सन्दर्भ:
भारत और नीदरलैंड्स ने गुजरात के लोथल में स्थित राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर के लिए सहयोग हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और नीदरलैंड्स के विदेश मंत्री डेविड वान वील के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के दौरान औपचारिक रूप से संपन्न हुआ। इस समझौते का उद्देश्य समुद्री विरासत संरक्षण, शिक्षा तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान के क्षेत्र में सहयोग को सुदृढ़ करना है।
राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर, लोथल:
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- महत्त्व: लोथल सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख स्थल है, जो विश्व के प्रारंभिक ज्ञात गोदी-स्थलों में से एक के लिए प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर का उद्देश्य लगभग 4,500 वर्षों की भारत की समुद्री विरासत को संग्रहालयों, अनुसंधान संस्थानों, अभिलेखागारों तथा संवादात्मक प्रदर्शनों के माध्यम से प्रस्तुत करना है।
- समझौता ज्ञापन के प्रमुख उद्देश्य:
- राष्ट्रीय समुद्री संग्रहालय के साथ संस्थागत सहयोग
- समुद्री संग्रहालयों की रूपरेखा, क्यूरेशन, संरक्षण तथा डिजिटल कथानक निर्माण में तकनीकी विशेषज्ञता का आदान-प्रदान
- प्रदर्शनियों, शैक्षणिक अनुसंधान, क्षमता निर्माण तथा सांस्कृतिक जनसंपर्क से जुड़े संयुक्त कार्यक्रम
- छात्रों, शोधकर्ताओं तथा स्थानीय समुदायों के लिए समावेशी पहुँच सुनिश्चित करते हुए राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर की वैश्विक दृश्यता और पर्यटन क्षमता को बढ़ावा देना
- राष्ट्रीय समुद्री संग्रहालय के साथ संस्थागत सहयोग
- महत्त्व: लोथल सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख स्थल है, जो विश्व के प्रारंभिक ज्ञात गोदी-स्थलों में से एक के लिए प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर का उद्देश्य लगभग 4,500 वर्षों की भारत की समुद्री विरासत को संग्रहालयों, अनुसंधान संस्थानों, अभिलेखागारों तथा संवादात्मक प्रदर्शनों के माध्यम से प्रस्तुत करना है।
समझौता ज्ञापन का महत्त्व:
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- सांस्कृतिक कूटनीति: जन संपर्क को सुदृढ़ करता है और द्विपक्षीय सांस्कृतिक सहभागिता को गहराई प्रदान करता है
- विरासत संरक्षण: संग्रहालय विकास और संरक्षण ढाँचों में अंतरराष्ट्रीय श्रेष्ठ प्रथाओं का समावेश
- पर्यटन और शिक्षा: राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर को वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त समुद्री विरासत गंतव्य के रूप में स्थापित करना
- व्यापक सहयोग: समुद्री व्यापार, नौवहन, बंदरगाहों और लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में भारत–नीदरलैंड्स के मौजूदा सहयोग को पूरक बनाता है
- सांस्कृतिक कूटनीति: जन संपर्क को सुदृढ़ करता है और द्विपक्षीय सांस्कृतिक सहभागिता को गहराई प्रदान करता है
भारत–नीदरलैंड्स संबंधों के बारे में:
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- प्रारंभिक संपर्क: लगभग 1605 के आसपास डच व्यापारियों ने मुगल साम्राज्य में प्रवेश किया और डच कोरोमंडल (पुलिकट), डच सूरत तथा डच बंगाल में व्यापारिक केंद्र स्थापित किए। डच भारत में 1825 तक सक्रिय रहे और वस्त्र, नील, रेशम, काली मिर्च तथा शोरा का व्यापार करते रहे।
- डच प्रभाव का पतन: 1741 में कोलाचेल के युद्ध में पराजय तथा 1824 की आंग्ल–डच संधि जैसे समझौतों के माध्यम से भारत में डच नियंत्रण का ह्रास हुआ, जिसके तहत उनके शेष ठिकाने ब्रिटिश नियंत्रण में चले गए।
- आधुनिक राजनयिक संबंध: भारत और नीदरलैंड्स ने 1947 में औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए। भारत का दूतावास हेग में स्थित है, जबकि नीदरलैंड्स का दूतावास नई दिल्ली में और वाणिज्य दूतावास मुंबई में है।
- उच्चस्तरीय यात्राएँ: डच प्रधानमंत्री मार्क रुट्टे (2015, 2018), भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (2017) और राजा विलेम-अलेक्ज़ेंडर (2019) की यात्राओं ने राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सहयोग को सुदृढ़ किया है।
- प्रारंभिक संपर्क: लगभग 1605 के आसपास डच व्यापारियों ने मुगल साम्राज्य में प्रवेश किया और डच कोरोमंडल (पुलिकट), डच सूरत तथा डच बंगाल में व्यापारिक केंद्र स्थापित किए। डच भारत में 1825 तक सक्रिय रहे और वस्त्र, नील, रेशम, काली मिर्च तथा शोरा का व्यापार करते रहे।
आर्थिक सहयोग:
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- वित्तीय वर्ष 2024–25 के दौरान नीदरलैंड्स भारत का वैश्विक स्तर पर दसवाँ सबसे बड़ा वस्तु व्यापार भागीदार तथा यूरोपीय संघ के भीतर दूसरा सबसे बड़ा भागीदार (जर्मनी के बाद) रहा।
- कुल द्विपक्षीय वस्तु व्यापार: 27.758 अरब अमेरिकी डॉलर (₹2,34,354 करोड़)
- यह भारत के कुल वस्तु व्यापार का 2.40 प्रतिशत था
- भारत ने नीदरलैंड्स के साथ 17.769 अरब अमेरिकी डॉलर (₹1,49,883 करोड़) का व्यापार अधिशेष दर्ज किया
- वित्तीय वर्ष 2024–25 के दौरान नीदरलैंड्स भारत का वैश्विक स्तर पर दसवाँ सबसे बड़ा वस्तु व्यापार भागीदार तथा यूरोपीय संघ के भीतर दूसरा सबसे बड़ा भागीदार (जर्मनी के बाद) रहा।
निष्कर्ष:
यह समझौता ज्ञापन संस्कृति, इतिहास और कूटनीति के रणनीतिक संगम का प्रतीक है, जो भारत की समृद्ध समुद्री विरासत को संग्रहालय क्यूरेशन और विरासत प्रबंधन में डच विशेषज्ञता से जोड़ता है। ऐतिहासिक अध्ययन, सांस्कृतिक जनसंपर्क और शैक्षणिक नवाचार के समन्वय के माध्यम से यह सहयोग न केवल राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर की वैश्विक प्रतिष्ठा को सुदृढ़ करेगा, बल्कि व्यापार, विज्ञान, समुद्री सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान सहित विभिन्न क्षेत्रों में भारत–नीदरलैंड्स द्विपक्षीय संबंधों को भी नई मजबूती प्रदान करेगा।

