संदर्भ:
भारत और यूरोपीय संघ (EU) एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को शीघ्र अंतिम रूप देने के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय संघ के नेताओं के बीच हुई बातचीत में इस समझौते को जल्द से जल्द निष्कर्ष तक पहुँचाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। यूरोपीय संघ के वरिष्ठ वार्ताकार, विशेषकर व्यापार और कृषि मामलों पर केंद्रित अधिकारी, निकट भविष्य में भारत का दौरा करेंगे ताकि प्रमुख लंबित मुद्दों का समाधान किया जा सके।
ईयू के साथ व्यापार वार्ता:
प्रस्तावित समझौते के 27 अध्यायों में से लगभग 11 पर बातचीत पूरी हो चुकी है। बाकी विवादित मुद्दों में शामिल हैं:
• कृषि और डेयरी बाज़ार तक पहुँच
• बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)
• श्रम और स्थिरता मानक
• कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) – इस मुद्दे पर भारत ने अमेरिका को दिए गए छूट जैसे प्रावधान अपने लिए भी मांगे हैं।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापारिक संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं। वर्ष 2023-24 में दोनों पक्षों के बीच वस्तुओं का व्यापार 137.41 अरब डॉलर और सेवाओं का व्यापार 51.45 अरब डॉलर तक पहुँच गया। वहीं, अप्रैल 2000 से दिसंबर 2023 के बीच भारत में यूरोपीय संघ से 107 अरब डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आया है।
भारत–ईयू समझौते के लाभ:
यदि यह मुक्त व्यापार समझौता सफलतापूर्वक संपन्न होता है, तो भारत को कई रणनीतिक और दीर्घकालिक लाभ प्राप्त हो सकते हैं:
• बड़े बाज़ार तक पहुँच: दुनिया के सबसे समृद्ध बाज़ारों में से एक के साथ कम टैरिफ और सरल नियामकीय प्रक्रियाओं के माध्यम से भारतीय उत्पादों को अधिक अवसर मिलेंगे।
• निर्यात में बढ़ोतरी: वस्त्र, आईटी सेवाएँ, औषधि उद्योग और मशीनरी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में भारत के निर्यात को नया प्रोत्साहन मिलेगा।
• सतत विकास और नवाचार को बढ़ावा: यह समझौता भारतीय उद्योगों को वैश्विक पर्यावरणीय और स्थिरता मानकों के अनुरूप ढलने के लिए प्रेरित करेगा, जिससे नवाचार और प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ेगी।
• भूराजनीतिक संदेश: यह भारत की नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाएगा और वैश्विक स्तर पर उसकी स्थिति को और सशक्त बनाएगा।
हालाँकि, भारत को इस प्रक्रिया में सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होगा और विशेषकर कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में अपने हितों की रक्षा करनी होगी। इस संदर्भ में हाल ही में संपन्न भारत–ब्रिटेन व्यापार समझौता भारत के लिए एक उपयोगी उदाहरण और मार्गदर्शक साबित हो सकता है।

सीबीएएम के बारे में:
यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम), जो 1 जनवरी 2026 से पूरी तरह लागू होगा, जो भारतीय निर्यातकों के लिए बड़ी चिंता है। इसका उद्देश्य कार्बन-गहन उत्पादों पर शुल्क लगाकर वैश्विक जलवायु कार्रवाई को प्रोत्साहित करना है, लेकिन यह भारत जैसे देशों के लिए एक तरह की गैर-शुल्कीय बाधा बन सकता है।
इससे प्रभावित क्षेत्र होंगे:
• इस्पात और एल्युमिनियम
• सीमेंट
• उर्वरक
• ऑटोमोबाइल के पुर्ज़े
अन्य उपाय जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए:
जबकि भारत पश्चिमी देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को मजबूत कर रहा है, उसे पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशिया में हो रहे बड़े आर्थिक बदलावों पर भी गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। वर्तमान समय में कई वैश्विक कंपनियाँ "चाइना+1" रणनीति अपना रही हैं, यानी वे चीन पर पूरी तरह निर्भर रहने के बजाय अन्य देशों में भी उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करना चाहती हैं। यह प्रवृत्ति भारत के लिए वैश्विक उत्पादन नेटवर्क से जुड़ने और उसमें एक अहम भूमिका निभाने का सुनहरा अवसर प्रस्तुत करती है।
भारत को इस अवसर का लाभ उठाने के लिए निम्न कदम उठाने चाहिए:
• सड़क, बंदरगाह और अन्य बुनियादी ढाँचे में सुधार ताकि व्यापार सस्ता और तेज़ हो सके।
• निर्यातकों के लिए कस्टम्स और कागज़ी प्रक्रियाओं को आसान बनाना।
• PLI (उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन) जैसी सरकारी योजनाओं से विनिर्माण को और मजबूत करना।
• मज़बूत व्यापार समझौते करना, जिनसे भारतीय कंपनियाँ वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़ सकें।
निष्कर्ष:
वर्तमान समय में, जब वैश्विक व्यापार संरक्षणवाद, बढ़ती प्रतिस्पर्धा और आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है, भारत के सामने एक महत्वपूर्ण अवसर है। यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते को आगे बढ़ाना न केवल सही दिशा में बड़ा कदम होगा, बल्कि यह भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति को भी सशक्त करेगा। हालाँकि, इस समझौते का पूरा लाभ उठाने के लिए भारत को CPTPP जैसे वैश्विक व्यापार नेटवर्क से जुड़ने और अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी भागीदारी को और मजबूत करने की आवश्यकता है। सकारात्मक संकेत यह है कि भारत और यूरोपीय संघ अपने लंबे समय से लंबित व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की दिशा में ठोस प्रगति कर रहे हैं।

