संदर्भ:
हाल ही में भारत ने घोषणा की है कि उसने पेरिस जलवायु समझौते के तहत निर्धारित एक प्रमुख लक्ष्य को 5 साल पहले ही प्राप्त कर लिया है। अब देश की कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 50% हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों “जैसे सौर, पवन, जल और परमाणु ऊर्जा” से प्राप्त हो रहा है, जबकि यह लक्ष्य 2030 तक हासिल किया जाना था। यह उपलब्धि न केवल पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि वैश्विक जलवायु कूटनीति में भारत की भूमिका को भी और अधिक सशक्त बनाती है।
भारत के पेरिस समझौते के तहत जलवायु लक्ष्य (NDCs):
पेरिस समझौते (2015) के तहत भारत ने 2030 तक तीन मुख्य जलवायु लक्ष्य तय किए थे:
1. कुल स्थापित बिजली क्षमता का 50% गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करना।
2. 2005 के स्तर की तुलना में जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता (emissions intensity) को 45% तक कम करना।
3. वन और वृक्ष आवरण के ज़रिए 2.5 से 3 बिलियन टन CO₂ के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना।
यह उपलब्धि कैसे हासिल की गई:
भारत ने यह उपलब्धि मुख्यतः नवीकरणीय ऊर्जा, विशेषकर सौर ऊर्जा में तीव्र वृद्धि के कारण हासिल की:
- सिर्फ 2024 में ही लगभग 30 गीगावाट (GW) नवीकरणीय क्षमता जोड़ी गई।
- इसमें से 24 GW केवल सौर ऊर्जा से आया, जो अब तक का सबसे अधिक वार्षिक वृद्धि है।
- इसके अलावा पवन ऊर्जा, बड़े जल विद्युत और परमाणु ऊर्जा से भी योगदान मिला।
हालांकि, भारत अब भी चीन से बहुत पीछे है, जो हर साल भारत की तुलना में 10 गुना अधिक नवीकरणीय क्षमता जोड़ रहा है।
भारत के लिए इस उपलब्धि के निहितार्थ:
- विकसित देशों के मुकाबले, भारत ने अपेक्षाकृत सीमित संसाधनों और कम ऐतिहासिक उत्सर्जन के बावजूद यह लक्ष्य समय से पहले हासिल किया है।
- भारत की कुल ऊर्जा खपत में स्वच्छ ऊर्जा की हिस्सेदारी लगभग 6% है, जो वैश्विक औसत के बराबर है।
- भारत यह भी कहता है कि यदि उसे पेरिस समझौते के तहत जलवायु वित्त और तकनीकी सहायता मिले, तो वह और बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।
नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़ी मुख्य चुनौतियाँ:
1. स्थापित क्षमता बनाम वास्तविक उत्पादन:
- स्थापित क्षमता का अर्थ यह नहीं कि उतनी ही मात्रा में बिजली का उत्पादन भी हो रहा है।
- मई 2025 तक, देश में कुल बिजली उत्पादन का केवल 28% ही गैर-जीवाश्म स्रोतों से हुआ।
- नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन मौसम, दिन के समय और ग्रिड में ऊर्जा भंडारण क्षमता जैसे कारकों पर निर्भर करता है, जिससे इसकी स्थिरता प्रभावित होती है।
2. कुल ऊर्जा खपत में बिजली की सीमित हिस्सेदारी:
- भारत की कुल ऊर्जा खपत में बिजली का योगदान केवल 22% है।
- शेष 78% ऊर्जा आवश्यकताएं कोयला, पेट्रोलियम और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों से पूरी होती हैं।
- इस कारण, गैर-जीवाश्म स्रोतों से उत्पन्न स्वच्छ बिजली भारत की कुल ऊर्जा खपत का लगभग 6% ही पूरा कर पा रही है।
3. वैश्विक परिप्रेक्ष्य में तुलना:
- चीन हर वर्ष लगभग 300 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ता है, जो भारत की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक है।
- फिर भी भारत की उपलब्धि उल्लेखनीय है, क्योंकि इसकी प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन दर बहुत कम है और इसे विकास संबंधी कई संरचनात्मक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है।
निष्कर्ष:
भारत ने पेरिस समझौते के तहत गैर-जीवाश्म ईंधन से बिजली क्षमता का लक्ष्य समय से पहले पूरा करके यह दिखा दिया है कि वह जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से लेता है। हालांकि, केवल क्षमता आंकड़ों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। असली ध्यान बिजली के वास्तविक उत्पादन, कुल ऊर्जा खपत और उत्सर्जन में कमी जैसे पहलुओं पर भी होना चाहिए। भारत को दीर्घकालीन और टिकाऊ ऊर्जा बदलाव के लिए स्वच्छ ऊर्जा तक सबकी पहुंच, तकनीक का उन्नयन और संस्थागत सहयोग को एक साथ जोड़ना होगा।