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Blog / 11 Nov 2025

ICAR की अध्ययन: भारत में मिट्टी में कार्बन कमी और कृषि में प्रभाव | Dhyeya IAS

सन्दर्भ:

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के हालिया एक अध्ययन में यह पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन  और असंतुलित उर्वरक उपयोग , भारत की कृषियोग्य भूमि में मृदा जैविक कार्बन (Soil Organic Carbon - SOC) की गिरावट के प्रमुख कारण हैं। यह छह-वर्षीय अध्ययन (2017–2023), भोपाल स्थित भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान  द्वारा समन्वित किया गया, जिसमें 620 जिलों के 2.5 लाख से अधिक नमूनों का विश्लेषण किया गया, जो 29 राज्यों से लिए गए थे।

मुख्य निष्कर्ष:

    • जैविक कार्बन और सूक्ष्म पोषक तत्वों का संबंध: अध्ययन में पाया गया कि जहाँ मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा कम होती है, वहाँ सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी अधिक होती है; और जहाँ जैविक कार्बन अधिक होता है, वहाँ कमी अपेक्षाकृत कम होती है।
    • भू-ऊँचाई और जैविक कार्बन का संबंध: अध्ययन ने यह दर्शाया कि भूमि की ऊँचाई बढ़ने पर जैविक कार्बन की मात्रा भी बढ़ती है। उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में SOC अधिक पाया गया।
    • तापमान का नकारात्मक संबंध: SOC का तापमान से नकारात्मक सह-संबंध पाया गया। उदाहरणस्वरूप, राजस्थान और तेलंगाना जैसे उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में मृदा जैविक कार्बन की मात्रा बहुत कम पाई गई।
    • फसल प्रणाली का प्रभाव: SOC की मात्रा मुख्य रूप से फसल प्रणाली पर निर्भर करती है। जहाँ धान-आधारित या दलहन-आधारित फसल प्रणाली अपनाई गई है, वहाँ SOC का स्तर अधिक पाया गया, जबकि गेहूँ या मोटे अनाज आधारित क्षेत्रों में यह स्तर कम है।
    • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: बढ़ते तापमान के कारण SOC की हानि और तेज़ होगी, जिससे मृदा उर्वरता में कमी, ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि तथा कार्बन अवशोषण की क्षमता में गिरावट आएगी। यह भारत के जलवायु शमन लक्ष्यों के लिए चुनौतीपूर्ण है।

नीतिगत सिफारिशें:

    • जैविक कार्बन अवशोषण: कार्बन-समृद्ध कृषि प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाए और प्रत्येक खेत को वनस्पति या फसलों से ढका रखा जाए।
    • कार्बन क्रेडिट खेती: ऐसे किसानों को प्रोत्साहन दिया जाए जो अपनी भूमि में कार्बन भंडारण को बढ़ाते हैं।
    • संतुलित उर्वरक उपयोग: वैज्ञानिक पोषण प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाए। उचित नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P) और पोटैशियम (K) अनुपात और जैविक खाद (organic manure) का समावेश किया जाए।
    • कृषिवनिकी एवं वृक्षारोपण: भूमि पर हरित आवरण बढ़ाने हेतु वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया जाए ताकि वायुमंडलीय CO का अवशोषण हो सके।
    • जलवायु-सहिष्णु कृषि प्रणाली: ऐसे फसल प्रबंधन तंत्र विकसित किए जाएँ जो बदलते तापमान और जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप हों।

महत्व:

    • यह अध्ययन भारत का प्रथम कृषिवैज्ञानिक बेस मैप प्रस्तुत करता है, जो फसल प्रणाली, उर्वरक उपयोग और मृदा जैविक कार्बन के संबंध को 20 कृषि-पर्यावरणीय क्षेत्रों में जोड़ता है।
    • यह कार्बन क्रेडिट नीति, भूमि क्षरण नियंत्रण, और जलवायु अनुकूलन रणनीतियों के लिए ठोस नीति निर्माण में सहायक है।
    • मृदा कार्बन की रक्षा, कृषि उत्पादकता, पारिस्थितिक संतुलन और पेरिस समझौते  के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के लिए अत्यंत आवश्यक है।

निष्कर्ष:

ICAR के निष्कर्ष यह रेखांकित करते हैं कि जलवायु परिवर्तन और उर्वरकों के असंतुलित उपयोग से भारत की सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संपदा , मृदा धीरे-धीरे क्षीण हो रही है। संतुलित पोषण प्रबंधन , सतत फसल प्रणाली और कार्बन क्रेडिट प्रोत्साहन  के माध्यम से जैविक कार्बन की पुनःस्थापना न केवल खाद्य सुरक्षा और मृदा स्वास्थ्य के लिए बल्कि जलवायु लचीलापन हेतु भी अत्यंत आवश्यक है।