संदर्भ:
हाल ही में भारत को यूनेस्को (UNESCO) के कार्यकारी बोर्ड में पुनर्निर्वाचित किया गया। यह भारत की बहुपक्षीय मंचों में प्रतिष्ठा, वैश्विक नेतृत्व और शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति जैसे क्षेत्रों में योगदान को दर्शाता है।
यूनेस्को कार्यकारी बोर्ड के विषय में:
यूनेस्को का कार्यकारी बोर्ड इसके तीन संवैधानिक अंगों में से एक है, अन्य दो हैं: महासभा (General Conference) और सचिवालय (Secretariat)।
इसमें 58 सदस्य राष्ट्रों का घूर्णन समूह होता है, जो चार वर्षों की अवधि के लिए चुने जाते हैं।
बोर्ड के प्रमुख कार्य:
● यूनेस्को के कार्यक्रम और बजट को अनुमोदित करना।
● कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी और मार्गदर्शन करना।
● महासभा के एजेंडा की तैयारी करना।
● शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति आदि विविध क्षेत्रों में नीति और शासन (policy coherence) सुनिश्चित करना।
भारत के पुनर्निर्वाचन के प्रभाव (2025–2029):
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पहलू |
विवरण / प्रभाव |
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1. भारत की बहुपक्षीय भूमिका और सॉफ्ट पावर की मान्यता |
● पुनर्निर्वाचन वैश्विक स्तर पर भारत की कूटनीतिक विश्वसनीयता का संकेत है। |
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2. वैश्विक एजेंडों को भारत के प्राथमिकताओं के अनुरूप आकार देने का अवसर |
● भारत निम्नलिखित क्षेत्रों में यूनेस्को की नीतियों को प्रभावित कर सकता है: |
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3. भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को सशक्त बनाना |
● भारत की भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता इसे धरोहर संरक्षण पर वैश्विक संवाद का नेतृत्व करने में सक्षम बनाती है। वैश्विक दक्षिण (Global South) की धरोहर और अमूर्त सांस्कृतिक परंपराओं के उचित प्रतिनिधित्व की वकालत। |
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4. क्षेत्रीय एवं वैश्विक साझेदारियों को बढ़ाना |
● विशेष रूप से विकासशील देशों के साथ गहन सहयोग को सक्षम बनाना। |
भारत के लिए चुनौतियाँ और जिम्मेदारियाँ:
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चुनौती क्षेत्र |
मुख्य चिंता / जिम्मेदारी |
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1. वैश्विक प्रतिबद्धताओं का घरेलू स्तर पर क्रियान्वयन |
भारत की घरेलू नीतियाँ—शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान और पर्यावरण वैश्विक स्तर पर प्रचारित मूल्यों के अनुरूप होनी चाहिए। |
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2. सतत कूटनीतिक संलग्नता |
जलवायु परिवर्तन, डिजिटल शासन, सांस्कृतिक संघर्ष और धरोहर विनाश जैसे जटिल वैश्विक मुद्दों में सक्रिय भागीदारी आवश्यक। |
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3. राष्ट्रीय हित और वैश्विक एकजुटता का संतुलन |
सांस्कृतिक संपत्ति की वापसी, वैश्विक डिजिटल मानक, जलवायु और विज्ञान सहयोग जैसे संवेदनशील मुद्दों में राष्ट्रीय प्राथमिकताओं की सुरक्षा। |
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4. भारत के भीतर समावेशी प्रतिनिधित्व |
विविध धरोहरों जैसे की आदिवासी, क्षेत्रीय, भाषाई, अल्पसंख्यक और लोक परंपराओं—का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना ताकि वास्तविक समावेशी राष्ट्रीय पहचान प्रस्तुत हो सके। |
