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Blog / 30 Sep 2025

भारत ने दो नए रामसर स्थलों को किया नामित

संदर्भ:

हाल ही में भारत सरकार ने बिहार के बक्सर ज़िले में स्थित गोकुल जलाशय और पश्चिम चंपारण ज़िले में स्थित उदयपुर झील को आधिकारिक रूप से रामसर स्थल घोषित किया है। इन दोनों स्थलों के जुड़ने के साथ भारत में रामसर स्थलों की कुल संख्या बढ़कर 93 हो गई है।

स्थलों के बारे में:

विशेषता

विवरण

गोकुल जलाशय

बक्सर ज़िले में स्थित यह आर्द्रभूमि लगभग 448 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है। यह गंगा नदी की एक ऑक्सबो झील (या “डेड आर्म”) है। यहाँ 50 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ विशेषकर मानसून-पूर्व दलदली क्षेत्रों और झाड़ीदार वनस्पतियों के बीच पाई जाती हैं। स्थानीय समुदाय इस जलाशय पर कृषि, मत्स्य पालन और सिंचाई के लिए निर्भर रहते हैं।

उदयपुर झील

पश्चिम चंपारण ज़िले में स्थित यह झील लगभग 319 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है। यह गंडक नदी और उसकी सहायक नदी के बाढ़ मैदान में बनी एक ऑक्सबो झील है जो उदयपुर वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा है। यह स्थल प्रवासी और स्थानीय जलपक्षियों का महत्वपूर्ण आवास है। साथ ही, यहाँ दलदली वन और नदी तट पर खैर तथा शीशम के वृक्ष भी पाए जाते हैं।

 

रामसर स्थल और आर्द्रभूमि संरक्षण के बारे में:

रामसर स्थल वे आर्द्रभूमियाँ हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय महत्व का माना गया है। इन्हें रामसर कन्वेंशन ऑन वेटलैंड्स के अंतर्गत मान्यता दी जाती है। यह एक अंतर-सरकारी संधि है, जिस पर वर्ष 1971 में हस्ताक्षर किए गए थे। इसका मुख्य उद्देश्य आर्द्रभूमियों का संरक्षण और उनका सतत एवं विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना है।

·         इन स्थलों को विशेष संरक्षण और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलती है क्योंकि ये वैश्विक जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। साथ ही, ये आर्द्रभूमियाँ मानव जीवन को जल शुद्धिकरण, बाढ़ नियंत्रण और जलवायु संतुलन जैसी महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी सेवाएँ प्रदान करती हैं।

·         भारत ने वर्ष 1982 में इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे। सबसे पहले चिल्का झील (ओडिशा) और केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान) को रामसर स्थल के रूप में घोषित किया गया था। वर्तमान में भारत में कुल 93 रामसर स्थल हैं, जो 13 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं।

भारत की आर्द्रभूमि संरक्षण नीतियाँ:

·         वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017: इन नियमों के तहत राज्य-स्तरीय वेटलैंड प्राधिकरण का गठन किया गया है और आर्द्रभूमि संरक्षण में स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की गई है।

·         राष्ट्रीय जलीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण योजना (NPCA), 2015: यह योजना, राष्ट्रीय वेटलैंड संरक्षण कार्यक्रम (NWCP) और राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना (NLCP) को मिलाकर बनाई गई है। इसका उद्देश्य आर्द्रभूमियों और झीलों दोनों की समग्र सुरक्षा और प्रबंधन करना है।

·         मिशन सहभागिता: यह नागरिकों की भागीदारी पर आधारित कार्यक्रम है। इसके तहत चलाए गए सेव वेटलैंड्स अभियान में 20 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। अब तक 1.7 लाख आर्द्रभूमियों का जमीनी सत्यापन और 1 लाख आर्द्रभूमियों की सीमा-रेखा का निर्धारण किया जा चुका है।

·         अमृत धरोहर क्षमता निर्माण योजना, 2023: इस योजना के अंतर्गत सरकारी अधिकारियों, संरक्षण विशेषज्ञों और स्थानीय समुदायों को आर्द्रभूमि प्रबंधन की ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें सतत प्रबंधन तकनीकों और पारंपरिक ज्ञान दोनों का उपयोग करने पर ज़ोर दिया गया है।

·         मिशन अमृत सरोवर: इस मिशन का लक्ष्य प्रत्येक ज़िले में 75 जलाशयों का निर्माण और पुनर्जीवन करना है, जिससे जल सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर भी बढ़ें।

निष्कर्ष:

गोकुल जलाशय और उदयपुर झील को रामसर स्थल का दर्जा मिलने से न केवल भारत की आर्द्रभूमि संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता सुदृढ़ हुई है, बल्कि बिहार के पारिस्थितिकी तंत्र की स्थायित्व और मजबूती में भी वृद्धि हुई है। ये स्थल अपनी समृद्ध जैव विविधता, जल विज्ञान संबंधी महत्व और स्थानीय समुदाय की जीवन-निर्भरता के कारण विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।