संदर्भ:
दुनिया की पहली जीनोम-संपादित (Genome-Edited - GE) चावल की किस्में विकसित करके, भारत ने कृषि विज्ञान में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। ये नई किस्में बेहतर पैदावार देती हैं, सूखा और खारेपन को सहन कर सकती हैं, जल्दी पकती हैं और नाइट्रोजन का बेहतर उपयोग करती हैं। यह कार्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के दो संस्थानों – भारतीय धान अनुसंधान संस्थान (IIRR), हैदराबाद और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली – द्वारा किया गया है।
दो नई जीनोम-संपादित चावल की किस्में:
1. 'कमला' (IET-32072) – संपादित सांबा महसूरी (BPT-5204)
वैज्ञानिकों ने CRISPR-Cas12 तकनीक का उपयोग कर Gn1a जीन को संपादित किया, जो एक पैनिकल (धान गुच्छ) में कितने दाने बनते हैं, इसे नियंत्रित करता है। इस जीन की गतिविधि को कम करके दानों की संख्या बढ़ाई गई। सांबा महसूरी पहले से ही तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में 50 लाख हेक्टेयर में उगाई जाती है।
संशोधित किस्म 'कमला' के लाभ:
• औसत पैदावार: 5.37 टन प्रति हेक्टेयर
• संभावित पैदावार: 9 टन प्रति हेक्टेयर (मूल किस्म की 6.5 टन से अधिक)
• परिपक्वता: 130 दिन (मूल किस्म से 15–20 दिन पहले)
• दाने की गुणवत्ता: सांबा महसूरी जैसी ही
2. Pusa DST Rice 1 (IET-32043) – संपादित MTU-1010 (Cottondora Sannalu)
वैज्ञानिकों ने CRISPR-Cas9 तकनीक से DST जीन को संपादित किया, जो पौधे को सूखा और लवणीय तनाव (खारापन) सहने में मदद करता है। यह GE किस्म कठिन परिस्थितियों में बेहतर प्रदर्शन करती है।
MTU-1010 पहले से ही एक लोकप्रिय किस्म है, जो 40 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाती है। यह 125–130 दिन में पकती है और लंबे पतले दाने देती है।
GE संस्करण की पैदावार:
• अंतर्देशीय लवणीय क्षेत्र: 3.508 टन/हेक्टेयर (मूल किस्म: 3.199)
• क्षारीय मिट्टी: 3.731 टन/हेक्टेयर (मूल किस्म: 3.254)
• सागरीय खारे क्षेत्र: 2.493 टन/हेक्टेयर (मूल किस्म: 1.912)
सुरक्षा, परीक्षण और वित्तपोषण-
इन GE किस्मों का 2023 और 2024 में विभिन्न स्थानों पर परीक्षण किया गया, जो ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन राइस के अंतर्गत हुआ। जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने पुष्टि की है कि इनमें कोई विदेशी DNA नहीं है और ये सामान्य फसल लाइनों जैसी ही हैं।
भारत के 2023–24 के बजट में जीनोम संपादन अनुसंधान के लिए ₹500 करोड़ का प्रावधान किया गया था। हालांकि CRISPR-Cas9 तकनीक पर ब्रॉड इंस्टिट्यूट (MIT और हार्वर्ड) का पेटेंट है, ICAR बौद्धिक संपदा अधिकारों के मुद्दों को सुलझाने के लिए काम कर रहा है।
जीनोम संपादन क्या है और यह आनुवंशिक संशोधन से कैसे अलग है?
- आनुवंशिक संशोधन (Genetic Modification - GM) में किसी दूसरे जीव की जीन को पौधे में डाला जाता है। उदाहरण के लिए, Bt कपास में एक जीवाणु (Bacillus thuringiensis) की जीन होती है जो कीटों को मारती है।
- जीनोम संपादन (Genome Editing - GE) में कोई विदेशी DNA नहीं डाला जाता। इसमें पौधे के अपने जीन को बदला जाता है। वैज्ञानिक CRISPR-Cas एंजाइम का उपयोग करते हैं, जो DNA में बहुत सटीक कटाव कर उसे संशोधित करते हैं और जीन के व्यवहार को बदलते हैं।
- भारत SDN-1 और SDN-2 विधियों से विकसित GE फसलों को सख्त सुरक्षा स्वीकृति की आवश्यकता के बिना अनुमति देता है। इन विधियों में कोई विदेशी जीन नहीं होता और इन्हें सामान्य फसल प्रजनन के समान माना जाता है।
निष्कर्ष:
ये दो जीनोम-संपादित चावल की किस्में दिखाती हैं कि भारत अब उन्नत जैव प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए तैयार है। ये अधिक उपज देने वाली, जलवायु-प्रतिकूलता सहन करने वाली और सुरक्षित हैं, जो खाद्य सुरक्षा और किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए नई उम्मीद देती हैं।