होम > Blog

Blog / 29 Nov 2025

ऑनलाइन कंटेंट के लिए स्वतंत्र नियामक: आवश्यकता, चुनौतियाँ व प्रभाव | Dhyeya IAS

सन्दर्भ:

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ऑनलाइन सामग्री विशेषकर सोशल मीडिया और यूज़र-जनरेटेड कंटेंट (UGC)” के लिए एक स्वायत्त एवं स्वतंत्र नियामक संस्था की आवश्यकता पर जोर दिया है। न्यायालय का कहना है कि प्लेटफॉर्म-आधारितस्वनियमन” (self-regulation) प्रभावी नहीं रहा है। साथ ही, नाबालिगों को अश्लील या हानिकारक सामग्री से बचाने के लिए कठोर आयु-पुष्टि और कंटेंट-रेटिंग प्रणाली पर बल दिया गया है।

पृष्ठभूमि एवं समस्या का स्वरूप:

      • भारत में यूज़र-जनरेटेड कंटेंट प्लेटफॉर्म जैसे यूट्यूब, सोशल मीडिया, ब्लॉग और साथ ही ओटीटी सेवाओं के तेज़ी से विस्तार ने सामग्री उपभोग के पूरे परिदृश्य को बदल दिया है।
      • पारंपरिक मीडिया जैसे प्रिंट, टीवी और सिनेमा पर लागू नियामक ढाँचे डिजिटल माध्यम पर लागू नहीं हो सकते, क्योंकि डिजिटल स्पेस सीमाहीन (borderless), विकेंद्रीकृत और लगातार बदलता हुआ क्षेत्र है।

नियमन की मौजूदा स्थिति

      • आईटी नियम, 2021 ने डिजिटल मीडिया के लिए तीन-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र बनाया था।
      • इसके बावजूद, अनेक प्लेटफॉर्म अभी भी स्वनियमन (self-regulation) पर ही निर्भर हैं।
      • यह मॉडल कई मामलों में अप्रभावी साबित हुआ है, विशेषकर:
        • अश्लील सामग्री
        • मानहानि पोस्ट
        • घृणा फैलाने वाली सामग्री (Hate Speech)

हाल के विवाद और बढ़ती चिंता:

      • हाल के समय में कई ऐसे प्रकरण सामने आए हैं जिनमें महिलाओं,अल्पसंख्यक समुदायों, तथा दिव्यांगजनों (PwDs) पर आपत्तिजनक, अशोभनीय और अपमानजनक वीडियो प्रसारित किए गए हैं।
      • इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वर्तमान स्वनियमन प्रणाली अपर्याप्त है, और कड़े व अधिक प्रभावी नियमन की आवश्यकता अत्यावश्यक हो गई है।

सुप्रीम कोर्ट के सुझाव:

स्वतंत्र नियामक संस्था:

        • न्यायालय ने कहा किस्व-घोषित निकाय प्रभावी नहीं हो सकते”; इसलिए एक तटस्थ, स्वायत्त, और अधिकार-संपन्न नियामक बनाया जाना चाहिए।

आयु-पुष्टि:

        • केवल चेतावनियाँ (Pop-up warnings) पर्याप्त नहीं होतीं।
        • नाबालिगों को वयस्क/अश्लील सामग्री से दूर रखने के लिए आधार या पैन आधारित सत्यापन जैसे मजबूत तरीकों पर विचार।

संवेदनशील समूहों की सुरक्षा:

        • PwDs या हाशिये पर मौजूद समुदायों का उपहास करने वाली सामग्री पर SC/ST एक्ट जैसे दंडात्मक प्रावधानों की तरह सख़्ती का सुझाव।

मूल सिद्धांत:

        • अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मर्यादा, नैतिकता, नाबालिगों की सुरक्षा और गरिमा के साथ संतुलित होनी चाहिए।

चुनौतियाँ एवं चिंताएँ:

      • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम अत्यधिक नियमन: अत्यधिक नियंत्रण से व्यंग्य, आलोचनात्मक टिप्पणी या कलात्मक अभिव्यक्ति परअसर” (Chilling Effect) पड़ सकता है।
      • निजता एवं डाटा सुरक्षा: आधार/पैन आधारित आयु-जांच से निजता का जोखिम तथा व्यक्तिगत डाटा के दुरुपयोग की आशंका।
      • कार्यान्वयन चुनौतियाँ: डिजिटल स्पेस बहुत बड़ा और तेजी से बदलने वाला है, इसलिए निगरानी मुश्किल होती हैखासकर छोटे क्रिएटर्स के लिए।
      • न्यायिक/नियामकीय अतिक्रमण: नैतिकता, समुदाय मानक या राष्ट्र-विरोधी सामग्री का आकलन अक्सर व्यक्तिपरक होता है, जिससे मनमाने फैसलों का जोखिम बढ़ता है।
      • नवाचार पर प्रभाव: सख्त नियम स्वतंत्र रचनात्मकता, वैकल्पिक पत्रकारिता और असहमति की आवाज़ों को दबा सकते हैं।

निष्कर्ष:

डिजिटल युग में अनियंत्रित ऑनलाइन सामग्री नाबालिगों की सुरक्षा, सामाजिक सद्भाव और सार्वजनिक नैतिकता के लिए जोखिम पैदा करती है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतंत्र नियामक की मांग यह स्वीकार करती है कि केवल स्वनियमन पर्याप्त नहीं है। सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत एक ऐसा ढांचा बनाए जो कमजोर समूहों की रक्षा करे, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रचनात्मकता को सुरक्षित रखे और उपयोगकर्ताओं की निजता का सम्मान करे। स्पष्ट नियम, पारदर्शिता, हितधारकों की भागीदारी और मजबूत सुरक्षा उपायों के साथ, भारत एक जिम्मेदार और अधिकार-आधारित डिजिटल कंटेंट शासन मॉडल विकसित कर सकता है।