संदर्भ:
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने अपने भुवनेश्वर स्थित क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र (RMRCBB) और राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान (NIMR) के माध्यम से, जैव प्रौद्योगिकी विभाग-राष्ट्रीय इम्यूनोलॉजी संस्थान (DBT-NII) के सहयोग से एक नया पुनः संयोजित काइमेरिक मलेरिया टीका उम्मीदवार विकसित किया है, जिसका नाम एडफाल्सिवैक्स (AdFalciVax) है।
एडफाल्सिवैक्स (AdFalciVax) की प्रमुख विशेषताएँ:
एडफाल्सिवैक्स (AdFalciVax) पहला स्वदेशी पुनः संयोजित काइमेरिक मलेरिया टीका है जिसे प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) नामक सबसे घातक मलेरिया परजीवी के दो महत्वपूर्ण चरणों को लक्षित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- एकल-चरण वाले टीकों की तुलना में यह व्यापक सुरक्षा प्रदान करता है, प्रतिरक्षा प्रणाली को चकमा देने की संभावना को कम करता है, अधिक समय तक प्रतिरक्षा देता है, और कमरे के तापमान पर नौ महीने से अधिक समय तक प्रभावी रहता है। यह मच्छरों के भीतर परजीवी के जीवनचक्र को प्रभावित कर सामुदायिक प्रसारण को भी कम करने का लक्ष्य रखता है।
- यह टीका आनुवंशिक सामग्री का उपयोग करके विशेष प्रोटीन बनाता है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम को पहचानने और उससे लड़ने के लिए प्रेरित करता है।
- टीका परजीवी के दो प्रमुख चरणों को लक्षित करता है: इसके सतह पर मौजूद CSP प्रोटीन और मच्छर के अंदर इसका विकास, जिससे व्यक्ति की रक्षा होती है और सामुदायिक प्रसारण में भी कमी आती है।
टीकों के बारे में:
टीका एक जैविक तैयारी है जो किसी विशेष संक्रामक या घातक बीमारी के विरुद्ध सक्रिय प्राप्त प्रतिरक्षा प्रदान करता है। टीकों में रोगजनक का एक सुरक्षित भाग या टुकड़ा (जिसे एंटीजन कहा जाता है) शरीर में डाला जाता है, जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रिय हो जाती है।
• यह प्रणाली एंटीबॉडी और मेमोरी सेल्स का निर्माण करती है, जो भविष्य में असली रोगजनक के संपर्क में आने पर तेज़ी से प्रतिक्रिया करने के लिए तैयार रहती हैं। यह प्रक्रिया दीर्घकालिक प्रतिरक्षा प्रदान करती है और बीमारी से बचाव करती है।
काइमेरिक टीकों के बारे में:
काइमेरिक टीके विभिन्न सूक्ष्मजीव उपभेदों के कई एंटीजन-एन्कोडिंग जीन को मिलाकर बनाए जाते हैं ताकि अत्यधिक विकसित होते जा रहे दवा-प्रतिरोधी रोगजनकों से सुरक्षा मिल सके। भयंकर बीमारियों के प्रकोपों ने वैज्ञानिकों को कम लागत वाले काइमेरिक टीके विकसित करने को प्रेरित किया है, जो कम समय में बड़ी आबादी को कवर कर सकें।
मलेरिया के बारे में:
मलेरिया प्लास्मोडियम प्रजाति के एककोशीय परजीवियों से होता है, जो संक्रमित मादा एनोफिलीज़ (Anopheles) मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलता है।
• जब मच्छर काटता है, तो वह परजीवियों को रक्त में छोड़ता है, जो फिर यकृत (लिवर) में जाकर परिपक्व होते हैं और संख्या बढ़ाते हैं।
• मानवों को सामान्यतः पाँच प्रकार की प्रजातियाँ संक्रमित करती हैं:
पी. फाल्सीपेरम, पी. विवैक्स, पी. नोवलेसी, पी. ओवेल, और पी. मलेरीए
इनमें पी.फाल्सीपेरम सबसे अधिक गंभीर मामलों और मृत्यु के लिए जिम्मेदार है।
निष्कर्ष:
एडफाल्सिवैक्स का विकास भारत और अन्य देशों में मलेरिया से लड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यद्यपि कई चुनौतियाँ शेष हैं, फिर भी इस टीके का सार्वजनिक स्वास्थ्य पर संभावित प्रभाव अत्यधिक महत्वपूर्ण है। टीके की सुरक्षा, प्रभावशीलता और उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए और अधिक अनुसंधान और विकास की आवश्यकता है।