अनुसंधान, खोज और संरक्षण के सतत प्रयास कितने आवश्यक हैं। इस संबंध में जानकारी हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव द्वारा साझा दी गई।

जीव-जंतुओं से संबंधित खोजों की प्रमुख विशेषताएं:

वर्ष 2024 में दर्ज की गई 683 प्राणी प्रजातियों में से 459 बिल्कुल नई खोजी गई प्रजातियाँ थीं, जबकि 224 प्रजातियाँ भारत के लिए नए रिकॉर्ड (अर्थात् पहले कहीं और पाई गई थीं, लेकिन भारत में पहली बार देखी गईं) के रूप में सामने आईं। केरल इस वर्ष सबसे अधिक नई प्राणी प्रजातियों की खोज करने वाला राज्य बना, जहाँ से कुल 101 टैक्सा (80 नई प्रजातियाँ और 21 नए रिकॉर्ड) दर्ज किए गए। अन्य प्रमुख राज्यों का योगदान इस प्रकार रहा:

कर्नाटक – 82 टैक्सा (68 नई प्रजातियाँ, 14 नए रिकॉर्ड)
तमिलनाडु – 63 टैक्सा (50 नई प्रजातियाँ, 13 नए रिकॉर्ड)
अरुणाचल प्रदेश – 72 टैक्सा (42 नई प्रजातियाँ, 30 नए रिकॉर्ड)
मेघालय – 42 टैक्सा (25 नई प्रजातियाँ, 17 नए रिकॉर्ड)
पश्चिम बंगाल – 56 टैक्सा (25 नई प्रजातियाँ, 31 नए रिकॉर्ड)
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह – 43 टैक्सा (14 नई प्रजातियाँ, 29 नए रिकॉर्ड)

ये आंकड़े पश्चिमी घाट, पूर्वी हिमालय, और द्वीपीय पारिस्थितिकी तंत्रों की जैविक विविधता और वैज्ञानिक महत्त्व को रेखांकित करते हैं।

प्रमुख प्राणी खोजों में सरीसृपों की दो नई जातियाँ (genus) और 37 नई प्रजातियाँ शामिल थीं। इनमें विशेष रूप से “द्रविड़ोसेप्स गौएंसिस, जो एक पूरी तरह नए वंश (genus) से संबंधित है। इसके साथ ही एंगुइकुलस डिकैप्रियोई (Anguiculus dicaprioi) साँप की एक नई प्रजाति, जिसे प्रसिद्ध अभिनेता लियोनार्डो डिकैप्रियो के सम्मान में नामित किया गया है। इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिकों ने पाँच नई उभयचर (amphibian) प्रजातियों की भी खोज की, जो भारत के समृद्ध हर्पेटोफॉना (सरीसृप और उभयचर जीव-जगत) में महत्वपूर्ण वृद्धि का संकेत देती हैं।

प्रमुख वनस्पति खोज की प्रमुख विशेषताएं:

2024 में वैज्ञानिकों ने पौधों की 410 नई प्रजातियाँ और 23 उप-प्रजातियाँ (infra-specific taxa) खोजी। इस तरह कुल 433 नई वनस्पति खोजें दर्ज की गईं।

फिर से केरल सबसे आगे (58 नई वनस्पति प्रजातियाँ), उसके बाद महाराष्ट्र (45) और उत्तराखंड (40) रहा।

433 वनस्पति खोजों में शामिल हैं:

  • 154 एंजियोस्पर्म्स (फूलों वाले पौधे)
  • 4 प्टेरिडोफाइट्स (फर्न और उनके सगे-संबंधी पौधे)
  • 15 ब्रायोफाइट्स (काई और लिवरवॉर्ट्स)
  • 63 लाइकेन (शैवाल और कवक का मिश्रण)
  • 156 फंगी (कवक)
  • 32 शैवाल (एल्गी)
  • 9 सूक्ष्मजीव (माइक्रोब्स)

ये खोजें फिर से पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत के पारिस्थितिक महत्व को रेखांकित करती हैं, जो कुल खोजों का 35% योगदान करते हैं।

कुछ उल्लेखनीय वनस्पति खोजें, जो विशेष रूप से ऑर्किड परिवार की हैं और संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं:

  • बल्बोफाइलम गोपालियानम (Bulbophyllum gopalianum)
  • कोलोजीन त्रिपुरेंसिस (Coelogyne tripurensis)
  • गैस्ट्रोडिया इंडिका (Gastrodia indica)
  • गैस्ट्रोडिया सिक्किमेंसिस (Gastrodia sikkimensis)

इन प्रजातियों की पारिस्थितिक स्थिति संवेदनशील है और इनका आवास सीमित क्षेत्र में पाया जाता है, इसलिए ये आगे के शोध और संरक्षण कार्यों के लिए अहम होंगी।

निष्कर्ष:

इन नई खोजों के साथ भारत में अब तक कुल 56,177 पौधों की प्रजातियाँ दर्ज की जा चुकी हैं, जिनमें फूलों वाले पौधे (एंजियोस्पर्म), नग्नबीज पौधे (जिम्नोस्पर्म), फर्न (प्टेरिडोफाइट), काई (ब्रायोफाइट), लाइकेन, कवक (फंगी) और शैवाल (एल्गी) शामिल हैं। वर्ष दर वर्ष होने वाली ये खोजें स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि भारत एक मेगा-विविधता वाला देश है। साथ ही, यह भी सिद्ध होता है कि भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) और भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) जैसी संस्थाओं द्वारा किए जा रहे वैज्ञानिक अनुसंधान और सर्वेक्षण अत्यंत आवश्यक और प्रभावशाली हैं।

इन नई प्रजातियों की पहचान यह भी संकेत देती है कि हमें अपने नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए, जो आज आवासीय क्षरण, जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के कारण संकटग्रस्त हो रहे हैं। नई प्रजातियाँ न केवल हमारे जैविक ज्ञान को समृद्ध करती हैं, बल्कि वे पारिस्थितिक अनुसंधान, औषधीय संभावनाओं और संरक्षण रणनीतियों के नए द्वार भी खोलती हैं।

भारत की यह जैव विविधता हमें यह स्मरण कराती है कि प्राकृतिक धरोहर की रक्षा केवल एक दायित्व नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है ताकि इसे हम आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकें