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Blog / 04 Nov 2025

निपाह एंटीबॉडी विकास के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट

संदर्भ:

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने निपाह वायरस के खिलाफ मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के विकास और उत्पादन के लिए दवा कंपनियों को साझेदारी हेतु आमंत्रित करते हुए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट” (EoI) जारी किया है।

इस पहल का उद्देश्य:

    • मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAb) उत्पादन के लिए स्वदेशी तकनीकी प्लेटफ़ॉर्म तैयार करना।
    • उत्पादन क्षमता बढ़ाना ताकि प्रकोप (outbreak) के समय पर्याप्त मात्रा में दवा उपलब्ध हो सके।
    • आईसीएमआर के अधीन संस्थानों, जैसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के साथ मिलकर तकनीकी सहायता और नियामकीय (regulatory) मार्गदर्शन प्राप्त करना।

यह पहल भारत के "आत्मनिर्भर स्वास्थ्य समाधान" के लक्ष्य से जुड़ी है। इससे देश की आयात पर निर्भरता कम होगी और राष्ट्रीय जैव-सुरक्षा को मजबूती मिलेगी।

निपाह वायरस के बारे में:

    • निपाह वायरस (NiV) एक ज़ूनोटिक (zoonotic) वायरस है, अर्थात यह जानवरों से मनुष्यों में फैलता है। इसका मुख्य प्राकृतिक स्रोत फल खाने वाले चमगादड़ हैं, जो टेरोपस (Pteropus) प्रजाति से संबंधित होते हैं। यह वायरस संक्रमित जानवरों या संक्रमित व्यक्तियों के सीधे संपर्क से भी फैल सकता है।
    • निपाह संक्रमण से गंभीर श्वसन रोग, मस्तिष्क की सूजन और बहु-अंग विफलता (multi-organ failure) हो सकती है। इसकी मृत्यु दर 40% से 75% तक बताई गई है, जो इसे अत्यंत घातक बनाती है।
    • भारत में विशेष रूप से केरल राज्य में निपाह वायरस के कई बार प्रकोप (outbreak) दर्ज किए गए हैं, जिससे इसके महामारी रूप लेने की आशंका बनी रहती है।
    • वर्तमान में निपाह वायरस के लिए कोई स्वीकृत टीका या विशेष एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है। इसलिए, संक्रमण की शीघ्र पहचान और सहायक उपचार ही बचाव और नियंत्रण का सबसे प्रभावी उपाय हैं।

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAbs) के बारे में:

    • मोनोक्लोनल एंटीबॉडी प्रयोगशाला में तैयार किए गए प्रोटीन होते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली (Immune System) की तरह काम करते हैं। ये विशेष रूप से वायरस या संक्रमित कोशिकाओं से जुड़कर उन्हें निष्क्रिय (neutralize) कर देते हैं, जिससे वायरस का फैलाव और रोग की गंभीरता कम हो जाती है।
    • मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का उपयोग इबोला और कोविड-19 जैसी बीमारियों में सफलतापूर्वक किया जा चुका है। इससे यह साबित होता है कि ये तकनीक नई और उभरती संक्रामक बीमारियों के लिए भी उपयोगी है।
    • निपाह वायरस के खिलाफ m102.4 नामक एक एंटीबॉडी ने पशु परीक्षणों और सीमित मानव उपयोग में अच्छे परिणाम दिखाए हैं।
    • अगर भारत इस तरह की एंटीबॉडी खुद विकसित कर लेता है, तो देश बिना विदेशी सहायता के निपाह जैसे प्रकोपों का तेजी से सामना कर सकेगा।

निष्कर्ष:

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के विकास को बढ़ावा देकर भारत "प्रतिक्रिया आधारित" (Reactive) स्वास्थ्य व्यवस्था से "तैयारी आधारित" (Proactive Preparedness) प्रणाली की ओर बढ़ रहा है। यह रणनीति न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत बनाती है, बल्कि जैव-औषधीय आत्मनिर्भरता और महामारी से निपटने की तैयारी को भी सुदृढ़ करती है। यह पहल भारत की स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण और दूरदर्शी कदम है।