होम > Blog

Blog / 04 Oct 2025

भारत और रूस: 25 वर्ष की रणनीतिक साझेदारी – करेंट अफेयर्स | Dhyeya IAS

संदर्भ:

3 अक्टूबर 2025 को भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ मनाई गई। इस ऐतिहासिक साझेदारी की नींव 3 अक्टूबर 2000 को उस समय रखी गई थी, जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी की घोषणापर हस्ताक्षर किए थे।

पिछले 25 वर्षों में प्रमुख सहयोग:

1. बहुआयामी भारत-रूस कूटनीतिक संबंध

·         रणनीतिक साझेदारी का ढांचा: साल 2000 में जब पहली बार दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी स्थापित हुई, तो 2010 में इसे और ऊँचाई देते हुएविशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी का दर्जा दिया गया। यह बदलाव दोनों देशों के बीच गहरे विश्वास, दीर्घकालिक योजना और अनेक रणनीतिक क्षेत्रों में व्यापक सहयोग का प्रतीक है।

·         संस्थागत संवाद तंत्र: भारत और रूस ने आपसी सहयोग को सुदृढ़ बनाने के लिए कई औपचारिक संवाद और मंच विकसित किए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

1.        दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों/सरकार प्रमुखों के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन।

2.      “2 + 2” संवादविदेश और रक्षा मंत्रियों की संयुक्त बैठक।

3.      भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग व्यापार, अर्थव्यवस्था, विज्ञान-तकनीक और संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग।

4.     तकनीकी और सैन्य सहयोग के मंच जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास (इंद्रा अभ्यास), साझा अनुसंधान एवं विकास (R&D) तथा रक्षा प्रौद्योगिकी साझेदारी।

india russia relations

2. व्यापार और आर्थिक सहयोग

      • हाल के वर्षों में भारत-रूस व्यापार तेज़ी से बढ़ा है। वित्त वर्ष 2024-25 में यह लगभग 68.7 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में यह 65.70 अरब डॉलर था।
      • रूस को भारत से किए जाने वाले प्रमुख निर्यातों में फार्मास्यूटिकल्स, कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन, विद्युत मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, लोहा और इस्पात शामिल हैं।
      • भारत को रूस के प्रमुख निर्यातों में तेल और पेट्रोलियम उत्पाद; उर्वरक; वनस्पति तेल; बहुमूल्य पत्थर और धातुएं; तथा खनिज संसाधन शामिल हैं।

3. रक्षा और सुरक्षा सहयोग

·         भारत-रूस रक्षा सहयोग अब केवल खरीदार-विक्रेता संबंध तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें संयुक्त अनुसंधान, उत्पादन और उन्नत प्रणालियों का सह-विकास भी शामिल है।

·         इसका सबसे बड़ा उदाहरण ब्रहमोस एयरोस्पेस है, जो भारत के DRDO और रूस के NPO मशिनोस्ट्रोयेनीया के बीच एक संयुक्त उपक्रम है। यह कंपनी सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलों का संयुक्त डिजाइन, विकास, उत्पादन और विपणन करती है।

·         ब्रहमोस परियोजना ने दोनों देशों को न केवल तकनीकी हस्तांतरण का अनुभव दिया है, बल्कि भारत की स्वदेशी क्षमताओं को भी मजबूत किया है। अब भारत मिसाइल प्रणाली के कई महत्वपूर्ण पुर्ज़े, जैसे प्रणोदन बूस्टर और नेविगेशन सिस्टम, स्वयं विकसित और निर्मित कर रहा है।

4. बहुपक्षीय सहयोग और वैश्विक कूटनीति

·         भारत और रूस कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मंचों, जैसे संयुक्त राष्ट्र (UN), G20, ब्रिक्स (BRICS) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO), में घनिष्ठ सहयोग करते हैं।

·         इन मंचों पर दोनों देश जलवायु परिवर्तन, व्यापार और वैश्विक सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर आपसी तालमेल और साझा दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं।

·         भारत-रूस की यह साझेदारी अक्सर बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण और स्वतंत्र विदेश नीति को सुदृढ़ करने के प्रयासों से जुड़ी मानी जाती है।

चुनौतियाँ:

·         व्यापार असंतुलन: रूस से भारी आयात, विशेषकर ऊर्जा और पेट्रोलियम क्षेत्र में, भारत के लिए बड़े व्यापार घाटे का कारण है। इसे संतुलित करने के लिए भारत निर्यात बढ़ाने और व्यापार को अधिक विविध बनाने पर ज़ोर दे रहा है।

·         सहयोग का दायरा बढ़ाना: रक्षा, ऊर्जा और तेल-गैस जैसे पारंपरिक क्षेत्रों से आगे बढ़ते हुए, अब हरित ऊर्जा, डिजिटल अर्थव्यवस्था, महत्वपूर्ण खनिज, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और स्वास्थ्य तकनीक जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग की आवश्यकता है।

·         नियम और लॉजिस्टिक चुनौतियाँ: गैर-शुल्कीय अवरोध, भुगतान प्रणाली से जुड़ी कठिनाइयाँ तथा तकनीकी निर्यात नियंत्रण जैसी बाधाओं को दूर करना आवश्यक है।

·         वैश्विक भू-राजनीतिक दबाव: पश्चिमी देशों के प्रतिबंध, व्यापारिक पाबंदियाँ और तीसरे पक्ष का दबाव रूस के साथ कारोबार को कई क्षेत्रों में जटिल और चुनौतीपूर्ण बना देता है।

निष्कर्ष:

पिछले 25 वर्षों में भारत-रूस साझेदारी मजबूत, विविध और संस्थागत रूप ले चुकी है। यह कूटनीति, व्यापार, रक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, संस्कृति तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग तक फैली हुई है। पिछली दशकों ने ठोस नींव और बड़ी उपलब्धियाँ दी हैं, लेकिन भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों देश किस तरह व्यापार घाटे, नियामकीय चुनौतियों और वैश्विक बदलावों से निपटते हुए नए क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करते हैं।