संदर्भ:
हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई है। लोकसभा और राज्यसभा के कई सदस्यों ने अपने-अपने सदनों के पीठासीन अधिकारियों को इस संबंध में नोटिस सौंपे हैं। इन नोटिसों पर बड़ी संख्या में सांसदों के हस्ताक्षर हैं, जो न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत को दर्शाते हैं।
भारत में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का महाभियोग क्या है?
भारत में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को “सिद्ध दुराचार” (proven misbehaviour) या “अयोग्यता” (incapacity) के आधार पर उनके पद से हटाया जा सकता है। यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 217 और अनुच्छेद 124(4) के साथ-साथ न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अंतर्गत संचालित होती है। यह प्रक्रिया उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय, दोनों के न्यायाधीशों के लिए समान होती है।
महाभियोग की प्रक्रिया कैसे शुरू होती है?
· लोकसभा में कम से कम 100 सांसद या राज्यसभा में 50 सांसदों को महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने होते हैं।
· यह प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को सौंपा जाता है।
· यदि अध्यक्ष/सभापति प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं, तो एक तीन-सदस्यीय जांच समिति गठित की जाती है। इस समिति में होते हैं:
o एक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश
o एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
o एक प्रख्यात न्यायविद्
· यह समिति आरोपों की जांच करती है और रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।
जांच समिति द्वारा न्यायाधीश को दोषी कब पाया जाता है?
· यदि समिति न्यायाधीश को दोषी नहीं पाती, तो प्रक्रिया वहीं समाप्त हो जाती है।
· लेकिन यदि न्यायाधीश दोषी पाया जाता है, तो जिस सदन में प्रस्ताव लाया गया था, वहाँ मतदान होता है।
- प्रस्ताव निम्नलिखित द्वारा पारित होना चाहिए:
o सदन के कुल सदस्यों का बहुमत
o सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत
· यदि एक सदन से प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है, जहाँ यही प्रक्रिया दोहराई जाती है।
· जब दोनों सदन प्रस्ताव पारित कर देते हैं, तो राष्ट्रपति को एक अभिभाषण भेजा जाता है। इसके बाद राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं।
महाभियोग का इतिहास:
अब तक किसी भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सफलतापूर्वक महाभियोग के जरिए नहीं हटाया गया है।
हालांकि, 2011 में कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सौमित्र सेन इस प्रक्रिया के बहुत करीब पहुँच चुके थे:
· उन पर आरोप था कि उन्होंने न्यायाधीश बनने से पहले, एक कोर्ट-नियुक्त रिसीवर के तौर पर धन का ग़लत इस्तेमाल किया था।
· राज्यसभा ने महाभियोग प्रस्ताव पारित कर दिया था, लेकिन लोकसभा में मतदान से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जिससे प्रक्रिया समाप्त हो गई।
निष्कर्ष:
न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ शुरू हुई महाभियोग प्रक्रिया न केवल न्यायपालिका, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को यदि कोई गंभीर दोष साबित होता है, तो उनके खिलाफ उचित कार्रवाई हो सके। साथ ही, यह प्रक्रिया इतनी पारदर्शी और कठोर है कि न्यायाधीशों की स्वतंत्रता और गरिमा की भी रक्षा होती है। इससे न्यायपालिका की अखंडता और कानून के शासन, दोनों की रक्षा होती है।